Ajit Lekhwar जौनपुरी   (Ajit lekhwar jaunpuri)
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Joined 6 May 2019


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हम बताएं किस तरह पाले जाते हैं
एक छत के नीचे गम सारे


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हर किसी को देना ही पड़ता है बदले में कुछ न कुछ
जिंदगी हर लम्हा लहू मांगती है जीने के लिए

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हमको भी है शर्मिंदगी बहुत की हम मिले तुझे
साथ हमारे कुछ न मिला बस गम मिले तुझे

तेरे लिए है दुआ , और बद्दुआ भी ये
हमसा न जांना कोई शख्स मिले तुझे

मै राह भटकूं और खो जाऊं कहीं
फिर न मेरे पा- ए- नक्श मिले तुझे

ढूंढता हूं खुद ही खुद में न जाने क्या
न खुदा मिले न कोई शख्स मिले मुझे

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न दिल में कुछ है न दिमाग में कुछ है
सब लूटा आए झोली में जो कुछ है

मांगे मे मिलती कहां है दरिया से बूंदें
देने में वक्त कितना लगता है जो कुछ है

निभाए गए हैं रिश्ते वो भी जो थे ही नहीं
तुमसे तो कमसकम थोड़ा बहुत कुछ है

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बहुत दिनों बाद तेरी सूरत तेरी याद आई तो
याद आया किसने तोड़ा था भ्रम सुराही का ।

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मजबूरन ही सही ये काम कर गए होंगे
हम भी तो किसी के वास्ते मर गए होंगे

बिन हमारे डूब जाने की ठानी थी जिन्होंने
हमारे बगैर भी तो किनारे तर गए होंगे

नजरें उठें तो तलवारें खिंच जाती हैं
इस जद्दोजहद में बहुत सर गए होंगे

जौन जिनके होंठों पर ही रहा वो रंग लाल
हाथों पर उतर आया होगा तो डर गए होंगे


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है अपनी नजरों से ये शिकायत हमें
इसने भी कम ही देखा है तुम्हें

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जिंदगी में ये भी तो गुनाह किया है हमने
जाने वालों को ना रोका और न जाने दिया हमने

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हम सोचते थे कि हम किस हादसे से मरेंगे
मर ना जाते गर पता होता तेरी सादगी पे मरेंगे

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हम भी जमाने के क्या क्या सितम नहीं करते हैं
हम गरजते हैं खुद पर ,खुद पर बरसते हैं ।

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