Akash Bhardwaj  
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Joined 25 February 2018


Joined 25 February 2018
1 APR 2020 AT 23:47

एक दिन...
ख़ामोशी के पीछे छिपा बैठा था वो ..
न जाने क्या सोच रहा था वो ....
सर्द रवैया, बेरंग चेहरा, उलझा लहज़ा, खुली आंखें, ठन्डे हाथ ..
शायद कहीं टूटा पड़ा था वो....

वो...
मासूम भी था, नादान भी था ..
शायद भगवान का दिया कोई वरदान भी था....
मुकम्मल हुआ नहीं कुछ अभी तक..
शायद उसने भी एक ख्वाब बुना था....

गायब हुआ, दफ़न हुआ, जल गया..
बस मरने से वो बच गया....
लाल आंखें, गर्म खून लिए..
निकल पड़ा था एक जूनून लिए....

आँख मिलाये सूरज से..
बीच समुन्दर खड़ा अकेले....
जीतेगा कौन उससे जो..
झुलस चुका आग में पहले....

ज़िंदगी का भार नहीं, वक़्त की परवाह नहीं...
अब ज़िंदगी पर है भार बड़े, वक़्त की है मार बड़े....
देखो आन से है वो खड़ा..
देखना है कौन कितना ज़ख्म में है ढाल बने....

एक दिन...
ख़ामोशी के पीछे छिपा बैठा था वो ..

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29 AUG 2019 AT 23:49

वक्त का सितम है पर, उम्मीद अभी मेरी मरी नहीं,
ख्वाब अभी ज़िन्दा हैं मेरे, ज़िन्दगी अभी रुकी नहीं..


जिस दिन से चलना सीखा है, तुम्हारी नज़र मेरी मंज़िल पर है,
क्या तुमने कभी मील का पत्थर नहीं देखा..

ये फूल मुझे किसी विरासत में नहीं मिले हैं,
तुमने मेरा काँटों का बिस्तर नहीं देखा..


मेरे ना-खुश दोस्तों,
खाली बैठे हो तो कुछ काम ही करलो ना,
कुछ ना हो तो मुझे बदनाम ही करदो ना..

अभी बाकी है हिसाब कुछ लोगों का मगर ज़िक्र नहीं करूँगा,
किशतों में मारूँगा और फिक्र तक नहीं करूँगा..

अब मेरा क्या है,
हराने पर तुली है ये ज़िन्दगी मेरी,
मैं फिर भी जीतता चला जा रहा हूँ..

पतझड़ में झड़ गये पत्ते सारे,
मैं फिर भी उन्हें सींचता चला जा रहा हूँ..


वक्त का सितम है पर, उम्मीद अभी मेरी मरी नहीं,
ख्वाब अभी ज़िन्दा हैं मेरे, ज़िन्दगी अभी रुकी नहीं..

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27 AUG 2019 AT 23:58

कुछ ख्वाब लिख कर रखें हैं अपनी दराज़ में छिपाकर,
निकालूँगा किसी रोज़ इस मतलबी दुनिया से फुरसत पाकर....

मैं कहता हूँ अपने कुछ चँद लोगों से कि ۔

चाँद से दोस्ती जिसकी वो जुगनुअों से यारी क्या निभाएगा,
तुम्हें बीच मझधार में छोड़ देगा अौर खुद किनारे निकल जाएगा..

बात किनारे की है तो थम जाओ ज़रा इस किनारे पर, अाअो कुछ सुकून के पल गुजा़र ही लें,
कल फिर निकलेंगे कशती लेकर किसी जहाज़ के इंतजार में..

आदतों से मजबूर खुद में मसरूफ हूँ मैं,
रिशते बनाने में ज़रा सा कंजूस हूँ मैं..

खामोश था नहीं, हो गया हूँ मैं,
बात जि़न्दगी की थी इसलिए थम सा गया हूँ मैं..

उम्र भर मैं यही भूल करता रहा,
धूल चेहरे पर थी और मैं आइना साफ करता रहा..

कुछ ख्वाब लिख कर रखें हैं अपनी दराज़ में छिपाकर,
निकालूँगा किसी रोज़ इस मतलबी दुनिया से फुरसत पाकर....

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17 APR 2019 AT 9:30

उम्र छोटी ही सही बूढा हो चुका हूँ मैं,
अपने तजु़रबों की मीनार बना चुका हूँ मैं..

अब लोगों को देख आकर्षित होने को मन करता नहीं,
एक नज़र देख ही, असलियत समझने में अब सक्षम हूँ मैं..

मुसीबतों के पहाड़ों को इन नाज़ुक कंधों से ढोते सीखा है मैंने,
अब कहाँ गिरूँगा किसी के गिराने से,सब देखा है मैंने..

नहीं आएगी समझ मेरी बात किसी गरिष्ठ को,
वो समझ जाएँगे जिनके कंधों पर तजु़रबों की चोट हो..

अब जिंदगी का एक ही लक्ष्य रह गया है,
लक्ष्य अब तजु़रबों की मीनार से लक्ष्य प्राप्ती हो चला है..

यूँ ही नहीं घेर रही ये सफेदी मुझे,
एैसा लगता है, बचपने को पीठ दिखा समझदार हो चला हूँ मैं..

उम्र छोटी ही सही बूढा हो चुका हूँ मैं....

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7 FEB 2019 AT 3:06

कदम रुक से गए हैं फूलों को बिकता देख कई,
न जाने कहाँ वो नरमी चली गई..
बौखलाता सा घूम रहा वो अब पाने को एक मंज़िल,
ये वो राह-ए-सफर है जहाँ म़काम है ही नहीं कोइ मंज़िल..
रूह काँप उठती है ये बेग़ैरत-सी ज़िंदगी देखकर,
नहीं जीना अौर अब एैसे वजूद मे रहकर..
बचपना मेरा जाता नहीं लोगों की सोच से,
इल्म है बस मुझे ही मेरी अतीत के मौत से...

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2 SEP 2018 AT 2:43

अगर मेरे ख्वाब ज़रा सा तैर पाते तुम...

यूँ सब न बहता, अशकों की तरह,
यूँ सब न बिखरता पत्तों की तरह..

ना बहकते कदम मेरे,
ना टूटते हौसले मेरे..
उठा था ज़लज़ला, जिगर में कहीं,
थम गया सब, रुक गया सब वहीं..

चैहरा, हाथ अभी तक बाहर है, पूरा डूबा नहीं हूँ मैं,
थाम ले हाथ कोइ, गले लगा ले मुझे..

डरता नहीं हूँ ऊचाइयों से मैं कभी,
पर डूब जाने का डर हमेशा रहता है..
बस अब कुछ पलों की अौर बात है,
डूबने के बाद कहाँ मेरा चैहरा अौर हाथ है..

अब अगर हाथ थामा नहीं किसी ने तो डूब जाउँगा मैँ,
लौटूँगा ज़रूर, फिर..कभी हाथ न आउँगा मैं..

आके फिर बुनूँगा एक ख्वाब अपना,
पर इस बार तैरना सिखा के भेजूँगा उसे..
ना कहना फिर ऊँचाई से दिखता कम है मुझे,
तब शायद मैं नीचे देखना ही भूल जाउँगा..

अगर मेरे ख्वाब ज़रा सा तैर पाते तुम...

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28 JUL 2018 AT 19:15

Zindgi aahuti maang rhi thi,
Maine khud ko tyaag diya...

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18 JUL 2018 AT 23:31

Preet ki tum pareeksha na lena kabhi,
Premiyon se mai aage nikal jaunga...
Deep ki loh si tum timtimati raho,
Mai patange ke mafik jal jaunga...

Itna santaap hriday ko hai mere mila,
Deh meri hui ek pahan shila...
Ab Ahilya sa aay hu teri sharan,
Tu mere vaaste Ram ka hai charan...

Sirf chhu le mujhe to patthar rahunga nahi,
Aadmi banke mai pura badal jaunga...

Pyar jag mein na kisi ka kbhi pura hua,
Pehla akshar hi iska adhoora rha...
Yar milke jo bne shabd wo pyar hai,
Pyar ke vaaste yar anivarya hai...

Tere aansuo mein bhi to mai hi to hu,
Mai teri palak se gira to fir tera gaal hai...
Aur gaal se bhi giru to hai gardan teri,
Fir patan hi patan aur janjaal hai...

Tu agar ek ungli se bhi rok le mujhe(aansu),
To girte girte bhi mai bs sambhal jaunga...

Preet ki tum pareeksha na lena kabhi......

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24 JUN 2018 AT 15:59

Toot jata h gareebi mein wo rishta, jo khaas hota hai,
Hazaro yaar bnte h or bnke bikhr jate h bs ek gareebi dekh ke.....

Jo rishte apne hote hai, wo apnepan ka shor nhi machate,
Gareebi dekh ke gareeb ka mzaak udate yu dur nhi jate,

Mera drd kisi ki hsi ki wajah bn jaye to achha hai,
meri hsi kisi ke drd ki wajah bne usse pehle hum jaise mr kyo nhi jate,

Baat do rooh ke milan ki bhi shuru hui thi kuchh is tarah,
Fir gareebi ka rang dikha fir awaaz aayi.. tum kyo mere hote huye pyar ko bhul nhi jate,

Gareeb ki schchai to bht hai agr dekha jaye to,
uske muh se nikli hwa bhi gubbaro mein bharke bik jati h,

Fir bhi...
Toot jata h gareebi mein wo rishta, jo khaas hota hai,
Hazaro yaar bnte h or bnke bikhr jate h bs ek gareebi dekh ke......


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11 JUN 2018 AT 0:59

Abhi suraj duba nhi.. zra si sham to hone do,
Are mai khud laut jaunga.. mujhe nakaam to hone do,


Mujhe badnaam krne ka bahana dhundta hai zamana,
Are mai khud ho jaunga badnaam pehle mera naam to hone do....

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