उज्जवला को अपने रूप-रंग का बड़ा गुमान था, उसकी नज़रों में बाहरी सौंदर्य ही सब कुछ महत्व रखता था,यदि रूप-रंग ना हो तो ईश्वर की क्या कारीगरी,उसका ऐसा मानना था ।
विदुषी उसकी सहेली अक्सर समझाती रही कि ज़िंदगी यही नहीं है, रूप-रंग के आगे भी बहुत कुछ ख़ास है,परंतु उज्जवला पर मानो कोई असर नहीं होता था ।
एक रोज़ उज्जवला की स्कूटी का एक्सीडेन्ट हो गया,
चेहरा बुरी तरह जख़्मी हो गया, आगे का दाँत टूट गया,चेहरा बहुत ही विकृत हो गया, वह ख़ुद को आईने में देखने से घबराने लगी, तब उज्जवला ने फिर उसका मनोबल बढ़ाया, उसे सलाह दी कि ज़िंदगी के कई ख़ूबसूरत रंग हैं,तुम अपनी सीरत का कोई ख़ूबसूरत सा रंग चुनो, मुझे याद है तुम बचपन में पेंटिंग किया करती थीं,क्यों ना रंगों की कूँची थामकर
फ़ीके पड़ चुके आत्मविश्वास में रंग भरो, अपनी भीतरी ख़ूबसूरती को बाहर लाओ, यह बात उज्जवला को भा गई, उसके बाद उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा,कई आर्ट गैलरी में उसकी कला को प्रदर्शन का मौका मिला और कला के क्षेत्र में उसने अपना नाम रोशन किया ।
ईश्वर की हर कृति अनमोल है, ठीक उसकी कृति की तरह, यह बात उज्जवला अच्छे से जान चुकी थी ।
©अजय नेमा
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