टूटे हुए सपनो की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी।
हार नही मानूंगा , रार नही ठानूंगा
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हू
गीत नया गाता हू ।।
- अटल बिहारी वाजपेयी-
2 SEP 2018 AT 19:51
टूटे हुए सपनो की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी।
हार नही मानूंगा , रार नही ठानूंगा
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हू
गीत नया गाता हू ।।
- अटल बिहारी वाजपेयी-