तिने सहज विचारलं:
"फुलांमध्ये कशाची कमी आहे?"
मी हसून उत्तर दिलं:
"तुझा सुगंधाची"-
ख़ाब या हक़ीक़त
हमे नींदों की तरह तेरी पलकों पर उतरकर देखना है
चाहें बनजा तू घना बदल इस चांदनी रात पर
हमें चाँद की तरह तुझसे गुज़रकर देखना है-
लिखतें हैं
ये इश्क़ एक तरफ़ा इसे हम फसाना लिखतें है
हर रात खिड़कियोंसे गुजरते है चाँद की रोशनी बनकर
तेरी पलकों तक आने को हम ख्वाबों का बहाना लिखते हैं-
तेरे बिना इस ख़ूबसूरती का दीदार नहीं होता
कहने को तो हुस्न हर शख़्स के पास है
लेकिन तेरे जैसा अब किसीसे प्यार नही होता-
कुछ तुम कहो,कुछ हमे केह जानें दो!
ये बातें दिलों की,आज होंठों तक तो आने दो
बेशक तुम जताओ हमसे हमारी ही खामियाँ
कुछ कमियाँ तुम्हारी आज हमे भी बताने दो
कुछ तुम कहो,कुछ हमे केह जानें दो||
के यूह तो कई गिले-शिकवे रखती तुम अपने लबों पर
कुछ शिकायतें तुम्हारी हमें भी तो कर जाने दो
कुछ तुम कहो,कुछ हमे केह जानें दो||
ये जो तुम रोज ख्वाबों में आती हो रूठती मनाती हो
कभी कभार हमें भी अपने ख्वाबों में तो आने दो
कुछ तुम कहो,कुछ हमे केह जानें दो||
चलो आज साथ बैठ ही जाओ हमारे,कुछ बाते कर ही लेते है
तुम्हारी इन उलझी लटों को इन उंगलियों से सुलझाने दो
कुछ तुम कहो,कुछ हमे केह जानें दो||
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उगाच!!!
उगाच म्हणजे तुझा माझा विना सही करार
उगाच म्हणजे वाहायचे अदृश्य ते भार
उगाच म्हणजे मांडायचे अतूट असे शब्दकोडे
उगाच म्हणजे कोडे सोडवण्याचा अट्टहास...-
के ना मिले अपने इश्क़ को मंज़िल तो गिला नही
कुछ कहानियों का कभी अंजाम नही होता
उन्हें तस्वीरों में देख कर ही मुस्कुरा लेते है अब
ये एक-तरफा़ इश्क़, सरे आम नही होता
ख़ुशनसीब थे वो जो कहानियों में लिखे गए
उनसा कोई आशिक़ अब बदनाम नही होता-
जो चला था सर-बसर,कैसी वो सज़ा दे गया
अंधेरा क्या घिर गया,साया भी हमे दग़ा दे गया
के ज़ख्म कुछ पुराने भर ही रहे थे वक्त के साथ
वो मेहरबाँ हो कर के नए ज़ख्म का मज़ा दे गया
ना ऐतबार था और ना शिकायत थी ज़िन्दगी से
फिर भी आँसुओ से दोस्ती कर,जीने की वजह दे गया-
माना कि पैसो से पैसे कमाते है लोग
संजोग ही संजोग में कुछ अपने बन जाते है लोग
नजदीकियों से परे कुछ दूरियां भी संभाल के रखना
वक्त के साथ अक्सर बदल जाते है लोग-