AK रिक्त...   (AK__रिक्त...)
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Joined 25 January 2019


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1 APR AT 13:17

कुछ साँझ चुरायी थी मैंने,
तुम्हारे इतवार से,

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21 DEC 2024 AT 21:18

" सुनो पारिजात... जरा सा मुस्कुरा दो "

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12 DEC 2024 AT 12:15

तुम...मेरा सावन
और....
मै...मिट्टी सा इंसान,,

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7 DEC 2024 AT 11:22

' कुछ अनाम '

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3 DEC 2024 AT 21:08

जैसे,,,
साँझ सरक कर,
अधखुली खिड़कियों की दराजों से,
तुम्हारी हथेलियों पर चढ़ाती है,
अपनी सिंदूरी मेंहदी के रंग,

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1 OCT 2024 AT 13:59

मै,
कोरे कागज पर,
सारी दुनियाँ के,
सभी शब्दों को लिखूँगा,
और...

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29 SEP 2024 AT 20:01

कोरे कागजों को मोड़कर,
उनकी पीठ पर,
तुम्हारा नाम लिखते हुए,
अपनी कविताओं की हथेलियां थाम,
मै निकल पड़ता हूँ,
उनके साथ,

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27 SEP 2024 AT 10:25

"गंगा की धूप लिए...वो सुनहरे काजल वाली"

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13 AUG 2024 AT 17:39

"मेरी हथेलियों पर उगी,
माघ के भोर की धूप हो तुम,
मेरी साँसों मे भरकर,
सिंदूरी रंग अपना,
फागुन कर दिया जीवन मेरा"

सुनो...!
ओ...! कत्थई आँखों वाली,
मेरे नैनों की कोरों पर,
सजा ये सावन,
अब धीरे-धीरे टहककर,
मेरे हृदय की भूमि पर गिर रहा है,
जिससे...मेरे मन की मेढ़ पर लगी,
तुम्हारी यादों की भीत,
गीली हो गयी है,

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18 JUL 2024 AT 22:07

" साँसों के सावन की...वो गंगा अनमोल"

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