"May be you should let it go now,
Your past is eating your present and future like parasite
Many springs came and gone but you...
You're stubborn enough to not let the dead leaves go
and never let other buds to grow!
The time will come
when you'll not be here and neither I'll
But your sorrows gonna stay here forever!
In fact you haven't even tried to give anyone a chance
to come close to you!
you're just pretending it...
Isn't it?"
"May be this is what I am!"he argued
"You know what...this is enough!"she murmured in the anger
While leaving she turned to him
and said
"I always adored you from far,
but I always thought there's something lacking in you...
now I know what is that...
Life!
Life is lacking in you,dear!"
And she disappeared in the crowd of the street.-
તું જો...
એ કાંઠો કે જેણે કંઈકના પદચિન્હોને
મિટાવ્યા એ અદાથી
કે જાણે અહીં કોઈ આવ્યું જ નથી આજ લગી!
તું જો આ રેતીને...
કે જે ના તો તારા સ્પર્શની ગરજ સારે છે,
ના તો ફરિયાદ કરે છે તારા અમસ્થા આવી જવાની!
તો તું આ બધી મથામણ કરે છે શાની?
નથી સાબિતીની જેને દરકાર
એને કંઈક કરી બતાવવાની?
શૂન્યમાંથી કંઈક પામી લેવાની,
કે અનંતમાં કંઈક ઉમેરી દેવાની?
વહી ગયેલાની વિદાય
અને આવનારા ની આગતા સ્વાગતામાં વ્યસ્ત
ત્યાં પેલે પર પહોંચી જવાની?
કે વળી કોઈકનું ક્ષિતિજ થઈ જવાની?
તને લાલશા શેની બાકી રહી છે હજી?
જે રિઝાય ના કોઈથી એને રિઝવવાની?-
कौन हूँ मैं?
एक सौंपा गया किरदार बदन को!
क्या करता हूँ मैं?
बसर करता हूँ तेरी फुर्सत मैं लिखी गई
कहानियों का जुमला...
हर मोड़ पर पर जब लगे कि अब सराहनी होगी
तेरी लेखनी
और भर चूका है जाम/
मैं उस जाम को आसमान की और लगाकर
सजा देता हूँ होठों पर...
इससे ज्यादा मैं क्या कर सकता हूँ?
शिकायत ही तो हो सकती है...
सो करता हूँ...
बग़ावत करूँ तो भी किसके लिए?
तेरे अलावा कोई दूजी सियासत भी नहीं!
अग़र होती कोई दूसरी सियासत
तो मैं तुमसे बगावत छेड़ देता
और माँग लेता
एक पसंदीदा किरदार
कुछ चुनिंदा मंज़र
और एक खुद्दारी से भरा हूआ अंत!!-
किरदार अदा करते करते देख कहाँ तक आ पहुँचा हूँ मैं!
तेरे जैसा,मेरे जैसा,कुछ बाक़ी नहीं!दुनिया हो चूका हूँ मैं!!-
ढूंढ़ने से तो ईश्वर भी मिल जाता है!
वे कहते हैं...
पर शायद ऐसा है नहीं!
वाकई में ऐसा होता तो जो कोई बनजारा है,
एक लंबे अरसे से सफ़र में है,
वो एक वक़्त के बाद रुक जाता!
स्थिर हो जाता!
मग़र ऐसा होता तो नहीं है!
जो ढूंढ़ते हैं... वे भटकते ही रहे हैं!
जैसे कोई हारा थका जीवन जीने की वजह ढूंढ़ता है!
अग़र कुछ वाकई में सार्थक है
तो वो अनायास ही हमसे टकरा जाएगा!
और उसके बाद कोई दूजा विकल्प भी ना बचता हो!
कोई अग़र प्रेम का भी अभिलाषी है...
तो वो प्रेम कैसे खोजेगा?
किस किस के दरवाज़े खटखटाएगा?
वो सुंदरता,सादगी,निर्माल्य ढूंढता रह जाएगा!
मग़र ये वो तो नहीं जो वो वाकई में चाहता है!
जिन्हें प्रेम मिला,
उनके पास कैसे मिला इसका कोई जवाब नहीं है!
.
मुझे लगता है अब तुम्हें रुक जाना चाहिए!
मौका दो कि इस बार ईश्वर तुम्हें ढूंढे...
मग़र उसके लिए तुम्हारा एक ठिकाने पर होना अनिवार्य है!-
ओ लड़की...
तुम मुस्कुराओ,
कितने दु:शासनों का रक्त तुम्हारे रूखे केशों का सिंचन कर चूका!
हक़ मांगते,
सांत्वना लेते,
सिसकियाँ भरते,
यमों से लड़कर अपने स्वामिओं को वापस लाते,
मर्यादाओं के यज्ञ में स्वयं की आहुति देते...
क्या अब भी तुम एक हास्य की अधिकारी नहीं बनी?
जो क्रांतियाँ यहाँ पर हो सकती थी समझो हो चुकी!
अब किसकी बाट देखती हो?
अब जब कि है मुमकिन मुस्कुराना...
तुम मुस्कुराओ.....
तुम्हारी उदासी का बोझ ये धरा अब और सह नहीं सकती!!-
त्रासदी ये है कि जो लोग धरती पर चलने लायक नहीं थे...
उनको हमनें आसमान में बिठा दिया!
जिन लोगों ने प्रेम जाना नहीं है,
जिन्होंने जनता की पीड़ा को ग्रहण नहीं किया है,
वे हमारे जीवन की बागडोर संभाले हुए हैं!
सुबह उठते ईश्वर इनके सीने से कल्याण के लिए आह्वान नहीं करता...
इनकी सफ़ेदी के इर्द गिर्द काली भाव भंगीमाए नाचती रहती है!
.
जिनके पास युद्ध में मार काट के हथियार जुटाने के लिए संसाधन है...
मग़र इतना नहीं कि किसी गरीब के घर का चूल्हा जला सके!
इनकी गाड़ियों के आने की जगह बनाने के लिए
बूढ़े आदमी कि साईकिल को रोड़ पर से धक्के देकर उतारा जाता है!
मतदाता भगवान है...
और शायद हमेंशा से था!
मग़र मैं तुम्हें ये याद दिलाना चाहता हूँ कि...
"सत्ता नास्तिक है!"-
त्याग वो भाव नहीं जिसके पश्चात गर्व किया जा सके...
और ना ही इतना अनिवार्य कि जिस पर जीवन वारा जा सके!
किसी को समझा कर करवाया गया त्याग तो दमन है ही है...
स्वयं को समझा बहलाकर कर किया गया त्याग भी
स्वयं के जीवन की शक्यताओं का घातक है!
त्याग अग़र हो तो ऐसे हो जैसे अनायास ही
कोई कर बैठे प्रेम वश ही अपने प्रिय को
और सोचे भी ना दूजी बार उसके बारे/
जैसे पेड़ त्याग देता है अपनी पर्णो की सुंदरता
फलों को पोषित करने के लिए...
त्याग करने वाले को ये अनुभूति भी ना होने पाए
कि उसे त्याग करना पड़ा है/
तभी उसकी महिमा बनी रहती है!
त्याग उतना ही कठिन होना चाहिए
कि श्वासों में भिनाश भर सके
मग़र ना हो किसी शिला के जैसे...
कि किसी के श्वासों को अवरुद्ध करने में समर्थ हो पाए!!-
"What a sip of drink will do to your purity? you coward!"
His friend said...
When he refused to drink with his friends in the party!
"This poison has ruined my world enough!"
he murmured in his mind.
.
He looked in the mirror and suddenly he realised
that he looks like him
and felt ashamed at the point that he thought...
"should I scrap out my face?"
.
He missed his mom so much that day
That he started hitting himself
with the belt on his shirtless back
the way his father used to hit his mother
while he used to come drunk at home...
And said to himself...
"You are the same guilty as him!
His monstrous blood runs through your veins! you take this...!"
And the belt went hard again on his back again/-
किसी एक शख़्स के जाने से,
पूरा देश फ़िका पड़ सकता है!
जैसे किसी मुकुट से चमकते हुए
हीरे को उतार लिया गया हो!
फरिश्तों कि अब कहानियाँ सुनाई जाएँगी,
और आसमान में ताका जाएगा...
क्यूँ कि वो फ़रिश्ता अब ज़मीं पर मौजूद नहीं!!
कुछ किरदारों को देखकर लगता है
जैसे यहाँ पर अभी भी कुछ सार्थकता बची हुई है!
एक बड़ा जनसमूह जिसके होने भर से
अपने ऊपर छत्रछाया होने का ढाढ़स बाँधता है!
जो नायक थे...
और देश के हर व्यक्ति के हृदय में नायक बने रहेंगे!
आपकी जगह इस धरातल पर खाली रहेगी
बेबदल रहेगी!
नमन हो!!🙏-