Ajay Pathak   (अजय पाठक)
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Joined 22 August 2018


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Joined 22 August 2018
26 JUN 2023 AT 1:42

अनजाने लोग अनजाने ही रहे। मैंने जब जब अनजाने लोगों को समझने या उनके पास जाने की कोशिश की, उन अनजाने लोगों ने मुझे धक्का मारकर गिरा दिया। अनजाने लोगों को खुन्नस इस बात की न थी कि वो मुझे न जानते थे, बल्कि इस बात की थी कि मैं उन्हें न जानता था। मैं कितनी भी अर्थपूर्ण बातें करता, अनजाने लोग न जाने क्यों मुझे अपनाने से तक कतराते थे। वो मेरा वजूद, मेरे रहने के ढंग, मेरी सादगी, मेरे कपड़े पहनने के ढंग, यहां तक कि मेरे प्रेम पर भी लांछन लगाते कि बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद! इन अजनबियों को ये बात तक हजम न हुई कि जिन्हें ये नकार रहे हैं, वो संख्या में इनसे ज्यादा हैं। अनजाने लोग भले ही हमें कितना ही धुत्कार दें, हम उन्हें हमेशा उन्हें बैठने कुर्सी देते, उन्हें इज्जत देते, कभी कभी भगवान से तक तुलना कर देते। दिन बीते, विद्रोह की अग्नि भड़क उठी और अनजाने लोगों की हवेलियां हमारे लोगों ने जला दी।
सैकड़ों साल के बाद, आज आजादी मिली है। अनजान लोग या तो मार दिए गए हैं, या तो भगा दिए गए हैं। दुख इस बात का है, कि हम में से ही जिन लोगों ने विद्रोह का आव्हान किया, आज हमसे फिर अनजान हो चुके हैं।

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25 APR 2021 AT 12:18

Religion, caste, race
To
Plasma, medicine, oxygen.

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15 APR 2021 AT 13:45

चल पड़ेगा आज ये रस्ता तुम्हारे साथ ही
गिर पड़ेगा हौसला फिर से तुम्हारे साथ ही

रुक सके तो रुक भी लेंगे आप जो रोको हमें
रुक सके तो चल भी देंगे फिर तुम्हारे साथ ही

बारिशों में भीगना जो अब कभी होना हुआ
आंख मूंदे भीग लेंगे फिर तुम्हारे साथ ही

हम अकेले रह नहीं सकते हैं ऐसा भी नहीं
है हमें रहना ये कहता मन तुम्हारे साथ ही

हम अकेले हों तो हों हमको हमारा गम नहीं
देख पाएंगे न हम तुमको तुम्हारे साथ ही

तुम बताके ना भी जाते तो भी मुझको आस थी
जो गए हो, रह गया हूं मैं तुम्हारे साथ ही

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9 APR 2021 AT 13:53

कि रहना पड़ रहा है गैर घर में
किराया दर्द जाया कर रहा है

फिजा जिस शख्स की तुमने बनाई
खुदा उसको किनारे कर रहा है

तुम्हें कहने को मन था पास आओ
मगर ये हाथ कितना डर रहा है

सनम मैं चाहता था तुम बताओ
सनम मुझको बताना पड़ रहा है

मुझे जाने का दिल कैसे ही होगा
मिरा तो आशियां बेघर रहा है

फकत बैठा हुआ था कुछ ही पल से
ये मेरा जख्म क्यों अब भर रहा है?

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3 APR 2021 AT 8:19

तुम मिले तो यूं कहूंगा चांद से
देख तुझको है जमीं से पा लिया

पास आकर बैठ जा गर हो सके
दूर से तो तुमको कब का पा लिया

और लूटना चाहता हूं आज मैं
देखना है किस कदर है पा लिया

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31 MAR 2021 AT 20:27

फिर रहा हूं ढूंढता फिर आज मैं
इक उसी का अक्स जिसको ना दिखा

बात तेरे आ गुजरने से रुके
बोल ऐसी थिरकनें तो ना दिखा

लौट आऊं तू बुलाए जो मुझे
डर रहा हूं सोचकर गर ना दिखा

इक जनम आबाद करना तुम मिरा
इक जनम कहना कि फिर मैं ना दिखा

छोड़ के जो जा रहे हो गर कभी
मुड़ के यूं ना देखना जो ना दिखा

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28 MAR 2021 AT 7:34

किनारे पे खड़ा मुल्जिम सितारों पर निशाना है
1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2
तुम्हारे बाजुओं को आज फिर से टूट जाना है
1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2

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26 MAR 2021 AT 11:13

साढ़े पांच मिनट

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16 MAR 2021 AT 10:51

तुम जब जब मुस्कुराए,
खिंच गई लाइनें
कैनवास पर मेरे

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6 MAR 2021 AT 10:26

बड़े शहरों की भीड़ में खो गई तुम, मुझे किस किनारे, किस तरीके से मिलोगी। छोटे शहरों के रिश्तों में खो चुका मैं, तुम्हें किस नज़र, किस मुंह से तकूंगा।

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