Life is not about ARITHMETIC, i.e. + - × ÷ or % hardly matters,
Life is all about LOGIC.
1 && 1 = 1
Two GOOD things together give a GOOD thing...
1 || 0 = 1 and 1 && 0 = 0
If you have a GOOD thing and a BAD thing then it all depends what you choose, if you want both then you get NOTHING but if you want only one of them then you definitely get a GOOD thing...
But 0 && 0 = 0 and 0 || 0 = 0
If you have two NEGATIVE(BAD) things, then you wont get a GOOD thing until and unless you CHANGE it by yourself i.e. 0! = 1-
कभी बैठ के सोचता हूं क्या ही है जिंदगी...? जो कहा जाता है, वो चार दिन या सिर्फ एक सफर जिसमें हम अँग्रेजी वाला Suffer करते है... कुछ लोग देखे है मैंने जो इसे जी रहे है, तो कुछ आज भी इससे जुझ रहे है, कुछ ने इससे सुलह कर ली है और कुछ आज भी छलते जा रहे है... मैं एक दर्शक बन कर सिर्फ देख रहा हूँ, इस व्यतित होते समय को और एक ख़्याल आ रहा है जहन में
"कम समय में भी ज्यादा जी लेने को क्या बुढ़ापा कहा जा सकता है?"
~ अखिल गुप्ता
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पितृ पक्ष में पुत्र उठाना अर्ध्य न कर में, पर प्याला
बैठ कहीं पर जाना, गंगा सागर में भरकर हाला
किसी जगह की मिटटी भीगे, तृप्ति मुझे मिल जाएगी
तर्पण अर्पण करना मुझको, पढ़ पढ़ कर के 'मधुशाला'।
- हरिवंशराय बच्चन-
"जिंदगी भी मानो फकीरी सम हो चली है,
सभी की उम्मीदों का आशना मैं हूँ ,
कुछ की नज़रों में आमीर हूँ हसरतों का,
बाकियों के लिए मुफ़लिसी की दास्ताँ मैं हूँ..."-
"राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा। हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा॥
बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ। श्रम फल पढ़ें किएँ अरु पाएँ॥
संग तें जती कुमंत्र ते राजा। मान ते ग्यान पान तें लाजा॥
प्रीति प्रनय बिनु मद ते गुनी। नासहिं बेगि नीति अस सुनी॥
रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि।"
~ तुलसीदास / श्रीरामचरितमानस-
"यह एकलिंग का आसन है
इस पर न किसी का शासन है
नित सिहक रहा कमलासन है
यह सिंहासन सिंहासन है...
यह सम्मानित अधिराजों से
अर्चित है¸ राज–समाजों से
इसके पद–रज पोंछे जाते
भूपों के सिर के ताजों से...
इसकी रक्षा के लिए हुई
कुबार्नी पर कुबार्नी है
राणा! तू इसकी रक्षा कर
यह सिंहासन अभिमानी है..."
~ श्याम नारायण पांडेय
'हल्दीघाटी'-
"किन्तु, कौन नर तपोनिष्ठ है यहाँ धनुष धरनेवाला?
एक साथ यज्ञाग्नि और असि की पूजा करनेवाला?
कहता है इतिहास, जगत् में हुआ एक ही नर ऐसा,
रण में कुटिल काल-सम क्रोधी तप में महासूर्य-जैसा!
मुख में वेद, पीठ पर तरकस, कर में कठिन कुठार विमल,
शाप और शर, दोनों ही थे, जिस महान् ऋषि के सम्बल।
यह कुटीर है उसी महामुनि परशुराम बलशाली का,
भृगु के परम पुनीत वंशधर, व्रती, वीर, प्रणपाली का।"
~ रश्मिरथी / 'दिनकर'-
जय-जय भैरवि असुर भयाउनि
पशुपति भामिनी माया
सहज सुमति वर दियउ गोसाउनि
अनुगति गति तुअ पाया
वासर रैनि सबासन शोभित
चरण चन्द्रमणि चूड़ा
कतओक दैत्य मारि मुख मेलल
कतओ उगिलि कएल कूड़ा
सामर बरन नयन अनुरंजित
जलद जोग फुलकोका
कट-कट विकट ओठ पुट पांडरि
लिधुर फेन उठ फोंका
घन-घन-घनय घुंघरू कत बाजय
हन-हन कर तुअ काता
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक
पुत्र बिसरू जनि माता...
~ विद्यापति-
"Calendar or Calendars"
I don't know how many Calendars are there and how many of them I follow...?
I follow Hindu Calendar for my religious year, Financial Calendar for Banking or Work Life, Stock Market Calendar for Trades, and Julian Calendar for Counting on Days and Dates...
Anyways it's 1st January and the Year changed so *Happy New Year* to All of you who are in touch with me and also to whom who are not...
I am great full to all of you just to be there in anypoint of time in 2022 and hope to see you again in 2023...😇-