Ajay Srivastava   (Ajay Shrivastava)
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Joined 14 June 2019


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Joined 14 June 2019
24 AUG 2019 AT 15:07

कभी इस तरह से तुमसे न दूर हुआ,
जैसे आज दूर हुआ हूँ मैं।
तन्हाइयों से कभी डर नही था मुझे,
मगर अब तन्हाइयों ने घेरा है मुझे।
ये तो नियति की चाल है या है कोई धोखा,
जैसे किसी ने मुझे मंजिल पर जाने से रोका।
या तो वक़्त खफा है मुझसे, या है दूर हुआ,
जैसे तुमसे दूर हुआ, चूर चूर हुआ।
कभी इस तरह न हुआ कभी, जैसा अभी हुआ,
कुछ रिश्ते ऐसे हैं टूटे, जैसा कभी सपने में नही हुआ।

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23 AUG 2019 AT 9:44

हे कृष्ण मेरे, तुझसे क्या छुपा है,
तू तो प्रत्येक कण में बसा है।
सृष्टि का आदि तू है और अनंत भी तू,
तुझसे ही जगमग ये संसार है।
विराट स्वरूप तेरा, ब्रह्म ज्ञान का प्रतीक है,
जो मानव के भविष्य के लिए, दिशा का प्रतीक है।
तेरे होठों से निकला प्रत्येक स्वर, ज्ञान का मार्ग है,
हे कृष्ण मेरे, तेरा ब्रह्म ज्ञान तुझसे मिलने का मार्ग है।
ज्ञान को जितना समझ पाया हूँ, सबमें तुम्हारी ही वाणी हैं,
तुझसे ही है ये दुनिया, जिसमें तुम्हारी शक्ति ही न्यारी है।
तेरा नटखट बाल रूप, जिसमें अलंकृत विश्व का सौंदर्य है,
तुम पर वारी गोपियाँ, ब्रज का मनोरंजन हैं।

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19 AUG 2019 AT 20:42

कभी कुछ कहना सीखो, मगर झुकना मत सीखो।
भीड़ में भी खड़े रहो, पर आवाज़ ऊंची करना सीखो।
कुछ इस तरह से जियो जिंदगी, हौसले पर कमान लगाना सीखो।
आज है यही, आज ही है यही, ये वास्तविकता जानना सीखो।
कुछ इस तरह जियो जिंदगी, खुद को पहचानना सीखो।
इरादे कुछ ऐसे हों, उन इरादों को सलाम करना सीखो।
अपने कर्मठता से, कर्मों को निखारना सीखो।
बहादुरी से आगे बढ़कर, बुराई को मिटाना सीखो।
आज़ाद हो जाओ सभी बन्धन से, और स्वतंत्र होना सीखो।
अपनी आज की मेहनत से, काल का निर्माण करना सीखो।
अपने आधार को दृढ़ता देकर,सुदृढ़ भविष्य का निर्माण करना सीखो।
कुछ भी हो जाये जिंदगी में, मगर अपना ईमान खोना मत सीखो।
हँसकर आगे बढ़ते हुए, जिंदगी में हमेशा अच्छा करना सीखो।

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19 AUG 2019 AT 0:42

कुछ वक़्त हो गया, नाराज़ बैठा हूँ,
दुनिया के लोगों को, समझने बैठा हूँ।
हुआ क्या है ईमानदारी को, ये तराशने बैठा हूँ,
सवाल सी बन गयी है सच्चाई, ये ढूँढने बैठा हूँ।
हर तरफ अब मैं, अच्छाई को तलाशने बैठा हूँ,
चढ़ गया हूँ अब कश्ती पर, हर एक दरिया पार करने बैठा हूँ।
तिलिस्म का कोई असर नहीं मुझ पर, क्योंकि साधना में बैठा हूँ,
लोगों को आईने देखने का शौक नही, लेकिन मैं दिखाने बैठा हूँ।
कुछ हैं जो विश्वास के काबिल नही, उनको मैं चुनने बैठा हूँ,
कुछ हैं जो विश्वास से परिपूर्ण, उन्हें संजोने बैठा हूँ।
कुछ को नाराज़ किया है मैंने, ये जानते हुए भी, मैं ऐंठा हूँ,
आने वाले कल के लिए, उनके सदगुणों को पहचानने बैठा हूँ।
माफ करना ऐ दोस्तों!, तुम्हारे प्रतिबिम्ब को जानने बैठा हूँ,
तुम्हारी हर क्रिया का, प्रतिक्रिया से हिसाब करने बैठा हूँ।

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6 AUG 2019 AT 19:50

कुछ ख़बर भी है तुमको, दिल दे दिया है तुमको,
इश्क़ का पता नही, मगर अब कुछ माना है तुमको।
तुम्हारे लिए जी रहा हूँ, दिल से संगीत गा रहा हूँ,
इश्क़ की धुन चढ़ गई है मुझ पर, कुछ ख़बर भी है तुमको।
कुछ अजीब सा लगने लगा है, मन में कुछ अलग चलने लगा है,
कुछ बात मन में रह गयी है, कुछ ख़बर भी है तुमको।
आज बात आयी है मेरे मन में, मन की दीवारों ने अब दवाब डाला है।
इस मन की उलझन तुम ही हो, कुछ ख़बर भी है तुमको।

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6 AUG 2019 AT 19:50

कुछ ख़बर भी है तुमको, दिल दे दिया है तुमको,
इश्क़ का पता नही, मगर अब कुछ माना है तुमको।
तुम्हारे लिए जी रहा हूँ, दिल से संगीत गा रहा हूँ,
इश्क़ की धुन चढ़ गई है मुझ पर, कुछ ख़बर भी है तुमको।
कुछ अजीब सा लगने लगा है, मन में कुछ अलग चलने लगा है,
कुछ बात मन में रह गयी है, कुछ ख़बर भी है तुमको।
आज बात आयी है मेरे मन में, मन की दीवारों ने अब दवाब डाला है।
इस मन की उलझन तुम ही हो, कुछ ख़बर भी है तुमको।

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20 JUL 2019 AT 12:08

बुढ़ापा, न आयु है, न है एक अवस्था,
जीवन के सम्पूर्ण लम्हों का है एक बस्ता।
कुछ किताबें खुलीं हैं जिसमें, कुछ हैं बंद,
जीवन के उतार और चढ़ाव से, हैं जो तंग।
पर आज सफर, रुक से गया है,
कलम भी सोचकर, रुक गया है।
लिखूँ क्या अभी, सोच रहा है ये,
जीवन की खुशी और गम, पहचान रहा है ये।
कुछ धुंधली सी यादों में, खो गया हूँ मैं,
आज न जाने, थक सा गया हूँ मैं।
कुछ अनजान रिश्ते याद आ रहें हैं,
कुछ पहचान के लोग भूले जा रहें हैं।
पन्नों पर क्या लिखूँ, मन में लिखा है सब,
जीवन की कुछ बातें, याद आ रहीं हैं अब।
व्यथा यही है, कुछ याद आ रहा है, कुछ भुला जा रहा है,
पर क्या लिखूँ, समझ नही आ रहा है।
जीवन के इस पड़ाव पर, रुक गया हूँ मैं,
कश्ती को लेकर, खो गया हूँ मैं।
कहीं दरिया का शोर है, तो कहीं है जल तरंग की ध्वनि,
मन बड़ा चिंतित है, मिल जाये कहीं से रोशनी।

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20 JUL 2019 AT 9:20

आज एक सवाल मन में आया कि ज्ञान क्या है। ज्ञान की प्राप्ति कैसे संभव है?? ज्ञान का सत्य स्वरूप क्या है?? और भी बहुत कुछ....? गीता में बताया गया है कि व्यक्ति को सच्चा ज्ञान को प्राप्त करने के लिए अपने मन में गुरु के प्रति समर्पण और अपने मन के अहंकार भाव को त्यागना पड़ता है। तब जाकर उसे ज्ञान की प्राप्ति संभव है। ज्ञान गुरु द्वारा दी गयी वह शिक्षा है जिससे मनुष्य मोह माया को त्याग कर मोक्ष प्राप्त करता है। गीता में कहा गया है कि तुम कर्म करो। अतः सभी संबंधों का सम्मान और आदर करो। परन्तु किसी भी कर्म में लिप्त न हो।

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19 JUL 2019 AT 10:47

कर्म का आधार अगर प्रतिज्ञा हो तो व्यक्ति को सफलता अवश्य मिलती है। इस जीवन मे कर्म ही पर्याप्त है। अगर कोई व्यक्ति प्रतिज्ञा विहीन होकर कोई कर्म करता है, तो उसका वह कर्म करना व्यर्थ है। लेकिन यह भी ध्यान में रखने योग्य है कि हम जो प्रतिज्ञा लें, उससे समस्त मानवों का कल्याण हो। स्वार्थ भाव से ली गयी प्रतिज्ञा, जीवन का नाश कर देती है। क्योंकि मानव मन, चंचलता के कारण हमारा ध्यान भटका देता है। और उस प्रतिज्ञा को हम तोड़कर नए कर्म को करने की सोचते है। यह प्रत्येक मानवों का स्वभाव है। जो कार्य वह नही कर पाते, उसे त्याग कर नए कार्य को करने के लिए बढ़ते हैं। परंतु हम यह भी जानते है कि चले गए समय को दोबारा नही लाया जा सकता। अतः अगर हम जीवन मे सफल होना चाहते हैं तो हमें प्रत्येक कर्म को प्रतिज्ञा मानकर श्रद्धा भाव से करना चाहिये। और जीवन में संघर्ष पथ पर चलने के लिए सजग रहना चाहिए। यही सफलता का आधार है। अपितु बिना उद्देश्य के जीवन व्यर्थ है।

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16 JUL 2019 AT 7:31

Continued........
और गुरु तो उस स्वादिष्ट फल की तरह है जिसका वर्णन आप कर ही नही सकते। केवल आप उस फल का अनुभव खुद ही ले सकते हैं। और शायद मैं उस योग्य भी नही कि मैं गुरु महिमा का बखान कर सकूँ। मेरे बाबा स्वर्गीय ब्रिजेन्द्र नाथ श्रीवास्तव ने मुझे एक सीख दी थी जिसको मैं बताना चाहूंगा कि व्यक्ति का चरित्र श्रीराम के समान होना चाहिए और नीतियाँ श्रीकृष्ण की तरह।तभी इंसान जीवन मे सफलता को प्राप्त कर पाता है। आज यह बात सब भूल चुकें हैं। जीवन में मेरा एक और गुरु रहा है वह है, समय। जिसके कारण मै वास्तविक जीवन की सच्चाई से अवगत हो पाया हूँ। जिस प्रकार कोई भी बूंद, सागर का वर्णन नही कर सकती उसी प्रकार मैं भी गुरूओं के आसमान का वर्णन नही कर सकता क्योंकि यहाँ ज्ञान के अनेक सूर्य हैं, अनेक चंद्रमा, और अनेक नक्षत्र। सब अवर्णनीय है।
विश्व के समस्त गुरूओं को मेरा साष्टांग प्रणाम।
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।
माताओं औऱ पिताओं से निवेदन है कि वह अपनी संतान को अच्छे संस्कार सिखायें जिससे वह भविष्य में उनके द्वारा स्वयं का परिचय पायें। अन्यथा सृष्टि पापयुक्त हो जायेगी और विश्व का अंत हो जायेगा।
प्रकृति की रक्षा कीजिये।
जल का बचाव कीजिये।
धन्यवाद।
जय हिंद जय भारत।
इंकलाब जिंदाबाद।

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