दौड़ती जिंदगी, छूटते ख्वाब
और थके हुए हम-
एक तेरा इंतज़ार ही तो है! कुमार
यू तुम्हारे सौंदर्य पर मोहित होकर मेरा कुछ लिखना निसंदेह प्रेम ना हो
अपितु मेरे अल्फाजो में तुम्हे, तुम्हारी उपस्थिति महसूस कराना मेरे प्रेम का प्रमाण है-
तुम्हारा जुल्फो की स्वतंत्रता छीन कर उन्हें कानो के पूछे कैद करना
मानो प्रकृति के सबसे प्यारे अन्यायो में से एक था-
तेरे हाथो का बालो की लटो को कानो के पिछे छोड़ना नववर्ष के सूर्य में बाधा बने बादलो के हटने सा था
दृश्य ये कुछ दुर्गम सा इन नजारों से मैं अपरिचित, कुछ छणों के लिए स्तब्ध सा था
शहर की परम्पराओं से अनभिज्ञ मैं लड़का छोटे शहर का-
किस्से अधूरी मोहब्बत के यू हमे ना सिखाओ
जूठा छोड़ना है अगर तो हमे लबों से ना लगाओ-
चंद्र की तलास में किसी दिनकर की मौजूदगी को धुंधला होते देखा है
वफा थी जिसे दिन भर उजियारे से मैने उस शाम को रात होते देखा है-
बोल पड़ा एक ख्वाब आज मुझ से यू तो ना रोज हमे तोड़ा करो
कहा जो आज फिर किसी ने तुम तो बड़े हो समझा करो-
वजूद मेरे होने का उसमे मानो केवल इतना सा था
नींद चुनी हो उसने सिर्फ मै ख्वाब सा बेवजह उसके हिस्से था-
बहुत नजदीक से नजर अंदाज किया है उसने मेरे हर घाव को
हम वही है जो उनकी उफ्फ पर भी बेचैन हो जाया करते थे-