कागज़ों पर बिकते यहाँ कलम हैं जो,
कागज़ों पे लिखने वाले कलम नहीं ये।
क़तरा पन्ने का या ख़ून का हो
दास्तान लिखने वाले कलम नहीं ये।।
अंधों की आँख या बहरों के कान,
गूंगे की आवाज़ या सहारा बेज़ान का
दर्द को लिखने वाले कलम नहीं ये।
तख्तों के पैरों तले रौंदा गया है,
सियाही का कतरा कतरा निकला गाया है
सच्चाई लिखने वाले कलम नहीं ये।
आवाज़ दबाने वाले कलम हैं ये,
दरख्त को धूप लिखने वाले कलम है ये।।
तख्तों के आगे झुकते हैं जो,
उरूज पे रहने के लिए गिरते हैं जो,
आजमाइश को आराम कहने वाले
जुते को ताज़ समझने वाले,
अंकों को दशमलव, शून्य को शतक
भूख को विलासिता, दशकों को पल
ग़ुलामी का जश्न मनाने वाले कलम है ये।।
कागज़ों पर बिकते यहाँ कलम हैं जो,
कागज़ों पे लिखने वाले कलम नहीं ये।
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