तु बिछड़ा है मुझसे,
कई दफ़ा,
कई दफ़ा रोया हूँ मैं,
तु आ मिला है मुझसे,
कई दफ़ा,
कई दफ़ा रोया हूँ मैं,
चल आँसू न सही,
क्या राहत ही मिली कभी?
या यूँ ही किसी किवाड़ जैसे,
धक्के खाता रहा हूँ मैं।
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दोस्ती वफादारी मोहब्बत सब बिकाऊ है दुनिया के बाज़ार में,
हम साला इन्हे अनमोल समझ संजो बैठे थे।-
ना सुबह सुबह लगता है, ना शाम शाम लगती है।
ना सही ना बुरी लगती है, अब हर बात बस बात लगती है।।-
वो घर जो सिर्फ पत्थर नहीं,
कभी तुम्हारा तर्ष था,
जिसका फर्श तुम्हारे पैर का
जमीन पे पहला स्पर्श था,
जिसमें पापा के बाहर होने पे भी,
वैसा ही आदर्श था,
जिसमें मां के ननिहाल होने पे भी,
उनके गोद सा मृदुस्पर्श था,
आज उसे बीहड़ बना कर तुम,
किस मकान की ख़ोज में हो?-
यूंही रूठ जाया कर,
जब मैं तुझे देख खिल ना उठूं।
यूंही रूठ जाया कर,
जब मैसेज का रिप्लाई आए न समय पर।
यूंही रूठ जाया कर,
कि आज पुचकारा नहीं सर थाम कर।
यूंही रूठ जाया कर,
कि मुझे तेरी याद ना आई शाम भर।
यूंही रूठ जाया कर,
मेरे हर आई डोंट लव यू पर,
यूंही रूठ कि,
मनाया नहीं मेरे रूठने पर,
हंसाया नहीं मुंह फुलाने पर,
सीने से लगाया नहीं दौड़े चले आने पर।
पर बस शांत ना होना,
की मैं मनाऊंगा, हर बार मनाऊंगा,
तेरे रूठ जाने पर।
यूंही रूठ जाया कर.....-
तू डर रहा है कि सच,
कही तेरे मेरे बीच का न बदल दे?
वो जिसने चाहा था हर रोज,
कही मुझे छोड़ के न चल दे?
ये मत भूलना,
किसी के कहने पे,
किसी मजबूरी में,
किसी के सताने पे,
नहीं पकड़ा था हाथ तेरा।
नहीं कहा था,
कुछ गलत किया तो,
छोड़ दूंगा साथ तेरा।
तुझे अपनाया है तेरा सब जानके,
तुझमें विश्वास रखा है तुझे अपना मान के।
कि यूं ही नहीं छोड़ देता है आकाश बादलों को,
जब उन्हें जाना हो, तो राह दे देता है सीना फाड़ के।
साथ की चाहत है, तू ज़िक्र तो कर उसका,
प्यार की लालच है, तू जता तो सही,
मैं हूं ना, मैं हूं कि मान लिया है सब तुझे,
कभी छोड़ के जाऊंगा नहीं।-
तू हम में मैं कैसे ढूंढ लेता है?,
मुझे मुझमें तेरे सिवा कोई दिखता नहीं!-
तुम आते हो,
बदल लाते हो,
बारिश होती है,
वो भीनी भीनी सी खुशबू,
मुझे तुझमें पिरोती है।
तुम चलते हो,
राह बनाते हो,
उस पार की उम्मीद होती है,
वो मंजिल पाने की खुशी,
मुझे तुझमें पिरोती है।
तुम सिरहाने हो,
गोद लिए बैठे हो,
जो अभी इस पल की शांति है,
ये मेरा तुम्हारा लम्हा,
मुझे तुझमें पिरोता है।-
तेरी ख़ूबसूरती के सब कायल हैं,
वो छुपा हुआ दिल नहीं देखा,
अमानत सब मानते हैं,
किसी ने सहेजना नहीं सीखा,
कोई कैसे समझे
तू सिर्फ एक मिट्टी की मूरत नहीं,
तेरा वो ख़ूबसूरत दिमाग नहीं देखा।
तुम रहो ना पास,
कुछ तुमसा बन जाऊं,
तुम रहो ना साथ,
कुछ बिगड़ के बन जाऊं,
चिराग़-ए-दिल दे रहा हूं,
आंच संभाल लेना,
साथ देना,
कुछ ऐसा बना लेंगे
हम भी जीने का सलीका।-
गुलाब सी गुलाबी लिए,
पंखुड़ियों सी पलकें
जब शर्मा के झुकती हो,
पत्तों पे पड़ी ओस सी चमकती हो।
गुलाब सा प्यार लिए,
चेहरे पे बिखरे ज़ुल्फ
जब सावरकर कान पे रखती हो,
उन अदाओं से जान लेती हो।
गुलाब सा दिल लिए,
कांट-ए-इश्क़ से
मंज़िल-ए-इश्क़ तक पहुंचाती हो,
ऐसे इश्क़ का बौझार करती हो।
जिस पुष्प को सोच ऐसी कविता बन जाए,
तुम मेरी उसी गुलाब जैसी ही तो हो।-