हमने "फ़िक्र" में पूछा पता उनका,
वो 'शक' समझ कर साथ छोड़ गए।-
प्रत्रकार।
तुम्हारी आजादी से ही तो मोहब्बत है हमको!
आखिर कैसी दिल में रख कर तुम्हें कैद कर लें ?
पिंजरा कितना भी सुंदर क्यों न हो होता पिंजरा ही है।-
सुनो,
बड़े शौक से लिख रहा हूं तुमको तुम पढ़ोगी न?
हां वहीं दुपट्टा ओढ़ मेरी लिए सजोगी न?
वो तुम्हारा नज़रे मिलते ही मुस्कुरा देना, मुझको हर बार तुम्हारा दीवाना कर देता है।
जो इतने दिनों बाद मिली हो आज, गले लगोगी न!
बड़े शौक से लिख रहा हूं तुमको तुम पढ़ोगी न?-
पढ़ना छोड़ दिया है मैने अब इन शायरों को,
न जानें इन्हें मेरी कहानी कैसे पता चल जाती है।-
तुम्हारा हाथ पकड़ कर, तुम्हारी आखों में बस खोना चाहता हूँ
बस सिर्फ तुमको खोने के डर से मैं हर बार तुम्हारा होना चाहता हूँ।
हां जानता हूँ, मेरा तुम्हारे करीब आना तुमको मुझसे और दूर ले जाएगा,
इसी लिए तुमको दूर से ही देख मुस्कुराना चाहता हूँ
बस यूंही सदा तुम्हारे साथ का वादा चाहता हूं
तुम्हारा हाथ पकड़ तुम्हारी आखों में बस खोना चाहता हूँ।-
पैसे से मैं सचमुच नसीब ख़रीद लेता,
पर नसीब में ही पैसा नहीं है।।-
उसकी किताब में मेरा किरदार बुरा है,
मेरी किताब में अब उसका पन्ना ही नहीं।-