Akshaj Singh Kalchuri   (अक्षज)
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Joined 30 March 2017


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20 AUG 2019 AT 10:04

काफ़िर हूँ मुझे काफ़िर ही रहने दो,
इश्क़ की गलियों में उसे पाख़ और मुझे नापाख़ ही रहने दो

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7 AUG 2019 AT 21:30

जीत हार तो ज़िंदगी का एक हिस्सा है,
तेरी ये हार ही तेरी जीत का मशहूर क़िस्सा होगा
उस दिन तू अपनी सारी हार का पूरा हिसाब लेगा,
और ये ज़माना तेरी उसी हार की सबको मिसालें देगा,
अभी तो तू बस हालतों से हारा है, फ़िक्र मत कर ए मुसाफ़िर, बहुत जल्द तू अपने अंदर छुपे हीरे को तराशने वाला है

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11 MAR 2018 AT 13:29


11 MAR 2018 AT 13:25

ऐ खुदा सिर्फ़ एक ही गिला है मुझे तुझसे,
इश्क़ में महरूम-ए-तमाशा, बना मैं खुदसे,
अब अपनी ही फ़रियाद-रस मैं करूँ किससे

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18 FEB 2018 AT 21:13

मैं तो बस उसके इंतज़ार में यूँ ही अपना समय निकाल लेता हूँ
हर रोज़ बस उससे अपने फ़ासले कम करने के लिए जी जान लगा लेता हूँ

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17 FEB 2018 AT 23:25

अपनी आँखों में उसके लिए हद से ज़्यादा नफ़रत बढ़ाने की कोशिश की थी मैंने
पर एक नज़र जो मिली उसकी आँखों से, अपनी सारी कोशिशें हँसते हँसते मिटा दी मैंने

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9 FEB 2018 AT 22:06

मैं लिखता हूँ उसको सोचकर
और वो पढ़ती है उसको सोचकर

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8 FEB 2018 AT 0:25

भीड़ में होकर भी कोई सुन नहीं पाएगा अब मेरी चीख़ों को, अब कोई नहीं देख पाएगा, मेरा और मेरी रूह का लड़ना,
क्यूँकि सीख लिया है अब मैंने अपने जज़्बातों को ख़ामोश करना

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1 FEB 2018 AT 21:36

लफ़्ज़ों की एक बहुत ही ख़ूब और नाचीज़ ख़ासियत है,
जिसके लिए उतरते है, उसके लिए ही अनजान बन जाते हैं,
अगर उनको बहुत ख़ूबसूरती से उसके पास पहुँचाऊँ तो कमबख़्त इतरा जाते है,
मगर है तो मेरे ही लफ़्ज़, उसके दिल में बस जाने के लिए हर हद पार कर जाते हैं

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31 JAN 2018 AT 11:34

लोगों से दूर रहना सीख लिया है मैंने, शायद अकेलेपन से इश्क़ करना सीख लिया है मैंने

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