उसकी नज़रों के इशारों पर..
जो लूट गया वो शख़्स हूँ मैं..
अक्स बन गया जो उसकी जुल्फों से टकराकर..
धूप का वो गुमनाम कतरा हूँ मैं..
खो गया उसकी खिलखिलाती मुस्कराहट में जो..
उदासी से लबरेज़ जीवन का वो हिस्सा हूँ मैं..
उसकी सादगी में घुलकर जो ख़ाक हो गया..
गुरूर का वो पुतला हूँ मैं..
जो उसके मखमली रुख़सारों को छूकर गिर गया..
उसकी आँख का वो आब-ए-चश्म हूँ मैं..
हाँ बहुत कुछ हूँ मैं उसका यारों..
और उसे भी ये इल्म है कि उसका इख्लास हूँ मैं.. — % &
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