वो और लोग हैं जो गैरों को बात करते हैं,
मेरे हर बात में है जिक्र इस शहर के लिए!
बेमानियत की कहानी भरी पड़ी है यहां,
हिसाब छोड़ रखा है सही समय के लिए!
चलो बता भी दो कितने में बिके थे तुम,
बेईमान बन गए हो आज हर नज़र के लिए!
जमीर बेच के कुछ लोग अमीर बन बैठे,
बिग गया है अखबार जैसे खबर के लिए!
चापलूसी का लिबास ओढ रखा था तुमने,
भेद खुल गए हैं अब उम्र भर के लिए!
चंद सिक्के चुरा के इतरा लोगे तुम,
काबिलियत चुरा नही पाओगे जिंदगी भर के लिए!
वो और लोग हैं जो गैरों को बात करते हैं,
मेरे हर बात में है फिक्र इस शहर के लिए!-
रिश्तों ने आजकल बस मुखौटा पहन रखा है,
भोले चेहरों के पीछे छिपे बेईमान, ईमान चाहते हैं।
दूसरे की मेहनत को मार के खाने वाले,
बेइमानी की दौलत पे ईमानदार चौकीदार चाहते हैं।
झूठ के चकले पर बेइमानी की बेलन चलाने वाले,
रोटी में तेल लगा के घी का स्वाद चाहते हैं।
खैरात में मिली जायदाद से इतराने वाले,
मेहनत से कमाई दौलत का मुकाम चाहते हैं।
बेअदब, बेअकल, और बेईमान हैं जो लोग,
बेईमान को बेईमान ना बोलूं ये बेईमान चाहते हैं!!-
सब छूट गया तेरे जाने से,
सब टूट गया तेरे जाने से!
सपने, यादें, लम्हे, बातें,
सब खत्म हुआ तेरे जाने से,
सब टूट गया तेरे जाने से!
हंसता लम्हा हंसी ठहाके,
तेरे चेहरे पे जो आके,
सब बंद हुआ तेरे जाने से,
सब टूट गया तेरे जाने से!
बिखरी स्याही बिखरे पन्ने,
जो नई कहानी बैठे थे लिखने,
सब छूट गया तेरे जाने से,
सब टूट गया तेरे जाने से!
थकता था मैं जिस दिन जीवन से,
सर झुकता था बस तेरे कंधो पे आके,
सब छूट गया तेरे जाने से,
सब टूट गया तेरे जाने से!-
मैं था तुमसे दूर सही, पर याद हमेशा करता था,
तस्वीरों को देख तुम्हारे अक्सर मैं रो लेता था,
पर एक शुकूँ जो दिल में मेरे हरदिन-हरपल रहता था,
की इसी शहर के उस कोने में यार हमारा रहता था!
उस कोने की हर गलियाँ अब वीरानी हो जाएँगी,
उस कोने में बस तेरी अब यादें ही रह जाएँगी,
जिस मोड़ के आगे छोड़ हमे तुम आगे को बढ़ जाओगे,
बस उसी मोड़ पर कही अकेले खड़ा मुझे तुम पाओगे!
शहर का हर इक जर्रा-जर्रा बस तेरी बातें करता है,
जहाँ कँही भी जाऊँ हरपल बस तुमको कहता-सुनता है,
शहर के उस कोने से हर दम तेरी यादें आती हैं,
हवा के हर झोके से छन कर तेरी ख़ुशबू आती है!
पर वो ख़ुशबू अब मुझे कँही नहीं मिल पायेगी,
और वो यादें याद शहर की दीवारों में चुन जाएँगी,
छोड़ अकेला तुम 'बिसेन' को जहां कभी भी जाओगे,
याद शहर के हर ज़र्रे का 'गौरव' तुम बन जाओगे!-
हर कौम में होते हैं जाहिल कुछ ही,
हर शख़्स भगत सिंह और कलाम थोड़ी है!
अगर फैलेगी ये बीमारी तो आएंगे सब जद में,
यहां केवल मेरा मकां थोड़ी है!
महामारी है ये जो होगी सबको,
इसके लिए कोई हिन्दू और मुसलमान थोड़ी है!
फैला के बीमारी छिप जाओगे घर में,
ये मेरा शहर है कोई सराय थोड़ी है!
दूरी बना के रखो इक दूसरे से अब,
इसकी दवा रामायण और कुरान थोड़ी है!
७२ हूरों से मोहब्बत बाद में कर लेना,
हर शख़्स की इतनी सस्ती जान थोड़ी है!
बोलने की आजादी दी है इस हुकूमत ने ही,
पर अदब भूल के बोलोगे ये कोई बात थोड़ी है!
सच को सच बोलने की हिम्मत रखो,
हर वक़्त हुकूमत झूठी और बेईमान थोड़ी है!-
"बिगाड़ देंगे श्रीमान जी हुलिया,
पहुँचेगे आप जो मेवालाला की बगिया,
पुलिस खड़ी है डगर डगर,
आ मत जाना आप अशोक नगर,
लठ सज़ा रखे हैं हर एक रोड पर,
निकलिए तो सही ADA मोड़ पर,
लाल कर देंगे आपका पिछवाड़ा,
घूमने जो गये आप नए पुल दोबारा,
शरीर के हर अंग में लगा देंगे जंग,
जो आप चले गए दारागंज,
बदन से निकलेगी भयानक आग,
चले मत जाना आप कंपनी बाग,
लगा न पाओगे 'बिसेन' अपने मरहम,
मस्तियाने जो पहुँचे त्रिवेणीपुरम,
मार मार के कर देंगे टांगे मोटी,
टहलने जो पहुंचे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी,
घरवाले भी आपको पहचान न पाएंगे,
अगर आप घूमने सिविल लाइन्स जाएंगे,
समान लेने के बहाने जो आपको घूमने की पड़ी,
बालसन चौराहे पर लठ्ठ लेकर पुलिस है खड़ी,
लंगड़ाते जाएंगे 'बिसेन' अपने घर की डगर,
आ कर तो देखिए आप ट्रांसपोर्ट नगर,
तोड़ देंगे शरीर का कोना-कोना,
जहाँ दिख गए स्वीटी और बाबू शोना!"-
"जो भी ये सुनता है हैरान हुआ जाता है,
अब कोरोना भी मुसलमान हुआ जाता है।"
- ' मुनव्वर राणा '
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"थूक कर हकीमों को बीमार किया जाता है,
ये कैसा इस्लाम का ईमान हुआ जाता है!
लगा रही है मरहम जिस हैवान को वो नर्स,
सुना है उसे पत्थर से मार दिया जाता है,
ये कैसा इस्लाम का ईमान हुआ जाता है!
पढ़के कुराने - पाक की सूरा और आयत,
कोई कलाम हुआ जाता है कोई कसाब हुआ जाता है,
ये कैसा इस्लाम का ईमान हुआ जाता है!"-
वो कायनात की राहों में यम से भी लड़ के बैठेगी,
जब जब दुहशासन झपटेगा, वो कान्हा की ओर ना देखेगी,
वो चक्र सुदर्शन खुद लेगी, वो वार वहीं पे कर देगी,
तांडव बन करके शिव का अब, संहार वहीं पे कर देगी,
वो शक्ति है, वो अंबा है, वो सृष्टि की जगदम्बा है,
सृजन अगर है किया कभी,तो संहार वहीं फिर कर देगी,
वो सोई थी पर जागेगी,अपनी ममता को त्यागेगी,
वो फिर से करवट बदलेगी, वो न्याय स्वयं ही कर लेगी!
अब कोई मीरा ना आएगी, अब ज़हर नहीं पी पाएगी,
अब सीता भी घर छोड़ कभी, जंगल में ना अब जाएगी,
वो 'चार लोग' कुछ भी बोले, खुद को ना वो झुलासाएगी,
तुम बोलो की पत्थर बन जा, इक और अहिल्या ना होगी,
बहोत हुआ सम्मान यहां, कुल की मर्यादा का ज्ञान यहां,
अर्जुन की राह ना तकेगी, वो खुद गांडीव उठा लेगी,
वो सोई थी पर जागेगी, अपनी ममता को त्यागेगी,
वो फिर से करवट बदलेगी, वो न्याय स्वयं ही कर लेगी!-
वो खामोशी की मूरत सी
वो भोली भाली सूरत सी,
जो ख़ालिस है गंगा जैसी,
जो ख्वाहिश हो जन्नत जैसी,
वो सुंदर एक ग़ज़ल जैसी,
वो सच है एक कलम जैसी,
वो जीवन के एक अज़ल जैसी,
वो मुस्काती हो तो मानो,
लगती है एक कमल जैसी,
वो ईश्वर के एक फज़ल जैसी,
वो जीवन के एक फ़लक जैसी,
बे - ज़र को जो बे - गम कर दे,
वो वैसी पाक नज़र जैसी,
वो कायनात के राहों में,
'बिसेन' के एक जफर जैसी
वो नारी है फूलों जैसी,
वो नारी है फूलों जैसी!-
कहां गया वो हंसता चेहरा, आज दीवारें कहती हैं,
इस कमरे के हर कोने में याद तुम्हारी रहती है!
देख जिसे मैं खुश होता था, बाहों में जो रहती है,
इस कमरे के हर कोने में याद तुम्हारी रहती है!
किसे संजोऊ किसे हटाऊ, ये गुत्थम गुत्थी होती है,
इस बिस्तर से उस तकिए तक खुश्बू तेरी होती है,
इस कमरे के हर कोने में याद तुम्हारी रहती है!
जिस कुर्ते को तुमने पहना, वो बगल में मेरे होती है,
इस कमरे के हर कोने में याद तुम्हारी रहती है!
तेरी हर तस्वीर से अक्सर बातें मेरी होती हैं,
इस कमरे के हर कोने में याद तुम्हारी रहती है!-