Ajey Mehta (अबोध)   (ajey mehta)
1.9k Followers · 312 Following

Joined 12 October 2018


Joined 12 October 2018

सुनो ना

मैं जानना चाहती हूं

कैसा होता होगा स्वपन का सहवास?

जैसे हमारे बीच "मिलते है" कह कर चले जाने का दरवाजा होगा ?
या
कोई शर्तों की दीवाल होगी?


अजेय

-



वृक्ष से गिरे हुवे पत्तों में...

डूबते हुवे कितने सूरज की यादें सिमटी होगी।

-



तुम नदी की तरह
बहते हो मुझमें.
मैं डूबती हूँ उसके एकांत में
जहाँ डसता है निराश्रित साँप
कई बार,
फिर विष के कालचक्र में
ढूँढती हूं
समाधिस्थ मौन को
जिसे तराशकर तुमने बनाया है मोहक
सुख की तिथियाँ
फिर तैरती है
देह की आकाश-गंगा में
फिर जपती हूं
तुम्हारा नाम
श्वेत कमल धरे
बहते हुए निशुल्क मोक्ष के लिए...

अजेय महेता

-



अशुद्धता से अछूता
एक कमल का फूल
मेरी परछाई के हाथ मे दे दूं तो?
 

-






ये आंखे लड़ने से
कजर क्यों फैल जाता है?

-



उसने बस एक गाना मुझसे गवाया,

जाने कितनी शामों को उकेरा...

-



कंठस्थ शब्दों से रची गयी कविताएं मुझे समझ मे नही आती
कुछ बैंजनी ऐंठन शब्द दे देना
जुड़े में सजा लुँगी...


आप उसे गजरा कह देना,

मैं उसे

नीलकंठका वो नीले रंग का गला मान लूँगी।

-



संमोहन के बिना समर्पण अशक्य है।

-



बेरंग मैं...

तू मेरा मनपसंद रंग।

-



जो सत्य स्वीकार नहीं करता है...
उससे बड़ा अज्ञानी कोई हो नही सकता।

-


Fetching Ajey Mehta (अबोध) Quotes