तुम मुझे भले ना मनाना
मगर मुझे इतना जरुर बताना
कि तुम्हारे रुठने पर क्या मैंने
कभी नहीं मनाया प्यार से तुम्हें?
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‘अधूरा मैं’
मैं नहीं लिखता कविताएं
किसी पुरस्कार या सम्मान की चाह में
मैं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का
एक अधूरा नागरिक !
मुझे नहीं चाहिए परिजनों, दोस्तों या
किसी प्रेमिका के हृदय में जगह
मैं अपनी अधूरी कविताओं के साथ
भटकने वाला एक अधूरा कवि !
मुझे नहीं मिले किसी अधूरी कविता में
एक आखर भी जगह तो न सही
मैं इस देश के सबसे कमज़ोर किसान
शोषित मजदूर के दिल में चाहता हूँ
थोड़ी सी जगह !
अगर बना सका इतनी सी जगह
तो निश्चित ही मेरी कोई कविता
पूरी हो सके
और शायद मैं
एक संपूर्ण आदमी बन सकूं
इस अभागे देश का ।
✍️ अजय कुमार सिंह
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दुनिया है चार दिन का मेला
फिर क्यों करना इतना झमेला
उड़ जाएगा हंस अकेला
यूँ ही किसी दिन।-
जिस हाल में भी हम रहें
चाहे जैसी भी परिस्थिति रही
दर्द में भी मुस्कुराते हुए
हर दर्द को हमने अपना लिया।-
“मेरा कोई हो न पाया”
ज़िंदगी को करीब से देखने के लिए
चलता रहा हूँ आहिस्ता हमेशा
लोग कहते रहे अरे ज़िंदगी में तेज भागो-
वरना बहुत पीछे छूट जाओगे !
पर मैं हमेशा ठहर कर सबको वक्त देता रहा
समझता रहा सभी को करीब से
शायद अक्ल कम है मुझमें
या दुनिया की तरह चालाक नहीं हूँ !
जिसको भी देखा करीब से ठहर कर समय दिया
अबतक बस यही समझ पाया
मैं ज़िंदगी में सबका हो गया
पर मेरा कोई हो न पाया ।
✍️- अजय कुमार सिंह-
“मेरा कोई हो न पाया”
ज़िंदगी को करीब से देखने के लिए
चलता रहा हूँ आहिस्ता हमेशा
लोग कहते रहे अरे ज़िंदगी में तेज भागो-
वरना बहुत पीछे छूट जाओगे !
पर मैं हमेशा ठहर कर सबको वक्त देता रहा
समझता रहा सभी को करीब से
शायद अक्ल कम है मुझमें
या दुनिया की तरह चालाक नहीं हूँ !
जिसको भी देखा करीब से ठहर कर समय दिया
अबतक बस यही समझ पाया
मैं ज़िंदगी में सबका हो गया
पर मेरा कोई हो न पाया ।
✍️- अजय कुमार सिंह-
लक्ष्य यदि महान है, विपरीत हो परिस्थिति
वीर कर्मवीर ही करें कार्य की सिद्धि
भारत की स्वतंत्रता बलिदान थी मांगती
नेताजी ने सिखाया आजादी महान थी।-
हाँ ये सच है कि हमें मोहब्बत है तुमसे
पर इसे कुबूल नहीं करना है,
मोहब्बत के रिश्ते नाज़ुक होते हैं
इसलिए दोस्ती के मजबूत धागे से-
बाँध रखा है हमने,
हाँ ये सच है कि हमें मोहब्बत है तुमसे।-
अक्सर वो इंसान अकेला रह जाता है, जो खुद से भी ज्यादा किसी दूसरे के लिए सोचता है !
दिल से सोचने वाले बहुत मासूम होते हैं, इसलिए वो दिमाग का इस्तेमाल ही नहीं कर पाते।-
पुरुष होना भी नहीं है आसान
ना जाने कितनी जिम्मेदारियों का
बोझ उठाए जीते हैं उम्र भर
सहते हैं पुरुष भी बहुत कुछ
सहना सिर्फ औरतो की नियति नहीं
कुछ पुरुष भी सहते हैं ताना
प्रेम में मिली असफलता के बाद भी
जीते हैं अपने आँसुओं को छिपाकर
हर रात रोता है पुरुष भी जार-जार
मगर उसके क्रंदन से नहीं पिघलता
किसी ईश्वर का हृदय
पुरुष की कमजोरी को मान लिया
जाता है उसका सबसे बड़ा अपराध
क्या पुरुष को रोने का अधिकार नहीं?
कब मिटेगी ये असमानता
कि कोई पुरुष भी रोना चाहता है
तो उसे भी मिले कोई कंधा
जिसपर सिर रख वह रो सके जार-जार
बाँट सके वह भी अपने हिस्से का दुख
पुरुष होना भी नहीं है आसान।
✍️- अजय कुमार सिंह-