क्या तुम्हें पता है,कि मेरे लिए वो क्या है ?
जो हर रोज़ नई उम्मीद लाये,वो वही सवेरा है,
भागती ज़िन्दगी थाम ले,वो वही सुकून का अंधेरा है।
जिसमें डूबकर मैं उबर गयी,वो समंदर गहरा है,
ख़यालों में मेरे, उसी का रहता पहरा है।
क्या तुम्हें पता है,कि मेरे लिए वो क्या है ?
दर्द बाँटे जो मेरा,वो हमनवां है,
दूर होकर भी जो साथ चले, वो हमराह है।
रखे जो महफ़ूज़ मुझे,वो ऐसी पनाह है,
बेशर्त मोहब्बत है जिसमें, वो ऐसी दास्तां है।
क्या तुम्हें पता है,कि मेरे लिए वो क्या है ?
अपना सख़्त क़िरदार छोड़, जो मेरे लिए बने मज़ाकिया है,
हज़ारों रंग दिखाए अपने,वो बहरूपिया है,
पर सबमें मुझे प्यारा लगे,जाने ऐसा क्या जादू किया है,
ख़ुद को राम, और मुझे कहता अपनी सिया है।
क्या तुम्हें पता है, कि मेरे लिए वो क्या है?
तपती गर्मी के बाद,वो सावन का ख़ुशनुमा महीना है,
जो ज़ुल्फ़ मेरी सवार,कहता मुझे हसीना है।
जो मेरी खुबियाँ दिखाए,वो ऐसा आईना है,
कसम ख़ुदा की, ऐसा दिलबर कहीं ना है।
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