आओ मेरे आसमां में, इसको स्याह कर दो,
बरसो ऐसे कि मेरे दिल को सैलाब कर दो,
एक अरसे से ऐसे तड़प रहा हूं मैं,
यादों कि आग में जल रहा हूं मैं,
आओ कि इस आग को तुम राख कर दो,
बरसो ऐसे कि फिर से मुझे पाक कर दो,
एक आस शोर मचाती है तुम्हारी गर्जन में,
कड़कती बिजली लाती है चमक नैनन में,
गरजो ऐसे कि सब को तुम शांत कर दो,
चमको ऐसे कि अमावस को चांद कर दो....
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साईकिल की चेन सा उतर गया हूं,
जिसने चढ़ाना चाहा, हाथ गंदे कर लिए।
किसी मांझे सा उलझ गया हूं,
जिसने सुलझाना चाहा, हाथ ही कटवा लिए।
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मैं एक सब्ज़ शजर हूं बीच सहरा,
मेरे साए तले रुके तो बहुत लोग,
पर कभी कोई देर तक ना ठहरा।-
तू इधर उधर की बात कर,
मैं खुद काफिला लूटा दूंगा,
मुझे राहजनों से भी गिला नहीं,
तेरी रहबरी से भी सवाल नहीं,
तू खंजर आगे तो कर,
मैं पीठ अपनी झुका दूंगा,
मैं कोई शहज़ाद तो नहीं,
कोई मेरी तलाश में भी नहीं,
तू इस पर ज़रा गौर तो कर,
मैं राज़ सारे अपने बता दूंगा,
इन सब में कोई पंक्ति मेरी लिखी नहीं,
मेरी तख़लीक़ में आने की तेरी औकात नहीं...-
हुई कैसी यह दस्तक, यह शोर कैसा है,
कौन आज इस वीरान गली का रस्ता भूला है,
मेरे कानों को आदत नहीं इस आवाज़ की,
यहां बस खामोशी का साज़ बजता है।
शायद कोई परदेसी है राह में भटका,
या शायद कोई दरवेश है प्यासा - भूखा,
आवाज़ देकर मुझसे मंज़िल का पता लेले,
या फ्रिज में पड़ा वो कल का सालन लेले,
बिरले ही लोग हैं जो पत्र लिखते हैं मुझे,
शायद यह डाकिया भी हो सकता है,
मुझको पैग़ाम देकर कुछ दुआएं लेले,
बिना होली दीवाली के बख़्शीश लेले.....
कसौटी का यह खेल अब बंद करता हूं,
दरवाज़ा खोलकर अब देख ही लेता हूं ,
दुनिया को खुद से फिर जोड़ ही लेता हूं.....
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मत पूछ कि किसने उजाड़ा यह बगीचा,
यह देख कि तूने ही गेट खुला छोड़ा था,
बड़ी शिद्दत से किसीने वो क्यारियां बनाई,
ताउम्र उसको सींचा उसमें खाद लगाई,
और जब फूल खिलने लगे ही थे बगिया में,
वो कौन था जिसने आग लगा दी इसमें,
जहां गुलाब, जूही, चंपा, चमेली महकने थे,
वहां आज बस लकड़ी जलने की बू है,
और उस सुंदर दृश्य की कल्पना को,
खा गया है एक गहरा धुआं..........
जिसमें किसी को कुछ नहीं दिख रहा,
दिख रहा है कि अच्छा हो रहा है,
मच्छर मर रहे हैं, चीटियां मर रही हैं,
यह धुआं नहीं तो और क्या ??????
यह धुआं ईश्वर का वरदान है,
यह धुआं हमारी गौरवान्वित पहचान है,
वो कौन है जो मान रहा है कि,
यह धुआं अत्यंत शोभनीय है उस सुंदर बगीचे से??
वो मैं हूं, वो तुम हो, जिसने आग लगाई है बगीचे में।-
मैं आसमान ताकता हूं,
रात में सितारे गिनता हूं,
कि मुझे नींद नहीं आती है,
फिर जब चांद दिखता है,
मुझे तुम याद आती हो,
और फिर नींद उड़ जाती है,
तमाम मेहनत पर पानी फिरता है,
पाश की वो पंक्ति याद आती है,
" मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती...."-
महफूज़ हो सदा तुम इस दिल में कहीं,
कि अब याद भी नहीं कहां हो तुम.....-
दवा और दवात के बाज़ार में मज़हब का दंगा हो गया,
सालों से जो होता आया है वो आज जोधपुर में हो गया।
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हां कई दफा तेरी याद नहीं आती,
पर भूल गया हूं तुझे, ऐसा भी नहीं,
तैरा नहीं अधूरे ख्वाबों के दरिया में,
पर डूब गया हूं, ऐसा भी नहीं,
तू मेरी ज़िन्दगी का किस्सा है,
मेरी यादों का हिस्सा है,
मेरे दिल का एक अंधेरा कोना,
आज भी तुझसे वाबस्ता है,
तुझे छोड़ सकता नहीं,
चाहे सांस छूट जाए मेरी,
पर तुझे पाने की हसरत हो,
ऐसा भी नहीं.....-