अनजाने लोग अनजाने ही रहे। मैंने जब जब अनजाने लोगों को समझने या उनके पास जाने की कोशिश की, उन अनजाने लोगों ने मुझे धक्का मारकर गिरा दिया। अनजाने लोगों को खुन्नस इस बात की न थी कि वो मुझे न जानते थे, बल्कि इस बात की थी कि मैं उन्हें न जानता था। मैं कितनी भी अर्थपूर्ण बातें करता, अनजाने लोग न जाने क्यों मुझे अपनाने से तक कतराते थे। वो मेरा वजूद, मेरे रहने के ढंग, मेरी सादगी, मेरे कपड़े पहनने के ढंग, यहां तक कि मेरे प्रेम पर भी लांछन लगाते कि बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद! इन अजनबियों को ये बात तक हजम न हुई कि जिन्हें ये नकार रहे हैं, वो संख्या में इनसे ज्यादा हैं। अनजाने लोग भले ही हमें कितना ही धुत्कार दें, हम उन्हें हमेशा उन्हें बैठने कुर्सी देते, उन्हें इज्जत देते, कभी कभी भगवान से तक तुलना कर देते। दिन बीते, विद्रोह की अग्नि भड़क उठी और अनजाने लोगों की हवेलियां हमारे लोगों ने जला दी।
सैकड़ों साल के बाद, आज आजादी मिली है। अनजान लोग या तो मार दिए गए हैं, या तो भगा दिए गए हैं। दुख इस बात का है, कि हम में से ही जिन लोगों ने विद्रोह का आव्हान किया, आज हमसे फिर अनजान हो चुके हैं।
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