कुछ वादे किए थे गए दिनों उसने
खुशी में रहूं या ना रहूं दुख में हमेशा रहूंगा,
उजाले में रहूं या ना रहूं अंधेरे में दिया बनूंगा,
साथ रहूं या ना रहूं सहारा बना रहूंगा,
उसने किए थे लेकिन मैं किसी से वादे ना करूंगा।-
सुनो लौटने में देर मत करना मैं इंतज़ार कर रहा हूं,
तुम तो जी रही हो लेकिन मैं घुट घुट कर मर रहा हूं,
सुना है हकीम हो गई हो मैं मर्ज की दवा का इंतज़ार कर रहा हूं।-
सुनो जो मेरा अपना एक कोना था तुम्हारे दिल में वो अभी भी है ना,
तुम्हारे मन में जज़्बात मेरे अभी भी है ना,
तुम्हारी रातों में ख़्याल मेरे अभी भी है ना,
तुम्हारी नज़रों में सूरत मेरी अभी भी है ना,
मेरे दिल में तो तुम ही हो लेकिन तुम्हारे दिल में मेरा एक कोना अभी भी है ना?
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कभी कभी सोचता हूं की वो सब कुछ बता दू तुमको जो लोगों ने मेरे साथ किया है,
फिर सोचता हूं कि क्या करोगी जानकर तुमने भी तो वही किया है जो औरों ने किया है।-
सुनो अश्किया उस रकीब की बात बताओ...
क्या वो भी तुमसे मिलने को मेरी तरह पागल रहता है,
क्या उसे भी तुम्हारी पसंद नापसंद पता है,
क्या वो भी जब मिलने आता है तो तुम्हारे लिए कुछ लाता है,
क्या वो भी सिर्फ तुम्हारे माथे को ही चूमता है,
क्या उसे भी पता है कि तुम्हे बारिश में भीगना कितना पसंद है,
क्या वो भी तुम्हें खुश रखता है,
क्या तुमने उसे बता दिया है कि तुम्हें आइसक्रीम कितनी पसंद है,
क्या तुमने उसे बता दिया है कि तुम मेरा इंतजार बालकनी में खड़ी होकर करती थी,
क्या तुमने उसे बताया दिया कि तुम मुझसे झूठ बोलकर मिलने आती थी,
क्या तुमने उसे सब बता दिया जो मुझे बताया था....
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हां नहीं है हिम्मत तुम्हारा इंतजार करने की लेकिन फिर भी मैं सिर्फ तुम्हारा इंतजार करूंगा,
हां मैंने अपनी उम्मीदों को छोड़कर तुम्हारे सपनों को हकीकत करना चुना लेकिन फिर भी मैं सिर्फ तुम्हारा इंतजार करूंगा,
और करूं भी क्यूं ना इंतजार दिन रात सजाएं थे मैने सपने तुम्हें अपनी मां से मिलाने के,
सुनो ना मैं सिर्फ तुम्हारा इंतजार करूंगा।-
सुनो एक इल्तिमास है तुमसे यूं बिंदी लगा कर सामने ना आया करो,
जो बिंदी लगाओ तो फिर कान के पीछे काजल लगा के आया करो,
सुनो सामने आओ तो यूं आंखों से शोखियां ना किया करो,
जो शोखियां करो तो गैरों से करो हमसे नज़रे न मिलाया करो।-
तुम्हें पगडंडी पसंद नहीं थी अब डामर की सड़क बना रहा हूं,
तुम्हें गांव पसंद नहीं था अब शहर बसा रहा हूं,
तुम्हें पसंद नहीं था लेकिन अब मैं खुद को ही मिटा रहा हूं।-
मन की खिड़की बंद पड़ी थी,
रात उसने बड़े दिन बाद दस्तक थी,
सोचा की बहुत बदल गई होगी वो,
लेकिन वो तो हुबहू वैसी ही थी।-
कभी हम साथ होते थे, पर अब नहीं
कभी हम हमसफर थे, पर अब नहीं
कभी हम साथ हंसते थे, पर अब नहीं
कभी आप याद करते थे, पर अब नहीं
हम अब भी गुफ्तगू ए मोहब्बत चाहते है, पर वो नहीं-