कितने मनोरम हैं,
कितने मनोहर हैं,
मुझे पसंद हैं,
फूल सब के सब।
कितने परे हैं भय से यें
कि एक रोज़ का
टूटना प्रस्तावित है
नियति है क्रूर,
त्रासदी,जवाबदेही
तेरी नहीं कोई,
बस टूटेंगे यें सब के सब,
अब बस टूटेंगे सब के सब।
प्रेमी लाये हैं फूल,
देखो प्रेमिकाएं प्रसन्न हैं,
शहादत है फूलों की,
कि मानस तेरे लिए कुछ नहीं।-
धरा पर कतरा-कतरा प्रेम,
मेरा मन पूछेगा
तुमसे वही एक प्रश्न,
ये शून्य सा ... read more
लबों पर लब आए तो बात क्या करनी
इक हया मिरी दुश्मन तो बात क्या करनी
तुम भी कभी कुछ कहो यार मिरे कि
अब आगोश में तिरे बात क्या करनी
तिश्नगी तुमको मुझको क्या कह रही है
नाखून चबाते हैं दोनों बात क्या करनी
तपिश बढ़ा दी है मुझमें इक अब्र ने
बोलो न बताओ न तुमसे बात क्या करनी
मैं बे-ख़ुदी में रहता था क़मर पर इक
मदहोश हूं कि ज़मीं से बात क्या करनी
मर जायेंगे हम इक रोज़ "नरेंद्र" बताओ न
तन्हा अकेले में तुमसे बात क्या करनी-
तेरे होने से है
अब फ़कत-
आरज़ू,
जुस्तजू,
ख़ाब,
खा़हिश,
चाहत,
हसरत,
सजदे,
सदके,
तमन्ना,
इबादत वगैरह।
तू है तो
मैं फ़कत हूं -
आबाद,
फूल,
महकता,
बे-फ़िक्रा,
बे-खौफ़
हंसता,
मुस्कुराता,
ज़िंदा वगैरह।-
थपकियों से नींद नहीं आती मुझे
झपकियों से नींद नहीं आती मुझे
मुझमें जगा है कैसे कोई क्यूं कि
सदियों से नींद नहीं आती मुझे
बैठे-बैठे सोच रहा हूं मैं उसको
तसल्लियों से नींद नहीं आती मुझे
इश्क़ है इज़हार-ए-इश्क़ करो मुझसे
सरगोशियों से नींद नहीं आती मुझे
मुझको तुम आबाद करो बर्बाद करो कि
कहानियों से नींद नहीं आती मुझे
आप रखिए "नरेंद्र" नींद मिरी कि फ़कत
शाबासियों से नींद नहीं आती मुझे-
I am curious,
I am thrilled,
To know,
How many lovers are there,
How many of them are,
How many mourners are there,
How many are cursed,
Why are the mads mad after all,
They have been declared mad.-
What a disaster it was,
What a tragedy that was,
That's how ruined it.
The foot steps of love,
Save it as it is,
A city of civilized elite.
The evidence is disturbing,
The evidence is disgusting,
Not a rock article,
No documents,
Who is invisible,
The one who is tired,
The one who is untouchable,
It is just a memory,
Science is finding out
Those remains of civilization,
mine, in your eyes.-
तस्वीर में भी ख़ुश नहीं थे हम
कुछ थे मगर कुछ नहीं थे हम
वस्ल पे वो यार गर बुलाता
जाते के कोई ख़ुदा नहीं थे हम
आवाज़ देकर उसका गला बैठ गया
हालांकि दरख़्त बहरे नहीं थे हम
माज़ी बड़ा डराता है मुझको
वैसे जैसे हैं ऐसे नहीं थे हम
घुटनों पर ले आया मुझको वो
जो कह रहा है अच्छे नहीं थे हम
ज़िंदा है मुझमें "नरेंद्र" अब जो
उससे कहना कभी मुर्दा नहीं थे हम-
मन मस्तिष्क हारा है,
हृदय भी पराजित है,
परिधि मेरी सोख रही है
अभी धरा पर उकरे दुखों को।
मानस अविजित मैं
एक तुम्हारी स्मृतियों
के समक्ष धराशायी क्यों हूं,
अस्तित्व मेरा ये कैसा है
पैर पसार रही
विरह की ये सर्द रात
खोजते-खोजते
ऊष्मा चाहती है,
तुम्हारी राह तकते-तकते
खंडहर हो चुकी आँखें मेरी,
सांत्वना चाहती हैं।
सांत्वना चाहती है
बहु-प्रतीक्षित घोषणा,
तुम्हारे लौट आने की।-
सब बदल दूंगी मैं
पहले जैसा कुछ न होगा,
परिवर्तन अधीन है मेरे,
प्रकृति ने कहा था।
बलवान हूं मैं एक चिकित्सक,
हर मर्ज़ की दवा हूं,
घाव भरूंगा तेरे,
समय ने कहा था।
प्रकृति क्यों अब मौन है,
समय क्यूं हाथ बांधे खड़ा है,
कि तुमसे मिला मौन
भयवाह इतना क्यूं विकराल है,
सांस पर मेरी भारी है जो
क्या है, क्या तमाशा क्या है।
इतना निष्ठुर,
इतना निर्मम,
इतना क्रूर कौन हुआ है,
ये धरा फट क्यूं नहीं जाती,
आकाश गिर क्यूं नहीं जाता।
विवश मेरी सांसों का प्रवाह
बनाये कोई बवंडर ऐसा,
प्रलय का चरम तुम भी देखो,
प्रलय का चरम मैं भी देखूं।-