तेरे हिस्से मेरी कितनी बातें आती हैं ,
मेरे हिस्से की रातें तो काटी जाती हैं ।-
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"Kuch Ankahe Se... read more
तुझे सदियों से मेरी सौग़ात समझ न आई ,
चल छोड़ मुझे तो कोई रात समझ न आई ।-
बात-बात पर रोकर कल तक उद्दंड मचाने वाली लड़की,
थाम लेती है सिसकीयों को आज आहट पर किसी की ।
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फुर्सत कहाँ है तुम्हारे ख़्वाबों से ,
मर ही जाऊं जो हकीकत में आऊं ।
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ज़िन्दगी इतनी मशहूर कर दो
कि मौत भी बस तुमको दूर से ही देखने की गुहार लगा सके/-
ख़्वाहिशों की टोकरी लिए उड़ रहे हैं जिस आसमान में आज ,
पाकर सबकुछ कूद जाएँगे कहीं बंगाल की खाड़ी में एक दिन ।-
"काट दी जाती हैं
कुछ टहनियाँ ,
आगे आ जाने पर
सुंदर मकानों के ,
ठीक वैसे ही
काटा जाता जैसे ,
पँख पुरुषों द्वारा
स्त्रियों के लग जाने से ।"-
"शीर्षक- माँ"
ममता में अनंत आँसू बहाने वाली
दर्द में आँखों को सूखा रखती है ,
अपने हिस्से का भी बाँटकर हमें
माँ अक्सर खुदको भूखा रखती है ।
कैसे बचा लेती है बुरी नज़रों से भी
मुझे तो हर दिन तू फ़रिश्ता लगती है ,
जाने अनजाने भूल जाते हैं हम तुझे
फिर भी हम मूर्खों से रिश्ता रखती है ।
हमारी ज़िद पर सब लुटाने वाली
अपनी खुशियों का गला घोंटती है ,
जो थी कभी बिल्कुल हम जैसी
अब सपनों को चूल्हे में झोंकती है ।
हम आंकते थे कम बचपन में जो
अब जाना कितने करिश्में करती है ,
उठ ऊपर उसे नीचा दिखाते हैं जो
माँ न कभी कोई शिकवे रखती है ।
चिंता में हमारी विचलित हो जाती
हर उम्र संग माँ बन खुदा चलती है ,
नहीं जरूरत किसी ईश्वर भक्ति की
जिस घर माओं की दुआ लगती है ।-
शर्म ख़ता गर माफ भी हों
खुदमें बीमारी लगती हैं ,
हवा से भी हल्की पलकें
पर्वत सी भारी लगती हैं ।
कहने वाले खुदको ठीक
नज़र उठाए फिरते हैं ,
हमको तो अपनी सांसें
खुदसे गद्दारी लगती हैं ।-