Akanksha Gupta (Vedantika)   (नज़्म-ए-वेदांतिका✍️✍️)
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Joined 27 May 2018


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Joined 27 May 2018

भूलना अच्छा होता हैं ज़िंदगी के लिए…
वरना हर सांस मौत से भी बदतर हो जाती…

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दिल की धड़कन भी जानती हैं…
एहसास तेरा ये पहचानती हैं…

क्या हो जाता हैं हाल मोहब्बत में…
जो सारी दुनिया आवारा मानती हैं…

इबादत करते है तो तू याद आता हैं…
मुझे अपने संग ख़यालो में ले जाता हैं…

मुझसे हिसाब तन्हाई का मांगती है…
दर्द-ए-दिल धड़कने ही तो जानती हैं…

दिल की धड़कन भी जानती हैं…
एहसास तेरा ये पहचानती हैं…

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पुरानी यादों का मौसम गुजरा ही नहीं…
दिल में तेरे सिवा कोई और ठहरा ही नहीं…

वो खत, वो गुलाब, वो रात का सफ़र…
आँखें बंद करता हूँ तो आता है नज़र…

तेरा वो मुस्कुराना अब तक भूला ही नहीं…
पुरानी यादों का मौसम इसलिए गुजरा ही नहीं…

आज भी आ जाता हूँ बैठने को वहाँ पर…
आखिरी मुलाकात तुमसे हुई थी जहाँ पर…

सब कुछ आज भी साफ कुछ धुंधला नहीं…
तभी तो पुरानी यादों का मौसम गुजरा ही नहीं…

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आब-ए रवाँ में मिट गए नक़्श रेत पर…
बनाए थे जो हमने ख़्वाब समेट कर…

सब कुछ बह गया, फ़क़त याद रह गई…
कश्ती मेरी किनारे आते आते रह गई…

मोहब्बत के अफसाने, रेत के महल…
लेकर आए हैं निशानी जेब मे मुट्टी भर…

लहरों में डोल रही साँसों की नाव ये…
जमीन पर कोई निशान कैद कर ले…

हम भी बह गए आब-ए-रवाँ के असर…
पानी में रहने वालो को न रही पानी की क़दर…

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मेरी पुरानी कविता आज भी…
करती हैं तेरा इंतज़ार…
जो शायद मैंने लिखी थी तब…
जब मुझे हुआ था तुमसे प्यार…

अधूरा रह गया था जो ख़्वाब…
इस कविता में उतारा था…
मैंने उस आखिरी दिन…
चुपके चुपके तुम्हें निहारा था…

वो पुरानी कविता आज भी...
कर रही हैं तेरा इंतज़ार…
जिसके हर एक लफ्ज़ में…
छुपा था तेरे लिए प्यार…

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वक़्त भी दूँ तुम्हें पर…
ये भी अपना नहीं हैं…
दिल ही तो है मेरे पास…
बाकी कोई दुआ नहीं हैं…


ज़िंदगी का यकीन तो…
करती नहीं हूँ मैं भी पर…
तेरे सिवा जीने की कोई…
वजह नहीं है…

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उनकी अदाओं का नहीं है कोई जवाब…
ज़माने को रश्क़ है के मेरी पसंद लाजवाब…

निगाहें बोलती हैं बेतकल्लुफ, लबों पे खामोशी है…
चेहरे के आगे खुली रहती हैं ज़ज्बातों की किताब…

डूबता हैं चाँद भी जिस महबूब के आग़ोश में…
नशा-ए-नूर चढ़ गया है रूह पर जैसे नशीली शराब…

ख़्वावों में आना छोड़ कर हक़ीक़त बन जाओ…
ज़िन्दगी में एक ही तो मैंने कमाया हैं सबाब…

लोगों को अचंभा रात को रोशन मेरा आसमान…
क्या खबर, उनको मेरे आँगन में उतरा हुआ है महताब…

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लाया हूँ मैं इस दिल में लाख मोहब्बत तुम्हारे लिए…
कुबूल कर लो इश्क़ मेरा दिल धड़कता तुम्हारे लिए…

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मुलाकात होती रहे…
बात होती रहे…
प्यार भरी तक़रार…
बार बार होती रहे…

थमे न यह सिलसिला…
रुके नहीं इश्क़ के कदम…
हर मुलाकात पर यूँ ही…
रात होती रहे…

नज़रे चुराओ ना…
पास अब तुम आओ ना…
हम पर उम्र तलक़…
बरखा-ए-जज्बात...
होती रहे…
मुलाकात होती रहे…

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बड़ी ही नाजुक होती हैं रिश्तों की डोर…
उलझती हैं ऐसे कि मिलता न कोई छोर…

छूटने लगे हाथ से जो प्रेम और विश्वास…
न जाने पतंग ज़िंदगी की जाएगी किस ओर…

लफ़्ज़ों के मांझे पर कस लो जुबान को…
इसके निशान दिल पर पड़े संबंध हों कमजोर…

तन्हाई में कटती नहीं ज़िंदगी रिश्तों के बिना…
अपनों को देख कर होती बड़ी सुहानी भोर…

संभाल कर थामिए जरा रिश्तों के ये धागे…
आप तो उलझन में फंसे साथ फंसा कोई और…

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