मैं चलूंगा किसी रोज
तुम तक पहुंचने की चाह में
पर मुझे भी इल्म है
पहुंच नहीं पाऊंगा तुम तक
शहरों तक नहीं सीमित रहा
हमारे बीच का फासला
ये बढ़ गया है उससे कहीं ज्यादा
फासला अब समय का है
तुम रह रहे हो किसी और वक्त में
मैं किसी और वक्त में रह गया
कई सभ्यताएं बसाई जा सकती हैं
हम दोनों के दरमियान
पर मैं चलूंगा किसी रोज
तुम तक पहुंचने की चाह में।।।-
Not a writer
ना हासिल है तो क्या है
हासिल हो जाना मुकम्मल नहीं है
बंजारे जिस्मों के इस दौर में
वो मेरी रूह का ठिकाना है-
झूठे हैं वो लोग
और झूठे हैं उनके
वो तमाम किस्से
जिसमें वो जीत जाते हैं
खुद से लड़ाई लड़ कर
हर रोज लड़ता है कोई
हर रोज मात खाता है
और फिर से खड़ा होता है
अपने लहुलुहान मन को
एक बार फिर से समेट कर
एक और शिकस्त खाने को-
मुझपर एक एहसान कर दे
ले चल मुझे थोड़ा पीछे
कुछ फैसले गलत हो गए
कुछ वादे अधूरे रह गए
कुछ है जो उलझा सा है
मुझे थोड़ा सुलझा लेने दे
जिन्दगी मेरा एक काम कर दे
मुझपर एक एहसान कर दे
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कुछ दर्द को कम हो जाने में
कुछ जख्मों को भर जाने में
कुछ निश्चित नहीं है ये समय
फासला चंद सांसों का हो सकता है
या सांसों के टूट जाने तक का-
एक दिया बचा रखा है मैंने
बरसों से तुम्हारे नाम की
बैठा हूं इंतजार में तुम्हारे
साथ जलाने की हसरत लिए
अंधेरा घना है दिल एक कोने में
तुम आ जाओ तो उजाला हो-
इसलिए भी जरूरी है
मेरा तुम्हें हर रोज लिखना
कहीं बिखर ना जाऊं रो कर
खुद को रोकने की जिद में-
तुम्हारा शहर
तुम्हारी गली
और तुम्हारी यादें
भिगोने को ये कम थे
की अब ये बरसात भी आ गई-