Bahut soch samajhkar bolne ki zarurat hoti hai
maine bahut se qatl kiye hain is zuban hathiyar se,
bahut se zakhm diye hain apni guftaar se,
jin ka yaad tha unse to talab kar li maafi aks ne,
jinse na kar paya, maazirat khwah hun un sab se,
ummeed hai bakhshish ki mujhe al kahhar se 🙏-
Aks Faqat Wohi Likhta Hai Jo Wo Ilhaam ka... read more
Suna hai wo nazar se chhupa hai
Khalaa me fir ye kiska chehra hai?
Na jane yaha kisko ikhtiyar hai?
"Aks" ke to khayalo par bhi pehra hai-
हर साल दशहरा हमें याद दिलाने आता है कि हर इंसान को अपने अंदर के रावण, यानी अहंकार को और उसके नौ सिरों—जो अहंकार से जुड़ी नौ बुराइयों का प्रतीक हैं—को कुचलना चाहिए, क्योंकि बाहर रावण का पुतला जलाने से अंदर का रावण नहीं मरेगा; परंपरा निभाने के लिए पुतला जलाएं, लेकिन धीरे-धीरे उन दस सिरों को भी मारते जाएं जो हमारे भीतर छिपे हैं—अहंकार, अविश्वास या बेईमानी, क्रोध, ईर्ष्या, प्रकोप या अतिरिक्त क्रोध, लोभ, संदेह, अन्याय और अधीरता। इन नकारात्मक गुणों को त्यागकर हमें भगवान श्री राम के सकारात्मक गुणों को अपनाना चाहिए, जैसे धैर्य, निष्ठा और सहनशीलता, ताकि हमारा जीवन धर्म, सत्य और शांति से भर जाए।
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क़ुर्बान है जान ए अक्स,
क्या दिलकश है उसका उसलूब
सुकून पाना चाहते हो?
अला ! बि-ज़िक्रिल्लाहि
ततमईन उल क़ुलूब
सुन लो! अल्लाह की याद
ही से दिलों को इत्मीनान
(सुकून) हासिल होता है।
सूरह 13, आयत 28
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आक़ा की शान बता देती है गुलामो की शुजाअत
ए अक्स
गुलाम पर लाज़िम है फ़क़्त आक़ा की इताअत-
मुर्शिद की नज़रो से,
मुरीद को,
पिलाया जाता है ये जाम,
इसे वो क्या जाने,
जिसे ना मालूम,
हकीकत ए दुरूद ओ सलाम,
हर सूफ़ी ने पढ़ा जब यह कलिमा,
तभी बन सका वो वली अल्लाह,
ला इलाहा इल्लल्लाह,
मुहम्मदुर रसूलुल्लाह,
व अलीयुन वलीयुल्लाह-
जल्द या बा देर, मरेगा हर "शख्स"
जो था,है,और रहेगा वो है "अक्स"
अक्स हिन्दू भी है,मुसलमान भी
पढता है गीता और क़ुरआन भी
सुन्नी भी है शिया भी, पंडित भी शूद्र भी
यूं तो शांत है एक वक्त बनता है रोद्र भी
अक्स से मुराद यहाँ रूह / आत्मा से है, और शख्स जिस्म से-