लांघ ती हूं दहलीज जब भी तुझसे मिलने।
हर बार अपना चरित्र दाव पर लगा कर आती हूं।।
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मुस्कुरा देती हूं,
नींद में क्या करूँ,
सपनों में तुमसे मुलाकात
हो ही जाती है।।
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तुम कहते हो मैं पढा लिखा हूं
कभी तुमने मेरी आँखों को पढा है।
तुम कहते हो मुझसे प्यार करते हो
कभी मुझसे खोने का डर हुआ है।
तुम कहते हो चांद तारे थोड़ ले आऊँ गा
कभी मेरे लिए अपना वक्त निकाला है।
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जिसकी दोस्ती सिर्फ किताबों से होती हैं।
इस दुनियां में उससे ज्यादा रईस कोई नहीं होता।।-
मुझे चाहने वाले लाख क्यूँ ना हो
तुम मेरी परवाह करते हो
बस इतना काफी हैं।।-
वक़्त कितना भी खराब क्यूँ ना हो।
खुद से प्यार करना कभी नहीं भूलती ।।-
जब तक सबसे खास व्यक्ति हमारे
पास होता है।
हम उसकी कदर नहीं करते
परंतु उसके दूर जाने पर तस्वीरे देख रोते रहते हैं।।-
आज कल बदल रही हूं मैं।
ज़माने से डर रही हूं मैं।।
बोलना चाह रही हूं।
लेकिन खामोशी से नजदीकियां बढा रही हूं मैं।।
मंजिल से दूर जा रहीं हूं।
इस सफर में खुद को थका रही हूं।।
चेहरे से हंसी गायब सी हो गयी।
अपनी उम्मीदे खुद से ही लगा रहीं हूं मैं।।
पहेले ऐसी थी नहीं मैं।
खुद को बदलती जा रहीं हूं मैं।।-
क्या बीती होगी उस रात।।
जालिमों ने किया उसका बलात्कार।।
वो चीख रही होगी गिड़गिड़ा रही होगी ।।
हैवान हैवानियत से उसका जिस्म खा रहे होंगे।।
वो आस लगाती रही कोई राम शस्त्र उठाएगा।।
कोई कान्हा बन उसका भी चीर बचाएगा।।
भूल चुकी थी, ये कलयुग है यहां अब ना कोई बचाएगा।।
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मिली तुझसे एक बूंद जितना भी नहीं।
और खोया मैने तुझे समुंदर जितना।।-