कुछ नहीं कहना है! कुछ नहीं करना है! संज्ञाहीन,संज्ञाशून्य हैं हम.. घृणा भी नहीं उपजती नपुंसक नरपुंसकों पर संवेदनाहीन,तथाकथित नरपुंगवों पर मृत संवेदनों का समाज, शिक्षा कोढ़ में खाज मिथ्या का जोश, 24घंटों का शोर.. खोखली वीरता के सोशल-मीडिया वीर.. बोलबाल के चुप,बातों के शेर.. सभ्यता के चीथड़े,लाशों के ढेर..
छोड़ो अब अखबार को, एंकर पर खार निकालो, हटाओ प्रोग्राम को, तुम नया पत्रकार निकालो.. अपनी-अपनी कहनी है तो, चैनल इस बार निकालो.. इंडी-इंडी गाओ, डॉट-डैश-हाइफन-बार निकालो..