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7985727205-
कुछ खो देने से बेहतर था मेरा कुछ न पाना...
आसान किस्तों में गुजर रही थी जिंदगी,
बेहतर था हर लम्हों में मेरा गुजर जाना...
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वो जब उतर गया था किसी और की चाहत में...
सच में, वो तभी दिल से उतर गया था...-
तुम्हारी पकड़ ही इतना कमजोर थी कि
सब कुछ छूट गया...
मैं लाख चाहतें रखा मगर
फिर भी तू रूठ गया...
तुम्हें जाने की जल्दी थी तुम चले गए...
मैं इतना मायूस तो नहीं था
मगर हद से ज्यादा टूट गया...-
बड़े खुशमिजाजी से
रंगों की छाप लगाया था मेरे मन पर...
बड़ी खामोशी से रंग उतार गया वो...-
वो पूछ बैठे कनखियों से,
इश्क़ ज्यादा पसंद है या चाय...
तो हमने भी बोल दिया ,आपके हाथों की चाय...-
दबे कुचले ख्वाहिशों पर
आशाएं आज भी भारी है..
रूह को रंग सके जो,
उस रंगरेज की तलाश आज भी जारी है...-
यह जीवन असल में एक ख़त है
किसी के लिए...
पूरा जी लेने के बाद हम चाहते हैं कि
बुढ़ापे में एक दिन हम बरामदे में
किसी बरगद की छाया तले बैठे हुए
चाय पी रहे हों...
हल्की मुलायम धूप हो और उस दिन
काँपते हाथों से हम अपना जीवन
जो एक ख़त-सा किसी लिफ़ाफ़े में है,
उसे खोलें और किसी को वह ख़त पढ़कर सुनाएँ।
उसे हमारा जीवन एक काल्पनिक कहानी लगेगा
और हम उस कल्पना में—
किसी जंगल में चलते हुए—
उस कहानी के सारे झूठ उसके साथ फिर जी लेंगे...
©® Ranjeeta shah-
धोखे कभी कभी अपरिमेय हो जाते हैं...
गैरों की बात ही छोड़ो,
यहाँ अपने भी इसके ध्येय हो जाते हैं...-
सुनो ना...
अब मैंने लिखना छोड़ दिया है...
जब से तुम गई हो न, तब से खो सा गया हूँ...
या ये कहो कि मर सा गया हूँ...
सांसे चलती तो हैं मगर महसूस होती नहीं।
श्मशान घाट सा हो गया हूँ...
तुम्हारी हर याद, बातें सब दफ़न हैं मुझमें...
तिलांजलि दे चुका हूँ एहसासों जज़्बातों की,
अब ना मौसम भाते हैं ना ही चाँदनी रात....
आँखों की चमक गायब सी हो गयी है...
मगर महफ़िलों में रौनक बरकरार रखता हूँ ...
किसी को महसूस होने नहीं देता कि
तुम्हारी कमी खलती है...
मगर हर शख्स को हंसाया करता हूँ...
हर एक की मुस्कान में तुमसे बिछड़ने का दर्द
महसूस किया करता हूँ...
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