Akash Shukla   (आकाश शुक्ला)
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शब्द और श्वांस दोनों ज़रुरी है....!!!
Joined 24 February 2019


शब्द और श्वांस दोनों ज़रुरी है....!!!
Joined 24 February 2019
12 OCT 2023 AT 10:49

ये बिंदी.. ये नथनी.. ये झूमके..
हाँ इन सबसे जलता हूँ मैं..
मुझसे पहले तेरे चेहरे को ये छूते है..

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12 OCT 2023 AT 10:38

जब तक लगा नहीं ख़ुद का दिल कहीं..
तब तक सबकी मोहब्बत बस हवस नज़र आयी..

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28 JAN 2022 AT 21:33

एक रोज़ अगर छोड़ दे तेरा शहर हम यूँ ही अचानक से..
तो तुम मेरी तलाश में अपने शहर की गलियाँ न खोजना.. — % &

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27 JAN 2022 AT 10:00

उसकी नज़रों के इशारों पर..
जो लूट गया वो शख़्स हूँ मैं..

अक्स बन गया जो उसकी जुल्फों से टकराकर..
धूप का वो गुमनाम कतरा हूँ मैं..

खो गया उसकी खिलखिलाती मुस्कराहट में जो..
उदासी से लबरेज़ जीवन का वो हिस्सा हूँ मैं..

उसकी सादगी में घुलकर जो ख़ाक हो गया..
गुरूर का वो पुतला हूँ मैं..

जो उसके मखमली रुख़सारों को छूकर गिर गया..
उसकी आँख का वो आब-ए-चश्म हूँ मैं..

हाँ बहुत कुछ हूँ मैं उसका यारों..
और उसे भी ये इल्म है कि उसका इख्लास हूँ मैं.. — % &

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21 DEC 2021 AT 18:40

जलती हुई चिताओं के साथ जलती है तमाम ख्वाहिशें..
कोई पिता को अब आराम करने देना चाहता था..
किसी ने माँ के लिए सपनों का घर बनाया था..
कोई था जो अपने बच्चों को खिलौना दिलाना चाहता था..
किसी को अपने बहिन के हाथों में हल्दी सजवानी थी..
और कोई था जिसने वापस लौटकर आने का वादा किया था..
लेकिन मृत्यु रूपी सत्य के आगे सभी बेबस थे..
न लौट सके अपनी अधूरी ख्वाहिशों को अंतिम रूप देने को..
जीवन का अंत मृत्यु है किन्तु अधूरी ख्वाहिशों का अंत मृत्यु नहीं है..
वे लौटती है किसी न किसी रूप में नए जीवन को धारण करके..
और जीवित रहती है काल के चक्र की गति के साथ निरंतर..

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21 SEP 2021 AT 10:32

अगर कर तो हे प्रभु! इंसाफ़ पूरा कर..
लालच से दबे लोगों को तू क़तरा न दे..
भूखों को तू अन्न के भंडार भर दे..
घमंड से ओत-प्रोत हो चुके है जिनके मन..
उन्हें तू माटी का मोल सिखा दे..
जो हर मोड़ पर उतार रहे है कर्ज़ जीवन के..
उन्हें तू यश की सभी ऊँचाईयाँ दे..
ज़्यादा नहीं माँगता मालिक मैं तुमसे..
पर जो है जिम्मेदार किसी के मन की व्यथा के..
उनको तू बस उन कृत्यों का कठोर फल दे..
तू बन उनका जो जीवन को परोपकार में लगा रहे..
न बन तू उनका जो जीवन क्रोध और द्वेष में बिता रहे..
कलियुग के प्रभाव में तू भी अपना सिद्धांत न बदल..
अगर कर तो हे प्रभु! इंसाफ़ पूरा कर..

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9 JUN 2021 AT 11:51

छूटे हुए हाथों के निशान यकीनन रह जाते हैं..
संभालते नहीं है जिन्हें कोई..
वो अपने आप संभलना सीख जाते हैं..

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2 JUN 2021 AT 0:26

बस एक नाम लिख जाने से हथेलियों पर..
ख़ुद का शरीर भी ख़ुद का कहाँ रहता है..

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27 MAY 2021 AT 13:17

कह दूँ कैसे कि वो मुझसे अब जुदा हो गई है..
उसकी हँसी की खनक अभी भी कानों में गूँजती है..

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27 MAY 2021 AT 13:15

सुना तो दूँ अपनी सिसकियों को तुम्हें..
पर क्या तुम फ़िर मुझे गले लगाने आओगी..

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