Akshansh Mathur   (Akshansh (दीवान-ऐ- खास))
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Joined 21 July 2021


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Joined 21 July 2021
3 AUG AT 10:36



कौन होतें है दोस्त,
जो कभी ना छोडे साथ वो होते हैं दोस्त,
मुश्किल पडने पर बिना कहे घर आ जाऐ वो होते हैं दोस्त,
किसी भी बात का जो बुरा ना माने वो होते हैं दोस्त,
दिल की बात को बिना कहे जो समझ जाऐ वो होते हैं दोस्त,
फोन आने पर, है घर पर ही हूँ आजा जो यह कहे वो होते हैं दोस्त,
जो सवाल करें आपसे वो होते हैं दोस्त,
सही राह दिखाने वाले राहगीर होते हैं दोस्त,
अच्छे दोस्त एक सपना होते हैं,
ना जाने क्यों यह एक दो ही होते हैं


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25 JUL AT 0:08

जिस जहाँ में हमने वक्त बर्बाद किया,
उस जहाँ ने ही तुम हो कौन यह सवाल खड़ा किया,
उत्तर नहीं है अब इसका क्योंकि अब जिंदगी ने ही रुसवा किया,
इंसान तो थे हम बहुत शौरत वाले लेकिन, इस जमाने की अजीब राहों ने हमें, दिल ही दिल में बेदखल किया,
पता है सवाल है क ईं लेकिन जवाबों ने भी हमको अब ना मंजुर किया.....

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5 MAY AT 16:26




हम कहाँ ‌, और तुम कहाँ,
ना बातें हैं, ना कोई मुलाकातें,
फिर भी मोहब्बत की परछाई छाई है ,
शायद हमने ऐसे ही मोहब्बत पाई है


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5 MAY AT 16:24

लोगों की जिंदगी गुजर रही इमतिहानों में,
लेकिन हम आज भी जी रहे हैं खुशियों के मयखानों में..


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3 MAY AT 22:33


आज भी आता है दिल में एक ख्वाब,
कि जिंदगी सिर्फ है इम्तिहानों का गुलाब...

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3 MAY AT 21:34

जबां है शब्द नहीं , एहसास है प्यार नहीं,
अपने है अपनेपन नहीं, जिंदगी है लेकिन जीवन नहीं॥

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26 DEC 2024 AT 23:00

ना जाने आज शायद क्या हुआ,
लगता है अफवाहों का बाजार आजकल फिर से गर्म हुआ,
सपना जो था समाज को आगे बढाने का वो चकनाचूर हुआ,
आसमां में भी चांद आज निराश हुआ,
अपनों का अपनों से नज़र चुराना हुआ,
मेरे शब्दों का नहीं आज सही मेलमिलाप हुआ ,
बुराई का आंगन लगता है आबाद हुआ,
फिर भी नहीं मुझमें हिम्मत का साथ कम हुआ,
भुला दो यह तेरा मेरा, दफना दो झूठ का परिंदा,
क्योंकि इसमें सिर्फ प्यार और अपनों का ही नुकसान हुआ,
माफ कर दो हर उस फाजिल को जो अच्छे के लिए तुम्हारा हुआ,
अब वक्त आ गया है जिंदादिली को अपना लो,
झूठ, बुराई तू है कौन यह कहके दफना दो,
जो हुआ आज अच्छा हुआ यह कहके समाज के बाजार को अपने पन से गरमा दो॥




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9 NOV 2024 AT 18:45

चल दिये है हम फिर उस पथ पर,
जिस पर है कांटे कहीं,
दूर से दिखते वो फूल है,
लेकिन असलियत में वो शूल है,
उन शूल में फूल ढूंढने फिर भी चल दिये है हम वहीं.....

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23 OCT 2024 AT 10:37

अदब की दुनिया में हम सबके सामने अदब कर रहे थे ,
लेकिन क्या पता था हमें कि कुछ हमें हीं वहाँ से
बेदखल कर रहे थे.....

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28 SEP 2024 AT 18:31

जब बस हाथ में पकडी थी एक किताब ,
उस दिन हम कवि हो गये,
जब तक हां मे हां मिलाते गये लोगो की,
तब तक हम उनके हो गये,
लेकिन जिस दिन मेरे लिए हुई उनके लिए ना में हां,
हम उनके लिए उस दिन शापित हो गये॥

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