पानी किस धर्म का?
और नदियों की क्या है जात?
पेड़ों की भाषा कौन सी है?
पंछियों के कौन हैं उस्ताद?
मछलियों का देश क्या समंदर है,
या हैं सरहदें वहाँ भी?
अगर तैर जाए कोई गलती से उस पार,
क्या होती है जंग वहाँ भी?
क्या जंगल में है लोकतंत्र,
या है तानाशाही बाघ की?
जब होते हिरणों पर बलात्कार,
क्या माँगता शेर से इस्तीफ़ा कोई?
- अजिंक्य
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युद्ध संपले
जग जिंकले
सृष्टी घडली
कालचक्र फिरून
पुन्हा इतिहासाकडे वळले
मोक्ष, त्याग आणि कर्माचे
सारे पुरस्कर्ते संपले
मागे राहिल्या
त्यांच्या अजिंक्य गाथा
त्यात श्वास शोधत
इतिहासात गुदमरून
मृत पावल्या असंख्य
यशोधरा अन् राधा
मग लाखो जन्मले जरी
कृष्ण आणि बुद्धही
होतील का त्या जिवंत आता?
-अजिंक्य
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बुद्ध का होना ही
सिद्धार्थ खोना है
अनगिनत ब्रह्मांड में जैसे
शून्य होना है।
मौन को गले लगाए
फिर ज्ञान को बोना है
और वृक्ष बनकर किसी के लिए
छाँव होना है।
त्याग से नाता जोड़
हर बंधन को खोना है
सागर को मिलती नदी के जैसे
हर मिठास को अपनी खोना है।
बुद्ध का होना शायद
खुद से ही एक द्वंद्व है
हर बार हारकर भी खुद से।
हर क्षण में आनंद है।
-अजिंक्य-
अगर मिल जाए मौत सामने,
तो कर लूंगा विदा हसकर ये जहा।
फिर मिल जाएगी जब माँ उस पार,
तो जी लूंगा शायद सदिया वहाँ।-
हर बेज़ुबान की आंखे बस
अब यातना ही जानती हैं।
इंसान से इंसानियत की
थोड़ी सी याचना मांगती हैं।
बंद आंखे लिए
कब तक छिपाओगे नजरे उनसे।
कानो में रुई डाले चाहे कितना भी बैठो,
ढूंढ लेगी एक दिन वो सारी चीखे तुम्हे।
अगर फिर भी न आये शर्म खुद पे,
तो बस अपनी एक ऊँगली काट के देखना।
और न हो पाए उतना भी तुमसे,
तो गिरबान में अपनी एक बार झांक के देखना।
-अजिंक्य
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I am glad that
I don't have tail like dog.
Otherwise,
It wouldn't be in my control.
If she shows up on my path.-
मागे सरकणाऱ्या लाटांना पाहून
सागराला भयभीत केल्याचे
भ्रम ठेवणाऱ्या पावलांनो
वाळूत रुतलेल्या स्वतःच्या
भूतकाळातुन आधी मुक्त व्हा
नाहीतर समुद्र घेऊन जाईल
वर्तमान अन भविष्यही.
अजिंक्य
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अर्धी विझलेली अगरबत्ती
विसरलीच होती तिचा सुगंध
पण चटका कोणी तरी पुन्हा लावून गेले.
-अजिंक्य...
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The more I dislimn my past,
The lesser I remain for the future.
So I let my wounds bleed back,
And stopped being Eraser.-
बुध्द वाचावा कि राम.
युद्ध स्विकाराव कि ध्यान.
विचारांच्या ह्य द्वंदात,
द्यावा तलवारीस का मग विराम?
असावा एकलव्य मनात नेहमी,
भले द्रोण असो मग कोणीही.
शत्रु लपुन शिखंडी मागे,
बघु जिंकतील किती ह्या रणी.
असावा मित्र कर्ण जीवनी,
अन सुयोधन संग नेहमी.
हरून युद्ध जरी हजार,
घ्यावा मोक्ष संग ह्या धरनी.
रावनही असावा ध्यानी,
असावा हनुमानही थोडा मनी.
बुद्धि असो जरी दशमुखी,
असावी शेपूट ज्वलन्त दर क्षणी.
असावा ऊर्मिला सारखा त्याग,
जसा जानकीचा निस्वार्थ.
देऊन जीवन सारे निद्रेस,
ह्वावे विलिन मृदेच्या उरात.
-अजिंक्य
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