कुछ साँझ चुरायी थी मैंने,
तुम्हारे इतवार से,-
AK रिक्त...
(AK__रिक्त...)
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मै...!
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..रिक्त...।
"कृष्णं सदा सहायते"
मै कान्हा का...कान्हा मेरे..।
#उपलब्धियाँ--प्रेम_और_... read more
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..रिक्त...।
"कृष्णं सदा सहायते"
मै कान्हा का...कान्हा मेरे..।
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Joined 25 January 2019
3 DEC 2024 AT 21:08
जैसे,,,
साँझ सरक कर,
अधखुली खिड़कियों की दराजों से,
तुम्हारी हथेलियों पर चढ़ाती है,
अपनी सिंदूरी मेंहदी के रंग,-
29 SEP 2024 AT 20:01
कोरे कागजों को मोड़कर,
उनकी पीठ पर,
तुम्हारा नाम लिखते हुए,
अपनी कविताओं की हथेलियां थाम,
मै निकल पड़ता हूँ,
उनके साथ,-
13 AUG 2024 AT 17:39
"मेरी हथेलियों पर उगी,
माघ के भोर की धूप हो तुम,
मेरी साँसों मे भरकर,
सिंदूरी रंग अपना,
फागुन कर दिया जीवन मेरा"
सुनो...!
ओ...! कत्थई आँखों वाली,
मेरे नैनों की कोरों पर,
सजा ये सावन,
अब धीरे-धीरे टहककर,
मेरे हृदय की भूमि पर गिर रहा है,
जिससे...मेरे मन की मेढ़ पर लगी,
तुम्हारी यादों की भीत,
गीली हो गयी है,-