Akshay Sharma   (अक्षय)
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Joined 8 January 2017


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Joined 8 January 2017
7 MAY 2017 AT 7:31

भारत माँ की गोद का अपनापन,
आज फिर किसी ने पाया है,
न सोचा क्षण भर भी,और चूमा शहादत को,
एक और बेटा आज तिरंगे में लिपटा आया है।

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25 APR 2017 AT 16:58

खुदा भी न बच पाए इस इश्क़ में मंज़र से,
न समझ पाए, क्यों कुछ सुबहों की शाम नहीं होती,
रोए वो भी बिलखकर, छिपके जन्नत के कोनो में,
वरना यूँ ग्रीष्म ऋतु में मूसलाधार बरसात नहीं होती

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21 APR 2017 AT 20:00

कल रात फ़लक से,
उसका एक ख्वाब आया,
सुबह उठा तो मालूम हुआ,
मैं सारी रात नींद में मुस्कुराया,
सबने पुछा जब राज़ इतना मुस्कुराने का,
जब मुँह खोला हमने,
कुछ भी हलक से बाहर न आया,
मैं सकपकाया,
कुछ भी समझ न पाया,
फिर यादों के झरोखे में घुसकर,
जब गौर किया,
कुछ याद आया,
मैं फिर मुस्कुरा दिया,
सबने पुछा फिर से मुझसे,
इस बार न मैंने मुँह खोला,
मन ही मन मैं उससे बोला,
तुम भी न, सचमुच में ज़िद्दी में,
भले गयी हो इतना दूर हमसे,
बिलकुल भी न बदली हो,
करती हो इश्क़ तुम भी हमसे,
बस जुबाँ पे न लाती हो,
न करती हो अब भी बात सबसे,
आज भी शर्माती हो

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12 JAN 2017 AT 21:37

मैं जीता हूँ यही तो गम है
आज लो आंखें भी नम है
तुम्हारी याद में,
पता है
आई थी कल तुम मेरे ख़्वाब में
क्या हुआ, यह लिख न सकूँगा
बस यही कहना चाहूँगा जवाब में
कि जो सपने हमारे रह गए अधूरे
काश मर जाऊं, तुमसे मिल जाऊ
कर दू पूरे

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6 DEC 2021 AT 15:19

कल रात हिचकियाँ तो खूब आयीं होगीं तुम्हें ?
तकिया सीने से लगाकर सोया था मैं

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25 NOV 2021 AT 0:30

बड़ी मेहनत से पाया था वो हमसे जो सब खो दिया,
रिश्तों की ज़ंजीरें ख़ास नहीं थी इतनी की अपना घर खो दिया !
एक अच्छे कल को सोचा और सोचा आज को नज़रंदाज़ कर
मंज़िल की तरफ़ बढ़ते गए कदम और सफ़र खो दिया!
ना जाने किन ख़्वाबों में खोया मैं, समझा ही नहीं हालात को,
कुछ यूँ इश्क़ किया है हमने की इश्क़ का असर खो दिया
जमाने के हर शख़्स से लड़ जाने के हुनर रखता था मैं,
घर आया और हार गया, हमसफ़र खो दिया!

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5 NOV 2021 AT 20:46

इश्क़ भी क्या ग़ज़ब की बीमारी है,
सालों बाद भी बटुए में रखी है इक तस्वीर, वो तुम्हारी है !!
गर्मी, सर्दी, पतझड़ सब झेल ही लेता हूँ मैं,
कमबख़्त बरसात की बूदों में क्यूँ तेरी ख़ुमारी है !!
तेरी गरम साँसें अब भी छू जाती हैं गले को मेरे,
सच मानो, लू से तो अपनी ज़हनी सी यारी है !!
वो झरना अब भी बह रहा है उदास सा होकर,
दिल बना, पेड़ों पे नाम लिखना, आज भी जारी है !!
ग़र मिल गया सबको, तो ये दुनिया पूजना ही बंद करदे!
ख़ुदा बनना है इश्क़ को ‘अक्षय’ उसकी अपनी लाचारी है !!

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26 NOV 2020 AT 22:20

खत हमसफ़र को,
पिछले सफ़र का

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15 OCT 2020 AT 6:51

The Midnight Crisis

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16 JUL 2020 AT 4:44

शब भर जलता है, सहर में टूट जाता है,
लौ के साहिल पे अक्सर अंधेरा छूट जाता है।

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