Akash Srivastava   (#akash)
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Joined 17 March 2018


Joined 17 March 2018
8 AUG 2022 AT 23:06

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21 NOV 2018 AT 15:50

मज़ारों पे हम जाएं, मंदिरों में तुम आओ
एक रोज़ के लिए सब अनदेखा कर लेते हैं

कभी गीता के पन्ने तुम पलटो
एक शाम की नमाज़ हम अदा करें

चलो आज ये समझौता कर लेते हैं

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15 JAN 2022 AT 11:18

उस फकीरी में भी क्या बात थी
कटी पतंग के पीछे
आधा मोहल्ला दौड़ जाया करते थे
बड़े लिहाज से बांधे थे सभी धागे हम
फिर भी कुछ
दूर जाते ही खुल जाया करते थे

ढीली रख कर डोर रेशम की
हम अर्श पर भी हुकूमत दर्ज कराया करते थे
उनकी आंखो को बस समझ नहीं पाए हैं अभी तलक
कभी रंग देख कर हम
मांझे की दुकान बताया करते थे।

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15 JAN 2022 AT 10:07

उनकी आंखो को बस समझ नहीं पाए हैं अभी तलक
कभी रंग देख कर हम
मांझे की दुकान बताया करते थे...




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15 JAN 2022 AT 10:05

ढीली रख कर डोर रेशम की
हम अर्श पर भी
हुकूमत दर्ज कराया करते थे



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15 JAN 2022 AT 10:03

बड़े लिहाज से बांधेते थे सभी धागे हम
फिर भी कुछ
दूर जाते ही खुल जाया करते थे




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15 JAN 2022 AT 10:01

उस फकीरी में भी क्या बात थी
कटी पतंग के पीछे
आधा मोहल्ला दौड़ जाया करते थे




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21 SEP 2021 AT 13:43

एक नजर भर ही सही
उस नजर की कसम
तुम्हे नजर लग जायेगी

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16 SEP 2021 AT 22:55

सोए हैं फलक के चादर में

रखे हैं ख्वाब हथेली में
तारों से सजाकर




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16 SEP 2021 AT 21:29

रौशनी कब तक है
दिया जला लो
हुनर जब तक है




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