अज्ञातवास ¶$   (अधूरे_लफ़्ज़ ¶$)
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Joined 3 September 2019


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जब हम डर के साए में जीते थे,
अब एक वक्त ये भी,
जब हम मर मर कर जी रहे हैं।

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न जाने कबसे शब्दों को संचय करने में
अनवरत अवरोध आता जा रहा,
यह अवरोध किसी व्यक्ति विशेष
की वजह से नहीं हो रहा,
यह अवरोध हमारे अंतर्मन के
असंख्य विचारों से आ रहा,
जिससे निकलना हो तो बस बहते
जाओ प्रवाह जहां ले जाए...

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क्या खोजती रहती है,
कुछ ना बोलेंगी पर
कहेंगी बहुत कुछ,
फिलहाल तो बस ये
कुछ पल सुकून
और
कुछ पल बेख़ौफ़ से
जीना चाहती हैं ये..

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तो हमेशा याद करना,
ज्यादा कश्मकश हो तो बांट लेना,
यूं तो हम कुछ कर न पायेंगे,
पर उम्मीद है तुझे जरूर थोड़ी राहत मिलेगी,
तो हर बार ऐसे ही याद कर
बता दिया करना मन को हलचल,
इसी बहाने कुछ हालचाल हो जाएगा।

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मेरे हमसफ़र
ना है तेरी कोई खबर
जाने तू है किधर,
ढूंढती रहती इधर उधर,
न रह गया अब सबर,
क्यों न करता मेरी कदर,
फिरता जाने किधर किधर,
ओ मेरे ए हमसफर
अब तो आजा मेरे दर।

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कौन अपना
कौन पराया
ये क्यों है सोचना
बस खुद के बनो
दूसरा कौन है अपना।

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बस अपना कम दिमाग मत लाना,
आओ तुम्हे घुमा दे,
बस अपनी छोटी सोच मत लाना,
यूं तो बनाते हो खूब,
बस अपनी अकड़ कभी मत लाना।

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कुछ नज़्म बनाने हैं,
जो पढ़े, जो देखे, जो सुने
उसे बस अपना सा लगे।

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सोचना सोचे, या जो सोचे वो करें, क्यूं ऐसा होता है की बस सोचने की ही जुस्तजू चलती रहती है....

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लोगो को बदलते,
अच्छे होते हुए,
बुरे बनते हुए,
कुछ खुद से बने
कुछ हालत से बने,
पर मैने बदलते देखा है
लोगो को...

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