तृक हो गई हयात
वतन-ए- इन्ताइ खलूस में
तर कर रहे हैं अश्रु
धरा को यु जुलूस में
उदित हो रहा है नव प्रकाश यू आकाश में
बढ़ रहा है हर कदम हिंद के विकास में
स्वच्छता की आरज़ू है सांसों की आवाज में
गदगद हो गए हैं हृदय जीत के विश्वास में
क्यों फंसा है आदमी तु मज़हबे -ए- शिकार में
तोड़ दे ये बेड़ियां हिंद की पुकार में
हर तरफ एक जिंदगी है जीत की तलाश में
पुछ अपने आप से कि बैठा क्यों हताश में-
कुछ राज़ राज़ ही रहे तो अच्छा हो
लव दो पल के लिए बेअल्फाज़ ही रहे तो अच्छा हो
और बरकत चूमे कदम हुनरमंद यहां हर एक बन्दा हो
जिंदगी ऐसे जियो जिसे देखकर मौत भी शर्मिंदा हो-
जो कुछ भी कहूं कम है तेरी खूबसूरती पर
फिजाओं को भी है गुरूर तेरी मौजूदगी पर
इत्र भी जैसे महकता हो तेरी मुस्कुराहटों पर
और यही दुआ है कि
गुरूर ना हो कभी भी पापा की परी को उसकी खूबसूरती पर
बहुत किया है तंग तुझे जाने अनजाने में
चिढ़ाने में वह मजा नहीं जो है तुझे मनाने में
हाथ सबसे पहले उठेंगे मेरे तेरी दुआओं के नजराने में
पर दिल से एक बात कहूं तो बड़ा मजा आता है तुझे चिढ़ाने में
अब तो बस यही दुआ नजर होती है खुदा के दरबार में
कोई कमी ना रहे मेरे यार को खुशियों में बहार में
तकल्लुफ भरी इस जिंदगी में खुदा ने नवाजा है दिन बहार का
अल्लाह बरकत बक्से उसे
आज जन्मदिन है मेरे यार का-
ख्वाहिशों के पौधे खिल रहे हैं चाहत के बगीचे में
सिसक रहे हैं वो मेरी जिम्मेदारियों के पसीने में
हौसलों की मिट्टी में हो रहे थे बुलंद दो गुलाब
खिल गए हैं जो दिल में यू पतझड़ के महीने में
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खौफनाक एक मंजर को जश्ने बहार करने निकला हूं
अपने मुस्तकबिल से बढ़कर मैं कल को आज करने निकला हूं
और जंग है मेरी उस खुदा से
जुर्रत देखिए कि उसके दर पर वार करने निकला हूं
रूबरू तो कई दफा किया खुद को यूं आईने से
औकात भूल गया मगर जो तुझसे प्यार करने निकला हूं
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जो कुछ भी है तुम में है
जो कुछ भी....
धोखा झूठ फरेब जो कुछ भी है तुम में हैं
मेरी हस्ती है भी अगर तो गम में है
और रुसवा निकले हैं तेरी गलियों के दौरे पर यूं
कि जैसे आज भी कहीं तेरा आशिक जिंदा हम में है-
महफूज रहे वो हर पल
मेरे ख्वाबों में गुजर गई है जिंदगी जिसकी
आंखें तो नम है उसकी याद में
मगर दिल को मंजूर नहीं है बेरुखी उसकी-
ना जाने कौन सी खता थी कौन सा कसूर था
जो आपके लवो को सिलने पर मजबूर था
मांग लेते जान भी अगर तो हमें मंजूर था
ना जाने इस सज़ा के पीछे कौन सा कसूर था
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खताए कुछ ऐसी भी की है
जिन पर हमें गुरूर है
ना जाने ऐसे कौन से किए कसूर है
जिनकी बदौलत हम आज भी मशहूर है
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हर रात ख्वाबों में मुलाकात हो जाती है तुमसे
हकीकत में जो कभी बयां ना कर सका वो बात हो जाती है तुमसे
हर बात तुम से शुरू होती है और खत्म होती है और तुम ही पर
और फिर सूरज उग आता है और गिर जाते हैं हम सातवें आसमान से जमीं पर-