सीना चीर के देखो मेरा
तुम्हे महाकाल मिलेंगे
वो मौत देखकर हंसते है
जिनके
मन में महाकाल बसते है
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मेरी जिन्दगी तो राह चलते
मुसाफ़िर हो गया
हम जिसके कद्र करते थे
वही हमारे खिलाफ हो गया
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अनजान हूं शहर में
इसलिए
अपनो का अहसास होता है
चाहे दुनिया कुछ भी सोचे ले
जब तुना तारीफ करे
तब बुरा महसूस होता है-
ये जिंदगी तो
हर रवैए से गुजर रही है
आखिर जाना तो उसी रास्ते पे है
जान्हा से सूरज की रोशनी निकल पड़ी है
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मैं कुछ नहीं तेरे बिना
तू वजूद है मेरा
मै उसी मिट्टी से
बना हूं
जिस मिट्टी से घर बना है तेरा
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पराए तो पराए ही
रहेंगे जिंदगी भर
चाहे एढीयां रगड़ लो या नाक
अंत में काम अपने ही
आयेंगे ना की ये
पराए लोग
(मेरे लब्ज़)
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ढकना तो उसी चादर में है
जांहा ऊपर डलती है मिट्टियाँ
जिंदगी चाहे जिस मुकाम पे
ले जाएं
अब कोई नही है अपना-
काश हमारा भी कोई इसी
जान्हा में
अपनो का साथ होता
हम लड़ते तो जरूर
पर
अपनो का प्यार होता
उलझ कर भी हम सम्हल जाते
काश
सुलझाने वाला
कोई अपना होता-
जो होता है
वो अच्छे के लिए होता है
अगर मुंह फेरना है
तो अभी से फेर लो
क्या पता मै तुम्हारे
मेहरबानी का मोहताज़ ना बनू-
आंटा तो आज भी गिला है
मेरे गरीबी का
वर्ना
भाव तो मैं भी नही देता किसी को
जब ताव चढ़ता अमीरी का-