आज भी आता है दिल में एक ख्वाब,
कि जिंदगी सिर्फ है इम्तिहानों का गुलाब...
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जो भी होगा कल देखा जाएगा
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जबां है शब्द नहीं , एहसास है प्यार नहीं,
अपने है अपनेपन नहीं, जिंदगी है लेकिन जीवन नहीं॥-
ना जाने आज शायद क्या हुआ,
लगता है अफवाहों का बाजार आजकल फिर से गर्म हुआ,
सपना जो था समाज को आगे बढाने का वो चकनाचूर हुआ,
आसमां में भी चांद आज निराश हुआ,
अपनों का अपनों से नज़र चुराना हुआ,
मेरे शब्दों का नहीं आज सही मेलमिलाप हुआ ,
बुराई का आंगन लगता है आबाद हुआ,
फिर भी नहीं मुझमें हिम्मत का साथ कम हुआ,
भुला दो यह तेरा मेरा, दफना दो झूठ का परिंदा,
क्योंकि इसमें सिर्फ प्यार और अपनों का ही नुकसान हुआ,
माफ कर दो हर उस फाजिल को जो अच्छे के लिए तुम्हारा हुआ,
अब वक्त आ गया है जिंदादिली को अपना लो,
झूठ, बुराई तू है कौन यह कहके दफना दो,
जो हुआ आज अच्छा हुआ यह कहके समाज के बाजार को अपने पन से गरमा दो॥
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चल दिये है हम फिर उस पथ पर,
जिस पर है कांटे कहीं,
दूर से दिखते वो फूल है,
लेकिन असलियत में वो शूल है,
उन शूल में फूल ढूंढने फिर भी चल दिये है हम वहीं.....
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अदब की दुनिया में हम सबके सामने अदब कर रहे थे ,
लेकिन क्या पता था हमें कि कुछ हमें हीं वहाँ से
बेदखल कर रहे थे.....-
जब बस हाथ में पकडी थी एक किताब ,
उस दिन हम कवि हो गये,
जब तक हां मे हां मिलाते गये लोगो की,
तब तक हम उनके हो गये,
लेकिन जिस दिन मेरे लिए हुई उनके लिए ना में हां,
हम उनके लिए उस दिन शापित हो गये॥-
क्यों खामोश हूँ मैं,
क्योंकि मैं एक लडकी हूँ,
क्या किया मैनें जो हर कोई मुझे आके दबा जाता है,
तेरी रजा है ही क्या बस यह पूछता जाता है,
बेटी होते हुऐ भी कुछ लोग मुझे बेटी का दरजा नहीं देते,
ना जाने क्यों मुझे आगे पढने नहीं देते,
यह मत पहनो बेटी बस कहते रहते हैं,
समाज क्या कहेगा बस यही बोलते है,
जो हमें पत्नी बनाता है,
वो हमको पत्नी जैसे रखता नहीं,
और समाज हमको जीने देता नहीं,
रात को हम कहीं घूमने जा नहीं सकते,
अपने मन माफिक कपड़े पहन नहीं सकते,
दोस्तों संग हम घूम नही सकते,
अगर हम कुछ बन भी जाये,
फिर भी हमें यह समाज पीछे खींच लेता है,
और कलकत्ता जैसी कहानी दोहराता है,
बस करो भी अब, मत करो जुल्म अब हम पर
हमें भी अब जीने दो,
खामोशी से बहार आने दो
कृपया करो समाज अब हमें आगे बढने दो.....
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इस वक्त के साथ रहना है,
दुनिया जो कहे वो सहना है,
अपने सपने को पूरा करने के लिए हर सुलगती लौ में सुलगना है,
असली में,मैं कौन हूँ यह जानना है,
दुनियादारी की भट्टी में जल कर ही आगे बढना है
ना डरना है ना घबराना है,
चल मेरे यार बस यह कहते रहना है,
और अपने लक्ष्य की ओर चलते रहना है....
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क्यों खामोश हूँ मैं,
क्योंकि मैं एक लडकी हूँ,
क्या किया मैनें जो हर कोई मुझे आके दबा जाता है,
तेरी रजा है ही क्या बस यह पूछ जाता है,
बेटी होते हुऐ भी कुछ लोग मुझे बेटी का दरजा नहीं देते,
ना जाने क्यों मुझे आगे पढने नहीं देते,
यह मत पहनो बेटी बस कहते रहते हैं,
समाज क्या कहेगा बस यही बोलते है,
जो हमें पत्नी बनाता है,
वो हमको पत्नी जैसे रखता नहीं,
और समाज हमको जीने देता नहीं,
रात को हम कहीं घूमने जा नहीं सकते,
अपने मन माफिक कपड़े पहन नहीं सकते,
दोस्तों संग हम घूम नही सकते,
अगर हम कुछ बन भी जाये,
फिर भी हमें यह समाज पीछे खींच लेता है,
और कलकत्ता जैसी कहानी दोहराता है,
बस करो भी अब, मत करो जुल्म अब हम पर
हमें भी अब जीने दो,
खामोशी से बहार आने दो
कृपया करो समाज अब हमें आगे बढने दो.....
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कितना आसान है ना कहना कि,
हम तुम्हें पाना भी नहीं चाहते,
और खोना भी नहीं चाहता,
और इस बेवफाई में रोना भी नहीं चाहते॥
DK
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