Akash Sikarwar  
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लिखना है कुछ ऐसा जिसे पढ़े कोई भी लेकिन समझो "सिर्फ तुम"
Joined 21 July 2017


लिखना है कुछ ऐसा जिसे पढ़े कोई भी लेकिन समझो "सिर्फ तुम"
Joined 21 July 2017
3 DEC 2021 AT 0:15


किसी दिन सब सही होगा कोई जिरह नहीं होगी,
किसी से रूठने मनाने की भी कोई वजह नहीं होगी,
झूठ कहते हैं लोग कि अंधेरा है तो सवेरा भी होगा,
तुम देखना किसी दिन हम आंखें मूंदेंगे और सुबह नहीं होगी.

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13 OCT 2021 AT 9:49

कितनी बातें कहने को हैं,
सुनने वाला कोई नहीं,
उधड़े ख्वाबों को दुनिया में,
बुनने वाला कोई नहीं,
माना मुश्किल हो जाता है,
तन्हा-तन्हा जीना भी,
जीते हैं फिर भी सब,
मरने वाला कोई नहीं...

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4 AUG 2021 AT 9:51

दुःख, तुम फिर आए हो,
आओ बैठो स्वागत है.
पर तुम दरवाजा खट-खटाकर क्यों नहीं आते,
जो लेकर गए थे पिछली बार उसे वापस क्यों नहीं लाते,
खैर आजकल तुम बहुत जल्दी-जल्दी आ रहे हो,
मुझसे मेरा सुख चैन छीनते ही जा रहे हो,
अब देने को मेरे पास ऐसा बचा ही क्या है,
सिवाय आंसुओं के अब मेरे पास रखा ही क्या है,
और भी कुछ ले लेना पर मुझे थोड़ा सोचने तो दो,
और कुछ लेने से पहले मुझे आंसू पोंछने तो दो.
दुःख, तुम फिर आए हो,
आओ बैठो स्वागत है...

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22 JUL 2021 AT 12:32

पूरी दुनिया के काम कोई कर सका है क्या,
सुख-दुःख से दुनियादारी से कोई तर सका है क्या,
कितने भी पत्थर बनकर सबसे रिश्ते-नाते तोड़ दो,
मोह-ममता और अहम से कोई बच सका है क्या!

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18 JUL 2021 AT 20:29

सोचने बैठा तो ख़्वाब परत-दर-परत उधरते गए,
मेरे अपने ही मेरे ख़्वाबों को कुतरते गए,
जब पलट कर देखा तो खुद को अकेला ही पाया,
वो जो खास थे मेरे सब नजर से उतरते गए.




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10 JUL 2021 AT 6:30

दुख को हमेशा दिलासे और,
हमदर्दी की जरूरत नहीं होती,
दुख कभी-कभी एकांत चाहता है.


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25 JUN 2021 AT 22:56

कभी शहर का शोर-शराबा भी,
मन को स्थिर रख पाता है,
कभी गांव में झींगुरों की आवाज़ भी,
मन को व्यथित कर देती है.
कभी तुमसे दूर हो जाना खलता नहीं है,
और कभी दूर होने की बात भी,
परेशान कर देती है.

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19 JUN 2021 AT 20:20

कितना भी कस कर पकड़ो हाथ,
पर साथ तो छूट ही जाता है,
समय न मिल पाए रिश्ते को,
तो रिश्ता टूट ही जाता है,
एक उम्र तक सबको संभाला फिर सबको छोड़ दिया,
जिसने जाने का कहा उसको दरवाजे तक छोड़ दिया,
मैं खुश तो तब भी था जब सब साथ थे,
भले ही वो सब आस्तीन के सांप थे,
मैं अब भी खुश हूं जब कोई साथ नहीं,
अकेला हूं पर कोई बात नहीं,
जो भी किया अपने दम पर किया है,
ज़िन्दगी को हमने अपने दम पर जिया है.

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17 JUN 2021 AT 10:32

अपने हालातों का मैं खुद ही जिम्मेदार हूं,
किसी और का गुनाह क्यों मानूं,
दुनिया खिलाफ है तो हो जाए,
मैं भला किसी का बुरा क्यों मानूं.

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14 JUN 2021 AT 12:05

सुन ज़िन्दगी, या तो मुझे खुद में ढलना सिखा दे,
या फिर मुझे ढंग से चलना सिखा दे,
बार-बार गिरना ऐसे ठीक नहीं लगता,
यूं खुद को समेटना भी ठीक नहीं लगता,
देख या तो बीती हुई सब यादें भुला दे,
या फिर पलकें बंद कर हमेशा को सुला दे,
या तो मुझे खुद में ढलना सिखा दे
या फिर मुझे ढंग से चलना सिखा दे.

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