Akash Muley   (Shyar..akkiii)
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गुलजार साहब को याद करके थोड़ी लिखने की कोशिश करता हुं!
Joined 3 November 2019


गुलजार साहब को याद करके थोड़ी लिखने की कोशिश करता हुं!
Joined 3 November 2019
19 APR 2024 AT 12:32

इंस्टा स्टोरी देखनी वाली हजारो आंखे है
मुझे बस उसकी आंखो में,
मेरा नशा देखणा है !

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11 APR 2024 AT 20:53

लडके मे राम जैसी मर्यादा तब ही आयेगी
जब सीता जैसी पावित्रता लडकी मे हो!

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11 APR 2024 AT 16:59

सांवले रंग से ही इश्क फरमाये
सफेद धोका जो देता है !

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29 JAN 2024 AT 21:30

"सफर ए दास्ता"
कल भी सफर जारी था
आज भी सफर जारी है
सफर कल भी जारी रहेगा
माना के कुछ उम्मीद टूट गई है
पर कुछ बन भी गई है
जिंदगी के इस कश्मकश मे
हा थोडे पीछे तो रहे गये है
पर जितने जजबा अभी भी बर करार है

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25 JAN 2024 AT 22:57

लफ्ज हो के भी !
खामोश इस चांद सा मै ?

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16 JAN 2024 AT 22:17

आगे जिंदगी जो पड़ी है...
तो क्या हुआ एक परीक्षा ही तो बिगड़ी है
हारकर कैसे चलेगा आगे जिंदगी जो पड़ी है...

सभी हथीयार लेकर मैदान में उतरा था,
पूरी ताकत से दूश्मन को ललकारा था,
क्या करूं मै जब कीस्मतही बिगडी है....

दिल में जज्बा कुछ कर गुजरने का था
अपनी क्षमता को साबित जो करना था
क्या करूं अब मुझसे मंजिल भी लड़ी है...

जीतने वालों को देख कर हंस देता हूं
अंदर ही अंदर जी जान से रो लेता हूं
डर लगता है अब ऐसी विपत्ती जो खड़ी है...

संभलती चींटी को देख हौसला पाया है
चट्टानों के बीच मार्ग यह झरना लाया है,
कुदरत का करीश्मा देख हीम्मत जो बढी है....

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16 JAN 2024 AT 22:14

आगे जिंदगी जो पड़ी है...
तो क्या हुआ एक परीक्षा ही तो बिगड़ी है
हारकर कैसे चलेगा आगे जिंदगी जो पड़ी है...

सभी हथीयार लेकर मैदान में उतरा था,
पूरी ताकत से दूश्मन को ललकारा था,
क्या करूं मै जब कीस्मतही बिगडी है....

दिल में जज्बा कुछ कर गुजरने का था
अपनी क्षमता को साबित जो करना था
क्या करूं अब मुझसे मंजिल भी लड़ी है...

जीतने वालों को देख कर हंस देता हूं
अंदर ही अंदर जी जान से रो लेता हूं
डर लगता है अब ऐसी विपत्ती जो खड़ी है...

संभलती चींटी को देख हौसला पाया है
चट्टानों के बीच मार्ग यह झरना लाया है,
कुदरत का करीश्मा देख हीम्मत जो बढी है....

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16 JAN 2024 AT 22:14

आगे जिंदगी जो पड़ी है...
तो क्या हुआ एक परीक्षा ही तो बिगड़ी है
हारकर कैसे चलेगा आगे जिंदगी जो पड़ी है...

सभी हथीयार लेकर मैदान में उतरा था,
पूरी ताकत से दूश्मन को ललकारा था,
क्या करूं मै जब कीस्मतही बिगडी है....

दिल में जज्बा कुछ कर गुजरने का था
अपनी क्षमता को साबित जो करना था
क्या करूं अब मुझसे मंजिल भी लड़ी है...

जीतने वालों को देख कर हंस देता हूं
अंदर ही अंदर जी जान से रो लेता हूं
डर लगता है अब ऐसी विपत्ती जो खड़ी है...

संभलती चींटी को देख हौसला पाया है
चट्टानों के बीच मार्ग यह झरना लाया है,
कुदरत का करीश्मा देख हीम्मत जो बढी है....

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16 DEC 2023 AT 17:14

काहीच मिळवलं नाही आजपर्यंत, काहीच करता आले नाही आई दादांसाठी, सर्व काही असुनही कर्तुत्व शून्य ! जसे भात्यात "ब्रह्मास्त्र" असून रणांगणावर कर्तृत्वशून्यतेच्या राक्षसाने केलेला आपला दारून पराभव हाच तो परिसाचा झालेला दगड !!

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13 DEC 2023 AT 20:17

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मुझे subscribe वाली चाहिये

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