दीप से दीप जलाकर
(स्वरचित डॉ. अजयकुमार एल. जोशी)
(सरकारी कला महाविद्यालय भेसाण)
दीप से दीप जलाकर
वसुधा को रोशन बनाएं
अयं निजः परो वेत्ति का
अन्धेरा धरा से दूर भगाये
निज जीवन को नेक बनाकर
हर हमेंश एक दीप जलाए
जन-जन में सहयोग बढ़ाकर
देश प्रेम का भाव बढ़ाए
दीप से दीप..…..
हर आँगन रंगोली सजाकर
कहीं दीप तो कहीं मोर बनाए
अजब अनूठी प्रीत बताकर
इस धरती को स्वर्णिम बनाएं
दीप से दीप...
अक्षरों और शब्दों में गूंथकर
त्यौहार को संस्कृति दर्पण बनाएं
सचमुच "अजय" यह मंगलकाव्य
राम और रामराज्यकी याद दिलाएं
दीप से दीप जलाकर...-
अनागत विधाता च प्रत्युत्पन्नमतिस्तथा।
द्वावेतौ सुखमेवैते यद्भविष्यो विनश्यति।।
ऐसा व्यक्ति जो हमेशा भविष्य में आने वाली विपत्ति के लिए सजग रहता है और उचित कार्य करता है, जिसकी बुद्धि मुसीबत के समय भी बहुत तेजी से चलती है वह हमेशा सुखी रहता है| और इसके विपरीत जो व्यक्ति केवल भाग्य पर ही निर्भर रहता है, कोई कार्य नहीं करता, उसका नाश निश्चित है
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પુસ્તક રોજ નથી લખાતા,
છાપા રોજ છપાય છે, સાહેબ...
એટલે જ એક કબાટમાં સચવાય છે
અને બીજુ પસ્તીમાં વેચાય છે...!
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दर्द गम डर जो भी है
बस तेरे अंदर है
खुद के बनाए पिंजरे से
निकलकर देख तू भी
एक सिकंदर है ।।-
वास्तव में ज्ञान जब परिपक्वता की
और बढ़ता है तब प्रेम बन जाता है ।-
आजीवनं स्मरेत्कश्चित् तादृशं कर्म नो भवेत्।
यतनीयं तथा कर्म नास्ति चिन्ता हृदा सकृत्।।
કોઈ જીંદગી ભર યાદ કરે એવું કામ ન કરી શકો તો કાંઈ વાંધો નહીં પણ કોઈ દિલથી એક વાર યાદ કરે એવુ કાર્ય કરવાની કોશિશ કરો.-
आशिषः
आशासे त्वज्जीवने जन्मदिवसम् अत्युत्तमं शुभप्रदं स्वप्नसाकारकृत् कामधुग्भवतु।
जन्मदिवसस्य हार्दिक्य: शुभकामना:।।-
सूर्य संवेदना पुष्पे, दीप्ति कारुण्यगंधने।
लब्ध्वा शुभं जन्मदिवसेऽस्मिन कुर्यात्सर्वस्य मंगलम्।।-
“सुई चलती है तो बेहतरीन पोशाक बनाती है,
चुभने वाली हर चीज़ का मक़सद बुरा नहीं होता”
~ अज्ञात
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