Akanksha Gupta (Vedantika)   (Nazm-E-Vedantika✍️✍️)
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Joined 27 May 2018


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Joined 27 May 2018

कुछ उम्मीद अपने दिल से लगाई होती
पता चलता तुम्हें के क्या होती है मोहब्बत

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छूकर उसने मुझे ज़िंदा कर दिया…
इश्क़ में मुझे एक परिंदा कर दिया…

इब्तिदा हुई मोहब्बत फिर से दिल में…
मुझको उसने मशहूर बाशिंदा कर दिया

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तुम्हारी उंगलियों का जादू सर चढ़ रहा है…
होश में हूँ मगर फिर भी बेहोशी हावी रहे…

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मन की बात…
आए ना लबों पर…
तेरे सामने…

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(रेस्ट ज़ोन)
(तस्वीर विश्लेषण)
(हकीकत की दीवार)

हकीकत की दीवार के पार…
सपनों का खुला हुआ आसमान…

पिता के कंधों पर चढ़कर ही…
देख पाता हूँ जीवन अनजान…

सोचता हूँ उड़ जाऊँ गगन में…
ओढ़ कर एक पंछी की पहचान…

इस चारदीवारी से अलग देखूँ…
संसार का छुपा हुआ सब ज्ञान…

बस इतना ही न रहे आसमान मेरा…
और न ही रहे इतने से मेरे अरमान…

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गुलामी मंजूर नहीं कर सकता हूँ…
जिंदा रहते हुए नहीं मर सकता हूँ…

ज़िम्मेदारी मुझपर हावी है इस तरह…
अपनी आँखों में ख़्वाब नहीं भर सकता हूँ…

मुझे देखकर न जाने कितने जीते हैं…
टूट सकता हूँ लेकिन बिखर नहीं सकता हूँ…

याद करते है सब मुझे सब अपने दुःख में…
अपने सुख से मैं गुजर नहीं सकता हूँ…

रिश्तों की डोर को जोड़ कर रखा है मैंने…
चाहूँ भी तो अपनों को बिसर नहीं सकता हूँ…

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जीवन को समझने की कोशिश जो करता है अक्सर…
वो इंसान खो बैठता है अस्तित्व अपना यूँ भटककर…
छोड़ देता है जीने की तमन्ना कालचक्र में फंसकर…

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घर को आशियाना बनाना आसान नहीं…
जो अपना है वो है कभी अनजान नहीं…

रिश्तों से ही ईट पत्थरों में जान आती है…
अपनों का सुकून ही घर की पहचान है…

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गुफ़्तगू-ए-मोहब्बत करके तो देखिए…
ख़ामोशी से ज्यादा मजा ये न देगी…

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निगाहों से अपनी नज़ारा दिखा दो…
हमें ज़िन्दगी जीना दोबारा सिखा दो…

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