'माँ' क्या होती है मुझे नहीं पता
मैंने 'माँ' के नाम पर सिर्फ उसकी तस्वीरों को देखा है...
बहुत कुछ छीना है मेरे मुकद्दर ने मुझसे
हर बार हारकर मैंने सिर्फ लकीरों को देखा है
ज़िंदगी के इस शतरंज में 'माँ' से बड़ा कोई वज़ीर नहीं
यकीन मानो मैंने तमाम किस्म के वजीरों को देखा है
मैंने दुनिया देखी है दुनियादारी देखी है
मुहब्बत देखी है हर किस्म की यारी देखी है
वफ़ा देखी है गद्दारी देखी है
भीख मांगते हुए मैंने यहाँ अमीरों को देखा है
लोगों के मरते मैंने जमीरों को देखा है
मगर 'माँ' क्या होती है मुझे नहीं पता
मैंने 'माँ' के नाम पर सिर्फ उसकी तस्वीरों को देखा है-
insta: @itsakashrajput
FB: Akash rajput
From Mathura
उम्र के इस दौर से मैं अगर बगैर मरे वापिस लौटा
तमाम लोग हैं जो जीते जी मरेंगे...-
तेरी गली तेरा शहर छोड़ने वाला हूं
और ये सब मैं तेरे बगैर छोड़ने वाला हूं-
बदलों को छोड़कर बाकी सब बदलेगा
तुम पूछा मत करो कि कब बदलेगा
मुकद्दर मेरा बदले ना बदले
इसे लिखने वाला मगर वो रब बदलेगा
मेरी मुहब्बत ही मेरा मजहब है
दुनिया कहती है एक दिन इसका मजहब बदलेगा
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ये सोचकर कि कहीं वो जला ना दे
मैंने मेरे गुलाब कभी उसे दिए ही नही
तमाम मुहब्बतें हुईं मुझे तमाम लोगों से
फिर से कहीं इंतजार में ना गुज़र जाए ज़िन्दगी मेरी
इस डर से मैंने मेरे इजहार किए ही नहीं
भिजवाए तो थे वो सस्ते से चॉकलेटों वाले डिब्बे
पता नहीं क्यूं उसने वो लिए ही नहीं
उससे बिछड़ने के बाद हम ज़िंदा तो रहे
मगर सिर्फ ज़िंदा रहे कभी जिये ही नहीं
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ख़ैर जानता हूं मैं भी ज़िन्दगी की हकीक़त लेकिन
मुझे अपनी काबिलियत नहीं ज़िद से बड़ा बनना था— % &-
मर गया वो अ़फसाना फ़साने लिखते-लिखते
पूरी मगर अपनी कभी कहानी ना लिख सका
ये तो लिखा उसने कि राजा वो था
मगर कौन थी उसकी रानी ना लिख सका— % &-
जो अगर ना बिछड़ता तो मुझसे मेरी वफ़ा का गुरूर छिन जाता
मजबूर था बिछड़ना पड़ा
आज पुराना ख़त जब मिला उसका मेरे दिए उस गुलाब में लिपटा
जला ना सका पढ़ना पड़ा
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