वो आखिरी आवाज़
वो अश्रुओं की धारा नहीं
वो बहते हुए अलफ़ाज़ थे
उन बहते हुए अल्फ़ाज़ों को सुनने की चाहत थी
मुझे थोड़ी देर क्या हुई
वो क्षणभर रुक ना सकी
देखा ज़ब लाचार सा आपको
मन में उमड़े तूफ़ान को रोक ना सकी
बरबस निहारती रही आपको
वक़्त को कैद करने की चाहत थी
पर क्या पता था आपको जाने की इतनी जल्दी हो गयी
आकांक्षा राजपूत
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You never lose a best friend,
you lose a part of yourself.
A part that will always remain empty
My heart will always long for you
An empty space that can't be filled
But the way, you left the world
You left a void in my life.
The void always reminds me of your absence.
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उम्मीदें टूटने से हौसले नहीं टूटा करते
हार मानने वाले ज़िन्दगी की जंग फतेह नहीं करते
मायूसी, दुख, सुख और संघर्ष
ज़िन्दगी के पड़ाव हैं
हर पड़ाव पर कुछ पाने के लिए
कुछ खोना पड़ता है
ज़िन्दगी की जंग यूँ ही नहीं जीत जाया करते
मंजिल उन्ही को मिलती है जो
जो किसी पड़ाव पर ठहरा नहीं करते
आकांक्षा राजपूत
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Everyone talk about the light at the end of tunnel.
Nobody will tell you what it means to be in the tunnel.
Sometimes the darkness even blurs ur vision to see the light.
The deeper u go, the darker it becomes
Holding ur breathe in the deep n dark tunnel
Struggling for life.
Scary darkness was living in me.
Death seems to be the easiest part
Waiting for death is painful..
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ज़िन्दगी के कई रंग देखे
पर हर रंग ने मुझे बेरंग किये
हम सुकून ढूंढ रहे है
पर न जाने क्यों ज़िन्दगी
वक़्त बेवक़्त कहर बरसा रही है
आकांक्षा राजपूत
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हम समझ नही पा रहें हैं
ये दुख का सैलाब है
या कष्ट की पराकाष्ठा
या फिर समय की मार
हम दूसरों को संवारने में
खुद कतरा कतरा बिखरते चले जा रहें हैं
हम देखकर भी चुप
सब कुछ निकल रहा है हाथ से
और हम बेबस यूँ ही खड़े हैं
हम इंतज़ार में हैं
इस तूफान के शांत होने का
पर न जाने क्यों
ये दुख के बादल भी उमड़े जा रहें हैं
कब ये बदल छटेंगे
और हम कब
सुकून भरी जिंदगी से रूबरू हो पाएंगे
आकांक्षा राजपूत
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जब सब कुछ लगा हो दावँ पर
फिर भी तुम हो रहे हो
कटु शब्दों का शिकार
जब सब कुछ हार चुके हो तुम
फिर किस उम्मीद पर खड़े हो तुम
जब ईश्वर ने ही हाथ हटा लिया
फिर अपनों से क्यों
उम्मीद लगाये हो तुम
तुम सोच रहे हो सबका
इसलिए ऐसे व्यथित हो तुम
हर दर्द का निवारण
इतनी शीघ्र नही होता
हर दुख का निवारण
समय नही होता
आकांक्षा राजपूत
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मोहरूपी भावनाओं के पीछे स्वार्थ
को देख पाना बेहद दुर्लभ है
मोह मे व्याप्त होने पर
मनुष्य सिर्फ वही देख पाता है
जो मोहरूपी भावनाएं
उसे देखने के लिए बाध्य करती हैं
लेकिन जब वक़्त मोहरूपी मुखोटे के पीछे
उस स्वार्थ से आपको परिचित कराता है
तो वो पीड़ा असहनीय हो जाती है
परंतु यह पीड़ा आपको मजबूत बना देती हैं
अकेले खड़े होने का साहस देती हैं
निर्भय बना देती हैं
सत्य के साथ रहना कठिन जरूर हो सकता है
परंतु झूठ के साथ रहना
उस समंदर के किनारे विश्राम करने जैसा है
जो कुछ देर के लिए शीतलता जरूर प्रदान करेंगी
परंतु समंदर की वही लहरें
वक़्त आने पर आपको
अपने समाहित भी कर लेंगी
आकांक्षा राजपूत
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Pandemic and the Environment
The time to heal for nature has come,
Water has become clean and pure,
Air has become fresh,
Trees are breathing peacefully,
The animals are living fearfully,
The time has taken a reverse mode,
The enemies of mother earth are locked,
When the children make their mother sick,
The mother needs to be treated,
In the same way,
the time to heal for mother earth has come,
The wounds of mother earth is healing,
Even the mother needs love and care
Mother earth is sleeping in the lap of nature.
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समाज की दृष्टि में स्त्री
स्त्री का स्त्री होना ही
उसके लिए कठिन है
सब कुछ सुनकर भी
जानते हुए भी
मौन रहना ही
क्यों स्वीकृत है
दुख में सिमटी हुयी
फिर भी मुख पर मुस्कान ही
क्यों स्वीकृत है
टूटी हुई, बिखरी हुयी
खुद को समेटे
स्तंभ से खड़ी होना ही
क्यों स्वीकृत है
तीखे स्वरों के थपेडों से
क्यों उत्तर में शीतलता ही स्वीकृत है
क्या स्त्री का अस्तित्व
स्वीकृत की परिभाषा से परे भी है?
इस कोमल, सरल स्त्री को
तुम वस्तु के शब्दों की बेड़ियों में
क्या परिभाषित कर पाओगे?
क्या असीमित भी सीमित होकर
कभी परिभाषित हो पाया है
आकांक्षा राजपूत
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