चलो फिर वही सब इरादे करें
ताजा पुरानी सी यादें करें
तुम अपने कहो कुछ मैं अपने बताऊं
यू गम दोनों के आधे आधे करें-
दुःख ये है कि वो शख्स, मेरा भी था कभी
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जुबाँ पे मोहब्बत का अल्फाज़ तुम हो
दिल के धड़कने की आवाज तुम हो
मैं अब आँधियो से जो डरता नहीं हुँ
मेरी हिम्मतों का आगाज़ तुम हो
जलधार तुम हो या अंगार तुम हो
मेरे हर मर्ज़ का उपचार तुम हो
तुम्ही ख्वाब में हो तुम्ही हो हकीकत
मेरा इश्क़ तुम हो मेरा प्यार तुम हो
नज़र से नज़र का जो पैगाम तुम हो
मेरे दिल की रानी सरेआम तुम हो
मुझे फुर्सतो में भी फुर्सत नहीं है
मेरी यादों में अब सुबह शाम तुम हो
फरेबी जहाँ में भी विश्वास तुम हो
गुलाबों की खुश्बू का एहसास तुम हो
मेरी चाहते सब खत्म हो चुकी, बस
मैं प्यासा हुँ और हाँ मेरी प्यास तुम हो ❣️-
तुम्हें मैं इश्क़ पुकारु तो ऐतराज़ होगा क्या
तुम्हारे भाव बदलेंगे अलग अंदाज़ होगा क्या
या फिर मिल जायेगी मुझको मेरे हिस्से की मोहब्बत
परिंदो के सफ़र का एक नया आगाज़ होगा क्या-
पहली मुलाक़ात में जो चन्द इशारे हुए
दास्तां शुरू हुई पास किनारे हुए
एक तमन्ना थी हमारी, चाँद को छुए कभी
और फिर कुछ यूँ हुआ कि आप हमारे हुए-
जन्मे सब जज़्बातो को बेकार मोहब्बब कर गई
दिल के टूट बिखरने के आसार मोहब्बत कर गई
चाहा उसको जिसको चाहत लफ़्ज़ समझना मुश्किल है
मेरी ही नज़रो में मुझे शर्मसार मोहब्बत कर गई-
नक़ाबपोश के नक़ाब के पीछे क्या है
इश्क़ के बेतुके इस राग के पीछे क्या है
वो जो कहते है शराबी हमें, बतलाये जरा
छुपाया हमने इस शराब के पीछे क्या है-
ये धूल खाती आशिकी तुझको मुबारक
ये दुश्मनी ये दोस्ती तुझको मुबारक
हम रह सके ना तयशुदा एक दायरे में
ये बात तुझसे आखिरी तुझको मुबारक
ये बेवफाई की कला तुझको मुबारक
बेगैरती ये काफिला तुझको मुबारक
नजदीकिया तुझसे खत्म सब कर चूका हुँ
तेरी चाहत थी ना "फासला"तुझको मुबारक
इश्क़ के सब कायदे तुझको मुबारक
शर्म हया की ये हदे तुझको मुबारक
मिल चुकी मुझको सज़ा तुझे चाहने की
इस सज़ा के फायदे तुझको मुबारक-
एक जरा सी सांस को तूफान क्यों करू
दिल्लगी में सबको यूँ हैरान क्यों करू
वो मुझे बतलाये मोहब्बत की गुणा भाग
खुद को मैं इतना भला आसान क्यों करू
है क़ज़ा में उससे गर एकतरफा मोहब्बत
प्यार के इज़हार का अरमान क्यों करू
क़ाईदे से देखता हुँ बात करता हुँ
दिलरुबा को ख़ामख़ा परेशान क्यों करू
महरूम हुँ तो क्या हुआ जिन्दा हुँ अभी मैं
इस बात को लेकर यूँ सब वीरान क्यों करू
एक वक़्त पर उठ जायेगा मेरा भी जनाज़ा
बेवक़्त ही बाग़ान को बेजान क्यों करू
जिन महफ़िलो की शान है वो उन महफ़िलो में जाकर
महफ़िल की बही में जमा मेहमान क्यों करू
चार दिन की ज़िन्दगी में दो पल उसका साथ
अपने सर पर उसका ये एहसान क्यों करू-
चल दिल यूँ थक ना कहीं पर चल, बहती हुई एक नदी पर चल
बरसात बनके बरस आसमां से, और फिर से प्यासी जमीं पर चल
जरूरी नहीं उसकी यादें जहां है, उदासी में बस तू वहीं पर चल
है फूलों पे नज़रे सभी की यहाँ, तू यूँ कर किसी एक कली पर चल-
तेज हवा से बादल फिर उस पार चले गये
और फिर बारिश होने के आसार चले गये
नाजाने कितनी चाहत थी उनसे मिलने की कल
नाजाने यूँ ही कितने इतवार चले गये-