न जाने कबसे शब्दों को संचय करने में अनवरत अवरोध आता जा रहा, यह अवरोध किसी व्यक्ति विशेष की वजह से नहीं हो रहा, यह अवरोध हमारे अंतर्मन के असंख्य विचारों से आ रहा, जिससे निकलना हो तो बस बहते जाओ प्रवाह जहां ले जाए...
तो हमेशा याद करना, ज्यादा कश्मकश हो तो बांट लेना, यूं तो हम कुछ कर न पायेंगे, पर उम्मीद है तुझे जरूर थोड़ी राहत मिलेगी, तो हर बार ऐसे ही याद कर बता दिया करना मन को हलचल, इसी बहाने कुछ हालचाल हो जाएगा।
मेरे हमसफ़र ना है तेरी कोई खबर जाने तू है किधर, ढूंढती रहती इधर उधर, न रह गया अब सबर, क्यों न करता मेरी कदर, फिरता जाने किधर किधर, ओ मेरे ए हमसफर अब तो आजा मेरे दर।