Ajay Pratap Singh   (अजय प्रताप सिंह)
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4 OCT 2023 AT 12:39

अहसास दिलाती है, टिक टिक करती वो सुई घड़ी की
कि कदम हर रोज़ बढ़ाए जाए,बिना रुके बिना थके,
तो हासिल होता है एक नया सवेरा, एक नई किरण, एक नई उम्मीद ।

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4 OCT 2023 AT 12:09

गुलामी की जंजीरों में बंध चलते रहे, जैसे कोई ठिकाना न रहा,
आज़ादी मिली जो गैर इरादतन, पाया कि खुले आसमान का जमाना न रहा,
आदतें थी हर दफा किसी के नज़्म आजमाने की,
जो खुद लिखने बैठे तो कोई दीवाना न रहा ।

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22 NOV 2022 AT 6:38

ajay pratap singh

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28 NOV 2020 AT 7:55

निकला था तलाश में मंजिल कि
मुसाफ़िर कि रास्तों से कुछ बात हो गई!
ज़रूरत थी जब जां सलामत रखने को धूप की
कमबख्त बेवजह ही दोपहर,मुक्तसर रात हो गई ।

गुज़ारिश करता तो भी कैसे खुदा से अपने
कायनात की बात तो छोड़ो,
यहां तो सांसे ही अपनी अपने खिलाफ हो गई ।

उम्मीद के चिराग़ को रोशन किए जाने की
कोशिश में लगा था शख्स वो
ना जाने कैसे बिन मौसम बरसात हो गई

तकदीर का लिखा मानकर जो
लौटना चाहा घर को अपने!
ख्वाहिशों के आशियां की वो जमी
अपने ही उजाले की चाह में,
अपनी लो से जलकर राख़ हो गई

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27 NOV 2020 AT 19:13

ज़िन्दगी के खूबसूरत लम्हे बयां किया है
हर शख्स ने अपनी किताबों में !
ना जाने क्यूं बाद का मौत के सफ़र,
आज भी सबकी निगाहों में गुमनाम है

लफ़ज़ नहीं मिलते तारीफों को उसके
बिना अल्फाजों में लिखा वो खत/पैगाम है !
बदनाम किया है नामुराद चंद बेईमानों ने,
जन्नत से भी खूबसूरत मौत ये ,
ज़िन्दगी के बाद का ये अंजाम है।

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25 NOV 2020 AT 15:14

ये ग़ज़लें,ये नज़्में,ये शोहरतें,ये नाम
यूं ही हासिल नहीं होते,
मुख्तलिफ कोशिश से कमाना पड़ता है !
चैन सुकून हासिल होने जाए बेशक
हर मुख्तसर ख्वाब को अपने गवाना पड़ता है ।

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25 NOV 2020 AT 11:44

तलाशेंगे फिर हमको
जो अभी नजंदाज किए जा रहे हैं।
मारने का इरादा तो तय है पहले से
बस सही वक्त के इंतजार में जिए जा रहे हैं ।

नमक का कारखाना डाला है "अभी" अपने दिल में
काम में आए कहीं इसलिए ज़ख्म दिए जा रहे हैं
और कहीं मुकम्मल होने कि ख्वहिश ना कर ले
तोड़ने कि फिराक में ख़्वाब दिए जा रहे हैं ।

तलाशेंगे फिर हमको
जो अभी नरअंदाज किए जा रहे हैं ।

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25 NOV 2020 AT 11:38

वकील तुम भी हो
वकील हम भी हैं
फर्क सिर्फ इतना है
तुम इश्क से लड़ते हो
हम इश्क के लिए लड़ते हैं ।

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21 NOV 2020 AT 21:27

अपने ही दिल की कब्र में दफ़न किए हैं राज हमारे,
लोगो का कहना है बेवजह मुस्कुराते रहते हैं !

क्या जाने कोई खुशनसीब मुकद्दर कमबख्त मेरा,
बिछी है चादर मैयत में अपनी ही,
और अपने ही जनाजे में सिर मुड़ाए बैठे हैं ।

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13 NOV 2020 AT 22:16

एक सिलसिला ख़तम होता नहीं कि
दूसरा इंतजार किए बैठा रहता है
ना जाने क्या मुकद्दर है इस ज़िन्दगी का
लिखा है कुछ कहता है कुछ
और कुछ और किए देता है

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