Akanksha Bhatnagar  
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Joined 18 December 2016


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Joined 18 December 2016
15 FEB 2021 AT 19:26

ख़्वाहिशों की टोकरी लिए उड़ रहे हैं जिस आसमान में आज ,
पाकर सबकुछ कूद जाएँगे कहीं बंगाल की खाड़ी में एक दिन ।

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11 AUG 2020 AT 13:08

"लोग अच्छे दिखते हैं,
जब नहीं दिखते हैं ।"

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5 JUN 2020 AT 15:36

"काट दी जाती हैं
कुछ टहनियाँ ,
आगे आ जाने पर
सुंदर मकानों के ,
ठीक वैसे ही
काटा जाता जैसे ,
पँख पुरुषों द्वारा
स्त्रियों के लग जाने से ।"

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2 JUN 2020 AT 15:56

तेरे हिस्से मेरी कितनी बातें आती हैं ,
मेरे हिस्से की रातें तो काटी जाती हैं ।

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2 JUN 2020 AT 13:26

तुझे सदियों से मेरी सौग़ात समझ न आई ,
चल छोड़ मुझे तो कोई रात समझ न आई ।

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10 MAY 2020 AT 11:29

"शीर्षक- माँ"

ममता में अनंत आँसू बहाने वाली
दर्द में आँखों को सूखा रखती है ,
अपने हिस्से का भी बाँटकर हमें
माँ अक्सर खुदको भूखा रखती है ।

कैसे बचा लेती है बुरी नज़रों से भी
मुझे तो हर दिन तू फ़रिश्ता लगती है ,
जाने अनजाने भूल जाते हैं हम तुझे
फिर भी हम मूर्खों से रिश्ता रखती है ।

हमारी ज़िद पर सब लुटाने वाली
अपनी खुशियों का गला घोंटती है ,
जो थी कभी बिल्कुल हम जैसी
अब सपनों को चूल्हे में झोंकती है ।

हम आंकते थे कम बचपन में जो
अब जाना कितने करिश्में करती है ,
उठ ऊपर उसे नीचा दिखाते हैं जो
माँ न कभी कोई शिकवे रखती है ।

चिंता में हमारी विचलित हो जाती
हर उम्र संग माँ बन खुदा चलती है ,
नहीं जरूरत किसी ईश्वर भक्ति की
जिस घर माओं की दुआ लगती है ।

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29 APR 2020 AT 11:12

शर्म ख़ता गर माफ भी हों
खुदमें बीमारी लगती हैं ,
हवा से भी हल्की पलकें
पर्वत सी भारी लगती हैं ।

कहने वाले खुदको ठीक
नज़र उठाए फिरते हैं ,
हमको तो अपनी सांसें
खुदसे गद्दारी लगती हैं ।

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26 MAR 2020 AT 15:45

मैं उदास लोगों से बैर रखती हूँ,
मुझे मैं ही क्यों इतना खलती हूँ।

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25 MAR 2020 AT 16:51

चाँद को भी जाने ठुकराया किस-किसने ,
इक चेहरे पर गौर फ़रमाया जिस-जिसने।

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6 MAR 2020 AT 21:04

"एक अधूरी कल्पना"

(FULL POEM IS IN CAPTION)

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