अजीत यादव   (your_quotes_world)
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Joined 24 February 2019


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22 JAN 2023 AT 10:30

पहले मासूमियत,
फिर मस्तियां,
फिर जुनून
कुछ कर गुज़र जाने का।
फिर इश्क़ और...
जिंदगी तबाह

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12 JAN 2023 AT 8:38

वो जो मकां जर्जर थे कभी,
वो जो सूखे झुके पेड़ थे कभी,
वो फूल जो मुरझा चुके थे,
नहीं बची थी जान जिन रास्तों में,
वो मकां अब जीने लगे हैं।
वो पेड़ अब मुस्कुराने लगे हैं।
फूल अब फिर से जगमगाने लगे हैं।
रास्ते भी अब वो चलने लगे हैं।
बस किसी एक इंसा के आने से..

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16 NOV 2022 AT 23:25

सफर में चलते
रास्तों से बातें करते।
पहुँचे एक मुकाम पर
जहाँ थोड़ा सब्र था।
आशियाँ ढूंढा इक छोटा सा
जिसपे बड़ा फक्र था।
ढूंढ़ा फिर सुकून को
वो थोड़ा दूर था।
मैं भी तब शायद
किसी नशे में चूर था।
हुई मुलाकात कुछ सपनों से
जो सोचने में बड़े ही नायाब थे।
जब खुली आँखें नींद से तो देखा
के वो तो बस ख़्वाब थे।
आया समझ कि अब यही वो मुकाम है
संघर्ष में ढूंढा था जिसे ये वही नाम है।
यही रास्ता है जिसपे चलते जाना है
सरल हो या दुर्गम इसी में जीवन बिताना है।

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7 NOV 2022 AT 22:12

कभी कभी वो यादें भी
सीना चीर के निकल जाती हैं
जो कभी दिल मे थीं ही नहीं।
🥀

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25 SEP 2022 AT 20:04

शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही किस्सा हुआ
आँखें मिरी भीगी हुई चेहरा तेरा उतरा हुआ।

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28 AUG 2022 AT 10:39

मुझे ए आसमाँ तेरी ऊंचाई की हदें पूछनीं हैं,
जमीं और तेरे बीच की सरहदें पूछनीं हैं।
भरनी है उड़ान मुझे भी बहुत ऊंची अभी,
मुझे उड़ान से पहले की सभी कोशिशें पूछनीं हैं।

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21 AUG 2022 AT 11:06

ये बस्ती क्या है दुकां है तरह तरह के लोगों की,
जहां बिकते है सब एक जायज कीमत पर।
यहां बोली लगे न लगे पर इतना पता है मुझे,
पछताना बहुत पड़ेगा यहाँ भरोसा करने पर।

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29 MAY 2022 AT 10:27

चमकते चेहरे खड़े सामने
होठों पर मुस्कान लिये।
ना द्वेष भाव ना रंज किसीसे
सीने में इक मृदु हृदय लिये।

सब एक साथ सब एक समान
ना कोई ऊंची गद्दी पर विराजमान।
इधर पाठ श्री राम का होता
उधर मौलवी पढ़े कुरान।

हैं समस्या पर समाधान भी हैं
यहां मिलकर होता सबका निदान।
बस तुम पूछो अन्तर्मन से इक बार
चाहिये तुम्हें मिरे ख्वाबों का जहान?

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30 JAN 2022 AT 13:07

जीवन तेरे साथ चलूँ मैं।
सुख भी हो चाहे दुख भी
सब संग-संग बाँट चलूँ मैं,
जीवन तेरे साथ चलूँ मैं।

कुछ साये हैं कुछ धूप मुक़्क़द्दर में
है सघन अँधेरा प्रकाश भी है,
अंधकार के कठिन पथों को
प्रकाश पुँज से बांध चलूँ मैं
जीवन तेरे साथ चलूँ मैं।

अपना है यहाँ कौन पराया
सोच सोच के क्यों मैं भटकूँ,
अपना है तो साथ चलेगा
गैर भी है तो क्यों फिकर करूँ मैं,
जीवन तेरे साथ चलूँ मैं।

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14 NOV 2021 AT 12:37

मंजिलों के हुनर हमने भी पाले थे
इन्हीं पेड़ों पर बसेरे हमने भी डाले थे।
क्यों न हो शौक हमें ऊँची उड़ानों का
कभी पंछी हम भी मतवाले थे।

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