Ajey Mehta   (अजेय महेता)
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Joined 12 October 2018


Joined 12 October 2018
17 HOURS AGO

वहाँ
एक रजस्वला नदी...
पहाड़ों और मैदानों से टकराती हुई
सागर में मिल जाती है,
और यहाँ,
रजोनिवृत्ति के बाद भी
मेरे गर्भाशय का वजन
तालाब में कमल की पत्तियोँ सी
वर्षा की बूँदों से भारी जैसे।

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14 SEP AT 9:12

कहदो कोई
ओस की बूँदों से
अब खत्म हुई तिमिररज
आज,
उनमें पनपी बसंत पर
क्यों मैं पतझड़ बन झड़ूँ
उस छुवन का अहसास
ऐंठन कर
कही
बिछा लूँ
ओढ़ उसे ही
कुछ सो लूँ मैं...?

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7 SEP AT 13:49

जब
रो पड़ती है
पत्तों को लीपती हुई
किसी हरे हाथों की
दूधों-नहाई
इंद्रधनुष सी श्वेत रेखाएं
तब
रक्त की फुहारों में
प्रक्षालन करती हैं श्वेतवसना देवांगनाए
घुल जाता है
पैंजनी पहने सुघड़ छत

अँधेरे के गर्भ में
कौन बो जाता है
रक्त के बीज?

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6 SEP AT 10:56

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4 SEP AT 21:31

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2 SEP AT 21:45

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26 AUG AT 8:54

क्यों बार बार
मैं झार झार...

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18 AUG AT 21:41

मेरा प्यार एक परछाई है...
मेरे हाथ ही नहीं लगती।

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17 AUG AT 16:56

मेरे लिए आत्मासे एक आत्मा का वोही संबंध है,
जो मुझे रूह की गहराइयों तक ले जाएगा,
सीमन्त...
जैसे सामने अरण्य में वृक्षों का समारोह
और हमारे बीच वोही अतुल एकांत,

पूर्णता एक शरुवात है।

जैसे ये खाली कुर्सी।

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3 AUG AT 9:21

तुम्हारे सिवा मैं फिर कभी प्यार की तलाश नहीं करूँगी ,क्योंकि मुझे पता है कि अगर मैंने ऐसा किया, तो मैं हर उस पौधे में तुम्हारी तस्वीरें ढूंढूंगीं जिससे मैं मिलूंगी,जो सिर्फ बोल नहीं सकते...

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