Akash Rawat  
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■ IIT Ropar (B.tech)
■ Navodayan
■Alumini : Dakshana foundation
Joined 30 September 2017


■ IIT Ropar (B.tech)
■ Navodayan
■Alumini : Dakshana foundation
Joined 30 September 2017
9 MAY 2021 AT 0:26

मैं अमीर नहीं बनना चाहता, मैं तो सिर्फ घर को संभाल सकने की काबिलियत चाहता हूं।
कोई भरोसा करके मदद मांगे तो वो मदद पूरा कर सकने की काबिलियत चाहता हूं।
मुझे शौक नहीं है कीमती चीजों का, पर जिन्हे देना मेरा फर्ज है उन्हे वो भेंट कर सकूं ये काबिलियत चाहता हूं।



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9 MAY 2021 AT 0:02

जिंदगी कठिन ही होती है। इसे कुछ हद तक आसान बनाने के लिए लड़ना पड़ता है, किसी को कम किसी को ज्यादा, किसी को ज्यादा लड़ के भी बिना लड़े जितना ही फल मिलता है। हो सकता है दिन रात लड़ना पड़े, तुम्हारी जिंदगी और कठिन हो जाए, पर तुम खुश होगे की तुम हारे नहीं, और एक दिन इस लड़ाई में दिन रात लगना जरूरी नहीं होगा।ये सोच कर मत डरो कि पता नहीं कब तक लड़ना पड़े या फिर क्या अंततः स्थिति सुधरेगी।
कभी कभी ऐसी भी परिस्थितियां आएगी जो तुम्हे हूबहू असफलता लगेगी या फिर रास्ते बंद करती प्रतीत होगी। तब तुम्हारी हिम्मत काम आयेगी, उस वक्त तुम दूसरों की सफलता की गति को नजरंदाज करके, कुछ समय लेकर पुनः उठो।

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14 JUN 2020 AT 18:16

#R.I.P.
इस जहान के उसूल तो ऐसे ही हैं,.. बदल इन्हे कोई सकता नहीं।
कोई बयां न कर सके उसूलों के मारे,.. तो कोई मजबूरी में बता सकता नहीं।
घुट के जीता रहा तो कैफियत भी ना ली,.. अब प्रश्नों का सिलसिला रुकता नहीं।

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13 JUL 2019 AT 21:53

न शोरगुल पसंद है, न शांत-सी चुप्पी ।
घरों के आंगन की दिल-चस्प बातों के शोर में भी सुकून है,
रौनक है आंगन में खेलती बच्चों की किलकारी भी।
न शोरगुल पसंद है, न शांत-सी चुप्पी ।
'रात के आंगन' में खुली छत की ठंडी चुप्पी में भी सुकून है ,
रौनक है उसमें टिमटिमाटी तारों की क्यारी भी।

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13 JUL 2019 AT 21:34

Ke..toot ke patta shakh se,
Fir jal ke tapti dhoop mein,
Tinko mein wo bikhar gya,
Jiske bal boote jita tha..
us mitti mein hi mil gya.

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13 JUL 2019 AT 19:23

We are in love with beautiful and interesting destinations.






We love going beautiful and interesting destinations.
And yeah, we have special love for corresponding 'journey' to the destination.

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14 NOV 2018 AT 5:58

श़दीद दर्द को दूजों से छुपाना।
अक्षु से निकले अश्रु को
गले में उतारना, आसान नहीं होता ।

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13 NOV 2018 AT 19:37

कविता-कला-संगीत की परख किसे नहीं होती,
महज़ खुद की समझ किसे नहीं होती।
साहेब,
समझ की परख़ हो तो एक से ज्यादा जिंदेग़ानी समझ के दिखाना।


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16 OCT 2018 AT 20:28

कह पड़ता है मन ही मन से;
रे पगले क्यूं बच्चों-सी तुझको जिद है।
" जनाब! और कैसी होगी जब है ये बचपन से ";
इस जवाब में उसके, ज़िद-की-ज़िद है।

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17 NOV 2017 AT 11:32


कुछ ख्वाहिशें पूरी न सही,
चाँद ज़मी पर न सही,
सितारे तेरी झोली में न सही।
ख्वाहिश है मुस्कान होगी,
तेरी मौज़ूदगी में चाँदनी की रात होगी,
औ' स्याह रात में सितारों की बरसात होगी।

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