Ajit Tiwari   (Ajit Tiwari)
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8512026965
Joined 13 February 2019


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Joined 13 February 2019
23 APR AT 0:20

हिंद का हिंदू हार गया,
जब वो धर्म पूछ के मार गया।

तुम पढ़े लिखे जब कहते थे, इस देश में धर्म का क्या करना?
फिर उस अनपढ़ ने क्यूं बोला तुम हिन्दू हो तो तुम्हे है मरना?

कहां गए वो चार चंदू, जो लम्बी बातें करते थे,
हिंदू को गुंडा कहते, और भगवा से डरते थे,
है मजाल कि तुम अब कह दो कुछ भी इतनों के मरने पर,
है देखा अब तक कैसे तुम राम के नाम पे मरते थे।।

तुम कट्टर नहीं तो कट रहे हो,
और जात पात में बंट रहे हो,
कुछ करने की औकात नहीं,
और बोलने से भी हट रहे हो।।

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20 APR AT 23:17

कुछ वक्त से देख रहा हूं खुद को

कुछ आस नजर नहीं आती,
कुछ पास नजर नहीं आती,
सब ऐसे ही तो बीत रही
जिंदगी कुछ खास नज़र नहीं आती।।

क्या सोच रहे हैं पाने को,
अब बचा क्या है जाने को,
कुछ टूटे सपने और जुड़े नहीं हम,
जिंदा हैं,पर अब सांस नजर नहीं आती।।

बिन थके ही रुके हुए हैं,
बिन गलती के झुके हुए हैं,
मैं खुद को खुद में ढूंढ़ रहा,
पर अपनी आभास नज़र नहीं आती।।

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31 JAN AT 0:37

ये चार दीवारें, चांद रात को शांत हैं ऐसे,
जैसे मानो अमावस का काला हो,
जैसे कड़कती ठंड में पड़ता पाला हो,
जैसे बिन पशुओं के गौशाला हो,
जैसे मुरझाई फूलों की माला हो,
जैसे बंद पड़ा कोई ताला हो,
जैसे ढाल बिना कोई भाला हो।।

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30 JAN AT 19:20

ये जो आप आते हैं,
मुस्कुराते हैं, प्यार से बतियाते हैं,
क्या हमें मालूम नहीं कि आप काम निकलवाते हैं,
काम निकलते ही आप कहां गायब हो जाते हैं,
काम खतम तो बात खतम, फिर मुश्किल से दिख पाते हैं,
अनजाने से रहते हैं, जब तक काम नहीं आते हैं,
आप काम की पूजा करते हैं और हम काम पर याद आते हैं।।

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29 JAN AT 22:56

तुम खेल खिलौनों से खेलो ना,
बंदों को अंधा क्यूं करते हो?
चाल तुम्हारी तेज नहीं,
तो सबको मंदा क्यूं करते हो?
दिमाग से हो तुम शातिर माना,
फिर दिल का धंधा क्यूं करते हो?
चरित्र तुम्हारा साफ नहीं,
औरों को गंदा क्यूं करते हो ?

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28 JAN AT 22:53

सच कहूं, तो सब झूठे हैं।।

यहां भी झूठे, वहां भी झूठे,
है देखा जहां, वहां हैं झूठे,
कुछ झूठे अपनी बातों से,
अपनो से रिश्ते नातों से।
कुछ बता के झूठे लगते हैं,
कुछ छुपा के झूठे लगते हैं,
कुछ बैठे झूठ के राहों में,
कुछ लिपटे झूठ की बाहों में,
गीता की कसमें खाने वाले झूठे,
दिखावे में गंगा नहाने वाले झूठे,
जिनका तन भी मैला, मन भी मैला,
और खुद को पवित्र बताने वाले झूठे,
जो सच छुपाते रहते हैं, बहाने बनाते रहते हैं,
जो गंदे हैं उन्हें जाने दो यहां स्वच्छ कहाने वाले झूठे।।

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23 SEP 2024 AT 4:47

कभी सोचा है, क्या होता होगा?

जब शरीर को छोड़ रही हो आत्मा,
जब अंतर्मन को तोड़ रही हो आत्मा।

जब चाहत होगी जी लेने की,
दो बूंद अमृत की पी लेने की।

जब जीवन का सार गुजरता होगा,
बंदा पल पल में मरता होगा।।

जब राम मन में हों पर मुख पर नाम नहीं आता,
जब जिंदगी की कमाई अंत में काम नहीं आता।

क्या चाहत होती होगी मिलने की,
क्या याद आते होंगे अपने,
क्या स्मरण रहता होगा सब कुछ,
क्या भूल जाते होंगे सब सपने।।

क्या गिनते होंगे उल्टी गिनती, आंसू भरे नैनो को खोले,
कहने को हो सब कुछ, पर जुबां से वो कुछ न बोले।।

क्या क्या होता होगा, जब अंत समय आता होगा,
सांसे रुकती होंगी, और प्राण निकल जाता होगा।।
कभी सोचा है, क्या होता होगा?

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14 MAR 2024 AT 0:56

क्या क्या खतम?
बात खतम..
जज्बात खतम..
रोने वाले हालात खतम,
सुबह उठे तो देखा हमने,
ये काली काली रात खतम।
कहने को कुछ बचा नहीं,
और करने को मुलाकात खतम।
तुम चाहो जितना अकड़ो जाना,
मेरी नजरों में औकात खतम।
लूटा सबने चाहा जितना,
अब क्या बांटू, खैरात खतम।
हो तुम सही, रही गलती हमारी,
मेरी खुद से अब पक्ष पात खतम।
है चाहत की बस लिखता जाऊं,
पर लिखने को दवात खतम।।

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20 FEB 2024 AT 22:53

हो सूखे आंसू या भीगे नैना,
खुद की लाचारी पे क्या कहना।
हैं झेल रहे जो, है वो कर्म हमारा,
हैं वजह हमीं, है हमीं को सहना।
हो दिल भरा, या दिमाग अशांत,
न किसी से कहना, चुप चाप रहना।
करके मुंह बंद, कानों से सुनना,
है लाजमी तब आंखो का बहना।

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11 JAN 2024 AT 22:02

बेहतर होगा,
आप मुझे मेरी बेहतरी के लिए जानें,


अगर हम बुरे बने,
तो बहुत बुरा होगा।।

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