Ajay H More   (Ajay h more)
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Joined 29 August 2020


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11 APR 2023 AT 8:35

हो कौन जो जागती रातभर तुम
जीवन की एकमात्र आसभर तुम

झाँकती जब सुबह घन तिमिर से
स्नेहाकांक्षा की नव चाहभर तुम

ह्रदय भेदते चीत्कार को मिटाती
अनुराग पूरित एक रागभर तुम

हर अंश का प्रेरणादायी रूप बन
स्फुटित अंकुरण में प्राणभर तुम

सुप्त चेतना से कुहासा हटाती
प्रेम, कष्टका भागभर तुम

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22 AUG 2022 AT 0:06

प्रेम जीवन में ऐसे ही आ नहीं सकता "
जरुर यह सोची समझी साजिश होगी "

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25 JUN 2022 AT 7:36

वशिभुत करतो आहे आरसा "
अडकलोय ह्यात मी फार-सा "
बाहेर काही चित्त न लागे "
सुख सामावले ह्यातच माझे"

भौतिकतेचे तोडले मी धागे "
स्वतंत्र्यता माझी आरस्यासमोर जागे "
कधि संवादतो मीच स्वताशी "
कधि उत्कलते कल्पना प्रितीची❤..."

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14 JUN 2022 AT 22:43

कृष्ण स्थित ह्रदय अंतराळ में
राधा नाम से सांस चले...
अचंबीत है यह दृष्टी मेरी
हरऔर उनका ही आभास रहे...

अब प्रेम नगर में रैनी हमारी
मन जैसे मुररी हमारी..
धुन अब एक ही रठाए
राधे नाम मधुरस्वर दोहराए..❤

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18 APR 2022 AT 19:00

इंतजार-इंतजार में न जाने कितने ख्वाब मिट गए,
तुम्हे देखने की जिद़ थी हमें , जो सिर्फ अब बात करने पें सिमट गए!!!

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15 APR 2022 AT 19:19

प्रेमाच्या डोहात पडण्याचे इतकेच कारण आठवते
मला माझे विचार आवडत होते
अनं माझ्या विचारांमध्ये तिचं अस्तित्व जाणवत होते
विचारांची चाळणी करता,एक चेहरा खुणवत होता
परका का असेना पन आपलासा वाटत होता
मंग काय माझा संकोच पन जागला"
का तिच म्हणुन मी माझ्या विचारांवन ओघ लादला
हळुहळु प्रश्नांची उत्तरे पन मिळाली
तिचा स्वभाव आठवताच मनाची दारे पन उघडली"
एक हक्क दाखवुन तिने काबिजच केलं ह्रदय
जेने करुन इथुन झाला प्रेमाचा उदय

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11 APR 2022 AT 7:59

श्र्वांसाची तडफड "
ह्रदयाची धडधड"
निसर्गाची स्पंदने"
पक्ष्यांचा किलबिलाट"
रक्ताचा सरसराट"
भास्कर तो विराट"
आनंदमयी पहाट"
ईश्वराशी प्रार्थना"
कल्पनेत भविष्य"
गुढ असे काही भास"
समर्पित माझं अस्तित्व"
भिनलेलं अंतरंगी तत्व"
विस्तारत आहेत सुर्यकिरणे "
गुंतागुतीची ती रात्री ची प्रश्न"
छेदत होते मला जे तिक्ष्ण"
ह्या पहाटेच्या आरंभी"
आले मला त्यावर हसणं"
प्रश्न नव्हतीच ती जे की उत्तरबोधच त्यांच असणं"

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1 APR 2022 AT 22:28

मैं ...मैं था कुछ वक्त पहले
अब यह भ्रम भी ना रहा...!

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1 APR 2022 AT 22:20

उलझीं हुई पहेली की तरह रहा जीवन"
जो किसी को न हल हुआं"
सब ने अपनी अपनी मान्यताओ से जाना"
जो सब के लिए विफल रहा"
भ्रम है उन्हे जो की सब कुछ जान गए"
कल्पकता से वो अपनी ,कहते हैं हम पहचान लिए"
अब मेरी सोच भी मुझे गुरूर की ओर ले जा रही है:
यहां तक कोई आया नहीं सिर्फ तु आ सका वो मुझे समझा रही है"
इस समझ को लेकर क्या हासिल है "अहम"
अहंकार!
अब इस अहंकार का क्या करुं?

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27 MAR 2022 AT 20:09

आसवांना माझ्या विनंती माझी"
थोडा संयम बाळगा..!
अजुन ही विझलेलो नाही मी,
सामर्थ्य असेल तर अखेर पर्यंत
माझी साथ निभवां...!

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