Akshita Garg (ãkkī)   (Akkī_Writēs)
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Joined 1 April 2018


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Joined 1 April 2018
2 JUN 2022 AT 0:06

तू मेरी वो उम्मीद है,
जिससे कोई उम्मीद नहीं।

मेरी वो ख्वाहिश,
जिसकी मंजिल नहीं।

वो ज़िद,
जिसकी तलब नहीं।

और वो दुआ,
जो कभी, मांगी नहीं।

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11 JAN 2022 AT 19:16

जब कुछ नहीं बचा था उसके पास,
तब नजरों का सहारा लिया, भागने के लिए।।

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17 JUN 2021 AT 13:38

बरसती हुई बारिश से मैने पूछा••••
धुआंधार गिरती हो, चोट नहीं लगती क्या?
बारिश ने मुस्कुराकर जवाब दिया:
सीधी "माँ" की गोद में गिरती हूं दोस्त,
दर्द का सवाल ही पैदा नहीं होता।।

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13 JUN 2021 AT 2:32

In Life, we choose easy over RIGHT!!
As it's easy to judge than to UNDERSTAND.

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19 FEB 2021 AT 2:28

मेरे वक्त का रवैया गर ऐसा ही चला,
तो दर्द से मैंने दोस्ती कर लेनी है।।

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19 FEB 2021 AT 2:13

मंज़िल तो मेरी तुझ तक की थी,
ना जाने क्यों, जमाना बिगड़ गया।।

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19 FEB 2021 AT 2:02

मंज़िल का मंज़र कुछ अलग सा होता
गर मेरा ख़ुदा मुझसे खफा ना होता।।

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19 FEB 2021 AT 1:56

When stars aren't in your Favour,
People get the licence to judge YOU.

Judge you, and your potential
Holding hammer,
They smash your confidence

Noone, but you,
Hold the rope of Hope,
Making unsparing efforts

Not letting,
a single moment slip by
Believing in YOURSELF
KEEP MOVING FORWARD

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19 JAN 2021 AT 19:10

जीतते हैं वहीं
जिनको जुनूं होता है।।

कुछ करने, कुछ पाने का,
सुरूर होता है।।

ना मिलती है मंज़िल,
ऐसे राह चलते को ।।

ख़ुदा भी, हर किसी की,
मेहनत का हिसाब रखता है।।

ना रखता वो हिसाब,
तो मंज़र ही अलग होता।।

हर गली में, एक मांझी
और, हर पहाड़ पर रास्ता होता।।

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8 DEC 2020 AT 15:50

हद उसके लिए पार करना,
जो तुम्हारे लिए बेहद हो।।

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