Akhand Pratap Singh   (शिवाas ✍️🏻)
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लिखने के प्रयास में... ✍️🏻
Joined 28 May 2018


लिखने के प्रयास में... ✍️🏻
Joined 28 May 2018
27 FEB AT 0:55

किसी ने तेल डाला, कोई लाया मशाल, किसी ने आग लगाई, किसी ने दी हवा।
मेरा घर जलाने में सबकी अपनी भागीदारी थी।।

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6 FEB AT 17:45

जो ढूंढना हो इस जहाँ में खोए हुए शख्स को तो बेशक ढूंढ लोगे तुम।
मगर जो तलाशना हो उनके भीतर खोए उस पुराने शख्स को, तो यकीनन मेरे दोस्त हार जाओगे तुम।।

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30 JAN AT 11:38

इंसान की जब मति फिर जाती है, तो सबसे पहले उसे अपने प्रियजनों और शुभचिंतकों की बातें अप्रिय लगने लगती हैं।

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13 JUL 2022 AT 2:27

उनकी एक झलक जो पाता हूँ,
मैं जहाँ की मुश्किलें भूल जाता हूँ।

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14 DEC 2021 AT 22:38

आत्मा अजर-अमर-अविनाशी है और अनेक जन्म लेती है,
तो निश्चय ही आत्मा से जुड़े हमारे सम्बन्ध भी एक जन्म तक सीमित नहीं।

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25 NOV 2021 AT 3:04

घनी अंधेरी रात में चाँद खिला हो जैसे।
उन काली ज़ुल्फ़ों के बीच वो चेहरा दमकता है ऐसे।।

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20 AUG 2021 AT 3:35

Perfection attracts everyone.
But isn't Love all about accepting & loving those imperfections & flaws??!

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15 AUG 2021 AT 21:50

कितनों की लाशों पर पग धरकर आज़ादी भारत में आयी।
क्यों कहते हो बिना खड्ग बिना ढाल आज़ादी हमने पायी।।

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29 JUL 2021 AT 22:55

खिड़की से आती मिट्टी की खुशबू,
कानों में पड़ती बारिश की आवाज़,
अधमुन्दी आँखों में उनसे मिलने के सपने
और लबों पर ठहरी ये मन्द सी मुस्कान।

ये मौसम... इसके मिजाज़... और उनकी याद...

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29 APR 2021 AT 4:24

आँखें मूंदूँ तो ख़्वाब उनका।
जो आँखें खोलूँ तो दीदार उनका।।

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